!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सृ्ष्टि में ईश्वर ने समस्त प्राणिमात्र को सारी ऊर्जायें समान रूप से प्रदान की हैं | सूर्य का प्रकाश , चन्द्रमा की शीतलता , नदियों का जल , हवा , प्राकृतिक सम्पदायें आदि समस्त प्राणिमात्र को समानरूप से मिल रही हैं | अनेक प्राकृतिक संसाधन मनुष्य को यहाँ प्राप्त हुए हैं | अब ये आप
के ऊपर निर्भर करता है कि उसका प्रयोग कैसे करते हैं सकारात्मक या नकारात्मक | मनुष्य जीवन में प्रत्येक मनुष्य में सकारात्मकता एवं नकारात्मकता विद्यमान रहती है | किसी भी वस्तु या
ज्ञान का सकरात्मक प्रयोग सृजन करता है तो नकारात्मक प्रयोग पतन का का कारण बनता है | आदिकाल में गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ - साथ अस्त्र - शस्त्र चलाने की शिक्षा भी मिलती रही है | इन अस्त्र - शस्त्रों का प्रयोग सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से होता रहा है | देवपुरुषों ने इनका प्रयोग प्राणिमात्र की रक्षा के लिए किया वहीं राक्षस प्रवृत्ति के लोगों ने अपनी विद्या के बल पर विनाश करने का प्रयास किया परंतु वे सफल हो पाये हों यह आवश्यक नहीं है क्योंकि नकारात्मकता चाहे जितनी प्रबल हो उसको एक दिन पराजित होना ही पड़ता है | हमारे ऋषियों ने कठिन तपस्या करके वरदान प्राप्त किये और वरदान की उस शक्ति का प्रयोग लोककल्याण के लिया वहीं कदाचारियों (राक्षसों) ने भी तपस्या करके शक्ति अर्जित किया एवं उसका नकारात्मक प्रयोग करने का प्रयास किया तो उनका विनाश भी हुआ | सनातन साहित्य के संस्कृत ग्रंथ अनेक उपयोगी मंत्रों से परिपूर्ण हैं |
आज भी इन मंत्रशक्तियों के बल पर लोगों में एक नई शक्ति का अभ्युदय होता देखा गया है | वहीं कुछ
लोग (तांत्रिक) इन्हीं मंत्रों के नकारात्मक प्रयोग से वशीकरण , उच्चाटन , विद्वेषण एवं मारण तक का कार्य कर रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति में अपार सम्पदायें भरी पड़ी हैं यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप इनका प्रयोग कैसे करते हैं |* *आज के वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिकों ने मानव को अनेक जीवनोपयोगी संसाधन उपलब्ध कराये हैं | आज विश्व के समस्त
देश अपने - अपने आयुध भण्डार बढाने में लगे हैं | इनमें से कुछ का उद्देश्श्य तो आत्मरक्षा (राष्ट्ररक्षा) का है तो कुछ का उद्देश्श्य अपने आयुधों के बल पर अशांति एवं भय फैलाना ही है | वैज्ञानिकों द्वारा मनुष्य को एक ऐसा यंत्र प्रदान किया गया जो आज मनुष्य का अभिन्न अंग बन गया जिसे आज मोबाईल कहा जाता है | मोबाईल का सकारात्मक प्रयोग लोगों ने किया | लोग सात समुंदर पार बैठे अपने स्वजनों से एक सेकेण्ड में बात करके इसकी सकारात्मकता पर अभिभूत हो जाते हैं | परंतु जहाँ सकारात्मकता है वहीं नकारात्मकता भी रहती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज इस यंत्र के नकारात्मक प्रयोग पर कहना चाहूँ कि आज इस यंत्र का नकारात्मक प्रयोग कुछ ज्यादा ही होने लगा है | विशेषकर युवा , मोबाईल में इंटरनेट के माध्यम से परोसी जा रही अश्लीलता आज समाज में बढ रहे अपराधों का एक प्रमुख कारण बन रही है | गूगल पर मिल रही सेवाओं के कारण आज के युवा सांस्कृतिक कार्यक्रमों , साहित्यों आदि से दूरी बना रहे हैं | संसार में उपलब्ध या वैज्ञानिकों द्वारा प्रदत्त संसाधनों का प्रयोग सदैव सकारात्मक करते हुए मनुष्य को एक नया अध्याय लिखने का प्रयास करना चाहिए |* *माचिस की एक तिल्ली से जहाँ अंधकार को समाप्त किया जा सकता है वहीं दूसरी ओर उसी एक तिल्ली से भयानक अग्निकाण्ड भी किया जा सकता है | यह आपके ऊपर निर्भर है कि आप उसका प्रयोग कैसे करना चाहते हैं |