!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*जब से इस सृष्टि का सृजन हुआ तब से यह सृष्टि निरंतर चलायमान है | निरंतरता ही इसकी पहचान है | इस सृष्टि में सूर्य , चन्द्र , तारे यहाँ तक यह पृथ्वी भी निरंतर बिना रुके चलती ही चली जा रही है | समय सतत् प्रवाहमान है | ठीक इसी प्रकार मानव जीवन भी चलते रहने के लिए ही मिला हुआ है | यहाँ रुकना मना है ! आप रुक सकते हैं परंचु समय नहीं रुकेगा | आप आराम कर सकते हैं , कोई भी कार्य कल के लिए छोड़ सकते हैं परंतु जो दिन बीत गया वह वापस नहीं आयेगा | यहाँ समय ही महत्त्वपूर्ण है | समय के साथ हमारे जीवन की गति परिवर्तित होती रहती है | कभी किसी का समय बराबर नहीं रहता है | कभी ऐसा भी समय आता है कि हम पहले जैसी गति से नहीं दौड़ सकते और कभी आशा के विपरीत अधिक गति से दौड़ने लगते हैं | कभी हमारे साथ ही चलने वाले लोग बहुत पिछड़ जाते हैं तो कभी हम उनसे बहुत पीछे हो जाते हैं | जब ऐसी स्थिति आती कि हम अपने साथ वालों से पीछे रह जाते हैं तो परेशान होने लगते हैं | यहाँ पर हमें परेशान न होकर सिर्फ यह विचार करना चाहिए कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति की क्षमतायें व परिस्थितियाँ भिन्न होती हैं | हम न तो परिस्थितियों से भाग सकते हैं और न ही हर तरह की दौड़ में भाग ही ले सकते हैं | हम सदैव दूसरों से अपनी तुलना करके उनसे आगे निकलने की सोंचते रहते हैं परंतु जब हम पीछे लह जाते हैं तो हमें बहुत कष्ट होता है | हम दुखी होकर बोझिल हो जाते हैं ! याद रखिये कि जीवन एक
यात्रा है और यात्रा में यदि बोझ ज्यादा हो गया तो चलने की गति अपने आप धीमी हो जायेगी |* *आज हम अधिकतर दूसरों के जैसा बनना चाहते हैं ! हमारा घर उसके जैसा होना चाहिए , हमारा प्रस्तुतिकरण अमुक की तरह होना चाहिए , हमारे
लेख अमुक की तरह होना चाहिए आदि | परंतु एक बात सदैव याद रखना चाहिए कि दूसरों की तरह बनने के लिए उस प्रकार का श्रम करना होगा , श्रम न करके सिर्फ दूसरों की तरह बनने की सोंचते रहना और उसी सोंच में स्वयं के लक्ष्यों को टालते रहना जीवन में हमारी को मुश्किल बना देता है | क्योंकि दूसरों के जैसा होने की कोशिश में हम अपने जैसा भी नहीं रह पाते हैं और ऐसी स्थिति में हम सिर्फ अपने समय एवं संसाधन की क्षति ही करते हैं | जीवन चलते रहते का नाम है , दूसरों की देखा - देखी दौड़ने का नहीं | अत: दूसरों से अपनी तुलना न करके अपनी गति में निरंतर चलते हुए अपने को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूँगा कि स्वयं को , परिस्थियों को या दूसरे को दोषी बनाने में समय न नष्ट करके स्वयं पर विश्वास करना चाहिए | किसी भी कार्य में निरंतरता रखते हुए जीवन का आनंद लेते अपने लक्ष्य को केन्द्र में रखकर बढते रहें सफलता एक दिन आपके कदम चूमेंगी | किसी की नकल करना तो ठीक है परंतु किसी के साथ दौड़ना आपको थकाकर हतोत्साहित कर सकता है | ऐसे में जिंदगी के हर मोड़ पर रुककर यह जरूर देखना चाहिए कि हम सही दिशा में बढ रहे हैं या नहीं | निरंतर सार्थक प्रयास से यहाँ सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है | बचपन में प्राईमरी में पढी कछुआ एवं खरगोश की
कहानी का स्मरण करके हमें सतत् बढते रहना चाहिए | यही जीवन है यही सृष्टि का नियम है |* *हम दूसरों से भी अच्छा बन सकते हैं , दूसरों से अच्छा लिख सकते , हमारा जीवन दूसरों से अच्छा हो सकता है परंतु उसके लिए हमें सार्थक एवं सकारात्मक प्रयास निरंतरता के साथ करना होगा | http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/