!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सतातन
धर्म एक बहुआयामी धर्म है | इस धर्म में विस्तृत जीवन दर्शन देखने को मिलता है | सनातन धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जहाँ आपको ग्रंथों के माध्यम से जीवन के पहले , जीवन में एवं जीवन के बाद क्या हो रहा था ? क्या हो रहा है ? और क्या होगा ? प्रयत्न करने पर सब कुछ प्राप्त हो सकता है | सनातन धर्म में स्वर्ग एवं नर्क का वर्णन भी मिलता है | स्वर्ग के विषय में बताया भी गया है कि जो जीवन में प्रेम , सद्भाव व सदाचार का पालन करता है वह स्वर्ग को प्राप्त होता है , वहीं अनाचार , कदाचार एवं व्यभिचार करने वाले नरक के वासी होते हैं | स्वर्गीय आनन्द प्राप्त करने का आधार है -- प्रेम | इस संसार में मनुष्य के द्वारा प्रत्येक जीव के साथ - साथ ईश्वर से भी प्रेम का नाता जोड़ने का सं
देश हर जगह मिलता है | मनुष्य तरह - तरह से ईश्वर की उपासना करता रहता है | उपासना में प्रेम का अभ्यास एक प्रमुख आधार है | प्रेम के विकास का आधार भी यही है | सच्चे और ईमानदार मनुष्यों के बीच ही मित्रता बढ़ती और निभती है | धूर्त और स्वार्थी लोगों के बीच तो मतलब की मित्रता होती है वह जरा- सा आघात लगते ही काँच के गिलास की तरह टूट -फूट कर नष्ट हो जाती है | लाभ में कमी आते ही तोते की तरह आंखें फेर ली जाती हैं | यह दिखावटी धूर्ततापूर्ण मित्रता तो एक प्रवंचना मात्र है | जिस समाज में सच्ची मित्रता, उदारता, सेवा और आत्मीयता का आदर्श भली प्रकार फलने - फूलने लगता है वहाँ निश्चित रूप में "स्वर्गीय" वातावरण विनिर्मित होकर रहता है |* *आज के भौतिकयुग में जहाँ किसी के पास इतना भी समय नहीं है कि वह कहीं बैठकर प्रेम से सतसंगचर्चा कर सके ! कहीं बैठने की बात तो बहुत दूर है आज का मनुष्य अपने परिवार के साथ बैठने भर को समय नहीं निकाल पाता है | एक मशीन की तरह एक मनुष्य का जीवन हो गया है | जहाँ पहले घरों में घर के सभी सदस्य सायंकाल बेला में सभी कार्यों से निवृत्त होकर घर के किसी कोने में बने छोटे से मन्दिर के पास इकट्ठे बैठकर हरिचर्चा करके अपने विचारों का आदान - प्रदान करके भगवान के प्रति परिवार के प्रति प्रेम भावना के दर्शन कराते हुए स्वर्गीय आनंद का अनुभव करते थे , वहीं आज यह सारे क्रिया - कलाप लगभग बंद हो चुके हैं (कुछेक घरों को छोड़कर) | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहाँ तक देखता हूँ लगभग सभी लोग परेशान ही दीखते हैं ! बड़ी - बड़ी कम्पनियों में बड़े - बड़े पदों पर आसीन कर्मचारी अपने जीवन की उलझनों में उलझकर परिवार को न तो वह समय दे पा रहे हैं और न ही वह प्रेम | जीवन के सभी ऐश्वर्य खरीदकर भी वे कहते हुए सुने जा सकते हैं कि - क्या बताऊँ महाराज इस दौड़भाग में तो जीवन नरक हो गया है | जीवन नारकीय होने का एक ही कारण है कि मनुष्य के भीतर की वे संवेदनायें वह प्रेम आज कहीं दीख नहीं रहा है | जहाँ प्रेम नहीं होगा , वहाँ उपासना / संवेदना नहीं हो सकती , और जहाँ यह सब न हो वहाँ स्वर्गीय सुख का अनुभव करना मूर्खता ही है |* *एक तरफ सभी ऐश्वर्यों से युक्त मनुष्य को अपना जीवन नारकीय लगता है , वहीं दूसरी ओर खुले आसमान के नीचे अपने परिवार के साथ प्रेमपूर्वक रहने वाले एक गरीब को जीवन में स्वर्ग का अनुभव होता है | क्योंकि वहाँ आपस में प्रेम का वातावरण होता है | बिना प्रेम के यह संसार ही नरक है | http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/