*भगवान श्री कृष्ण का नाम मस्तिष्क में आने पर एक बहुआयामी पूर्ण व्यक्तित्व की छवि मन मस्तिष्क पर उभर आती है | जिन्होंने प्रकट होते ही अपनी पूर्णता का आभास वसुदेव एवं देवकी को करा दिया | प्राकट्य के बाद वसुदेव जो को प्रेरित करके स्वयं को गोकुल पहुँचाने का उद्योग करना | परमात्मा पूर्ण होता है अपनी शक्तियों से भगवान कन्हैया पूर्णरूप में अपनी शक्ति (योगमाया) के साथ धराधाम पर पधारे | स्वयं जैसे ही कारागृह में प्रकट हुए उनके साथ ही गोकुल में यशोदा के गर्भ से योगमाया का प्राकट्य होता है | श्री कृष्ण ने बचपन में ही राक्षसों का वध करके मनुष्य को नकारात्मक शक्तियों से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया | परिवर्तन समय की माँग है समय समय पर पुरानी रूढिवादी परम्पराओं में बदलाव आवश्यक बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा के गोवर्धनपूजा प्रारम्भ की | मनुष्य के कर्म पथ पर मोह , माया अवरोध नहीं बन सकती इसका दिव्य उदाहरण भगवान श्री कृष्ण के चरित्र में तब देखने को मिलता है जब कर्मपथ पर अग्रसर होते हुए (मथुरा जाते हुए) उन्होंने प्राणों से प्रिय गोपियों एवं ग्वालों का मोह त्याग दिया |
धर्म एवं न्याय के लिए अपने सम्बन्धियों को भी दण्डित करने का उदाहरण श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध करके प्रस्तुत किया |श्रीकृष्ण ‘अहिंसा परमो धर्म:' का उपदेश अर्जुन को देते हैं, तो ‘धर्महिंसा तथैव च' का उद्घोष करने से भी नहीं चूकते | जो कृष्ण आवश्यकता पड़ने पर कालयवन से भागते हुए स्वयं रणछोड़ के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, वह ही समयानुसार आवश्यकता पड़ने पर युद्ध से विरत होते अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं | श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि नवधा भक्ति के अनुसार हर प्रवृत्ति का भक्त अपनी भक्ति के अनुसार उनकी छवि गढ़ कर भक्ति कर सकता है | दैत्यों का वध करते कृष्ण, कहीं वंशी बजाते एवं रास रचाते कृष्ण, कहीं गीता उपदेश करते योगेश्वर कृष्ण, कभी द्रौपदी तथा कुब्जा के दुख को दूर करते कृष्ण | जीवन के हर क्षेत्र तथा हर रूप में श्रीकृष्ण पूर्ण दिखाई देते हैं, शायद इसीलिए भक्तों ने इन्हें पूर्णावतार कहा |* *आज हम प्रतिवर्ष भगवान कन्हैया का जन्मोत्सव "जन्माष्टमी" के रूप में मनाते तो हैं परंतु उनके आदर्शों पर चलने को तैयार नहीं दीखते | आज मनुष्य कर्मयोगी कम भोगी ज्यादा होता जा रहा है | काम , क्रोध , मद , लोभ , मोह , माया , अहंकार ने मनुष्य को इतना जकड़ लिया है कि वह कहीं कहीं स्वयं को विवश पाता है | जबकि भगवान कन्हैया ने सिखाया है कि किस तरह मनुष्य को अपने कर्मपथ पर किसी भी प्रकार की विवशता का अवरोध नहीं आने देना चाहिए | आज का मनुष्य
धर्म - अघर्म मेम निर्णय लेने में स्वयं को अक्षम पा रहा है | कुछ ग्वालों को साथ लेकर बाहुबली कंस का सामना करके भगवान श्री कृष्ण ने यही सिखाया है कि आतताईयों एवं अत्याचारों के विरुद्ध मनुष्य चुप नहीं रहना चाहिए अपितु विरोध करना चाहिए | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूँ कि आज समाज में अनेकों घटनायें (लूट , हत्या , बलात्कार , छेड़छाड़ , छिनैती आदि) को अपनी आँखों से देखते हुए भी हम यह कहकर आँखें बन्द कर लेते हैं कि हमसे क्या मतलब ?? यही वह प्रबल कारण है जो आतताईयों के हौसले बुलन्द करता है | हमारा जन्माष्टमी मनाना तभी सार्थक होता जब हम भगवान कन्हैया के बताये मार्गों का अनुसरण करेंगै |* *हम कृष्णचन्द्र तो नहीं बन सकते परंतु उनके दिखाये मार्गों का अनुसरण तो कर ही सकते हैं |*