*मानव जीवन जितना ही सरल लगता है यह उतना ही रहस्यों से परिपूर्ण है | मनुष्य जीवन जीने के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ नियम बनाये थे उनमें से मुख्य थे मानव के संस्कार | मनुष्य के उद्भव , विकास एवं ह्रास में संस्कारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | प्रत्येक समस्या का समाधान करने की क्षमता संस्कारों में ही निहित है | संसार में उपस्थित सभी कलाओं में महत्वपूर्ण है जीवन जीने की कला | इस कार्य में मुख्य सहयोगी की भूमिका में रहे हैं मानव के संस्कार | संस्कार में वह कला है कि यह पशुता को भी मनुष्यता में परिवर्तित कर देता है | जीवन एक चक्र माना गया है | यह वहीं आरम्भ होता है, जहाँ उसका अंत होता है | जन्म से मृत्यु पर्यंत जीवित रहने, विषय भोग तथा सुख प्राप्त करने, चिंतन करने तथा अंत में इस संसार से प्रस्थान करने की अनेक घटनाओं की श्रृंखला ही जीवन है | संस्कारों का सम्बन्ध जीवन की इन सभी घटनाओं से था | संस्कारों का सनातन हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान था | प्राचीन समय में जीवन विभिन्न खंडों में विभाजन नहीं, बल्कि सादा था | सामाजिक विश्वास कला और वि
ज्ञान एक- दूसरे से सम्बंधित थे | संस्कारों का महत्व हिंदू धर्म में इस कारण था कि उनके द्वारा ऐसा वातावरण पैदा किया जाता था, जिससे व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके |* *प्राचीन समय में संस्कार बड़े उपयोगी सिद्ध हुए | उनसे व्यक्तित्व के विकास में बड़ी सहायता मिली | मानव जीवन को संस्कारों ने परिष्कृत और शुद्ध किया तथा उसकी भौतिक तथा आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूर्ण किया | अनेक सामाजिक समस्याओं का समाधान भी इन संस्कारों द्वारा हुआ | गर्भाधान तथा अन्य प्राक्- जन्म संस्कार, यौन
विज्ञान और प्रजनन- शास्र का कार्य करते थे | इसी प्रकार विद्यारम्भ तथा उपनयन से समावर्तन पर्यंत सभी संस्कार शिक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्व के थे | विवाह संस्कार अनेक यौन तथा सामाजिक समस्याओं का ठीक हल थे | अंतिम संस्कार, अंत्येष्टि, मृतक तथा जीवित के प्रति गृहस्थ के कर्तव्यों में सामंजस्य स्थापित करता था | वह तथा पारिवारिक और सामाजिक
स्वास्थ्य विज्ञान का एक विस्मयजनक समन्वय था तथा जीवित सम्बन्धियों को सांत्वना प्रदान करता था | आधुनिकता की अंधी दौड़ में मनुष्य के संस्कारों का पतन होता देखा जा सकता है | आज जहाँ देखो समरसता का पतन एवं कटुता का उद्भव हो रहा है इसका कारण है मनुष्यों में संस्कारों की कमी होना है | मानव में ये संस्कार ऐसे ही नहीं लुप्त हो गये हैं इनके लुप्त होने में कुछ समाज के ठेकेदारों एवं आधुनिक हिंदू विचारकों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता | आंतरिक दुर्बलताओं तथा बाह्य विषय परिस्थितियों के कारण कालक्रम से संस्कारों का भी ह्रास हुआ | उनसे लचीलापन तथा परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन की क्षमता नहीं रही, इनमें स्थायित्व आ गया |* *आज पुन: आवश्यकता है कि हम अपने प्राचीन संस्कारों को आत्मसात करते हुए मनुष्य होने की उपयोगिता सिद्ध करें |*