!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!संसार के सभी धर्मों ने देवी - देवताओं के अस्तित्व को स्वीकारा है |
देवता एवं मनुष्य दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं | पहले देवताओं ने मनुष्य को बनाया फिर मनुष्य देवताओं के अस्तित्व को सहेजने का कार्य कर रहा है | सभी धर्मों ने अपने - अपने देवताओं की स्वधर्मानुसार पूजा , प्रार्थना व इबादत करने का दिशानिर्देश मानव को दिया | सनातन
धर्म में ३३ करोड़ देवी देवताओं की मान्यता है ! इसाई उस देवता को परमेश्वर का पुत्र एवं मुसलमान उसी को नबी , रसूल या अल्लाह कहते हैं | देवता का अर्थ है देने वाला | जो संसार को जीवन दे , जो संसार का भरण - पोषण करे , जो संसार के पालन के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे | लोगों को प्राय: यह कहते हुए सुना जाता है कि -- "ऊपर वाला भूखा उठाता तो सबको है परंतु किसी को भूखा सुलाता नहीं है | इसका अर्थ यही है कि ऊपर वाला ( देवता ) सबके उदर भरण के ही प्रयास में लगा रहता है | कालांतर में अनेक समुदायों ने अपने - अपने समुदाय के देवताओं का पूजन प्रारम्भ किया , गोत्रानुसार घरों में देवताओं का पूजन प्रारम्भ करके इन्हें "कुलदेवता" का नाम दिया गया | इन्हीं देवताओं में एक विशेष नाम है "ग्राम देवता" का | प्रत्येक गाँव में गाँव के बाहर एक स्थान विशेष पर इन्हें स्थापित करक गाँव के कल्याणार्थ इनकी वार्षिक या अर्द्धवार्षिक विशेष पूजा भी की जाती है | "ग्राम देवता" का पूजन विशेष महत्व रखता है | इन्हें लोगों ने अपनी सुविधानुसार नाम भी प्रदान कर दिया | वैदिक
भाषा में इन्हें क्षेत्र की रक्षा करने वाला "क्षेत्रपाल तो गाँव की भाषा में इन्हें "डीह या डिहुआर" कहा जाता है | इन देवताओं को आज तक किसी ने देखा नहीं है | ये देवता कैसे होते हैं ?? वर्तमान में पृथ्वी पर देवता का दर्शन हो सकता है कि नहीं ?? यह कुछ अनुत्तरित प्रश्न मन में कौंधते रहते हैं | आज के यांत्रिक युग में इन देवी - देवताओं से लोगों की दूरी अवश्य बढी है परंतु वे इनसे हट नहीं पाये हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज पृथ्वी के जीवित देवता की चर्चा करना चाहूँगा जिसे वास्तविक "ग्रामदेवता" कहा जा सकता है | जो सारे संसार के उदर भरण के लिए दिर रात प्रयत्नशील रहता है | जिसे महान कवि "रामकुमार वर्मा" जी मे बहुत सुंदर ढंग से लिखा है ---- "हे
ग्राम देवता नमस्कार ! सोने चांदी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार !! यह प्रत्यक्ष "ग्राम देवता" हैं हमारे किसान | गर्मी , ठंड , बरसात की परवाह किये बिना दिन रात अपने खेतों में हड्डीतोड़ मेहनत करके धरती का सीना चीरकर अन्न पैदा करके सारे संसार को भोजन का स्वाद प्रदान करने वाले किसान किसी देवता से कम नहीं कहे जा सकते | जिनकी कृपा से सारे संसार को भोजन मिल रहा है वह देवता नहीं तो और क्या है ?? अपने मान - अपमान की चिन्ता किये बिना जो दिन रात सिर्फ परिश्रम करता है , और उसी के परिश्रम स्वरूप प्राप्त होने वाले अन्न से सम्पूर्ण संसार का पालन हो रहा है | ऐसे जीवित "देवता" की आज प्रत्येक स्थान पर उपेक्षा देखी जा सकती है | उपेक्षित होने के बाद भी वह अपने कर्म से विमुख न होकरके अपने कर्म को करता रहता है जिसके कर्मफल का उपभोग मात्र मानव ही नहीं बल्कि संसार का प्रत्येक प्राणी करता है | जो देने वाला हो , जो संसार का भरण पोषण करने वाला हो उसे ही देवता कहा गया है | और यह सारे गुण एक किसान में ही देखने को मिलते हैं |
भारत यदि संसार में
कृषि प्रधान
देश कहा जाता है तो उसमें इन ग्राम देवताओं की प्रमुख भूमिका है | यदि अदृश्य देवता रूठ गये तब तो जीवन चल सकता हैं परंतु यदि ये जीवित देवता (किसान) रूठ गये तो जीवन दुष्कर हो जायेगा ! अत: अन्नदाता का सम्मान करते रहें |