!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *परमपिता परमेश्वर ने इस संसार का निर्माण बहुत ही सोच-समझ कर संतुलन के आधार पर किया है | पूरे ब्रह्मांड की एक-एक वस्तु, एक-एक कण परमात्मा द्वारा निर्धारित नियमों के अंतर्गत चल रहा है | अनादिकाल से यह क्रम चलता आ रहा है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी गति के अनुरूप चल रही है | यही कारण है कि इस संसार की व्यवस्था कभी भंग नहीं होती | व्यवस्था भंग वहां होती है, जहां कोई नियम न हो, कोई बंधन न हो, प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र और स्वच्छंद हो, लेकिन जहां व्यवस्था होती है, वहां कोई स्वच्छंदता नहीं होती, सर्वत्र नियम होता है | संसार में इतने बड़े - बड़े
देश इसलिए चल रहे है कि प्रत्येक व्यक्ति इसके संविधान को मानता है | जब कभी कहीं व्यवस्था टूटती है, तो समाज अथवा देश में अव्यवस्था फैल जाती है | इसलिए हमारा विद्यालय हो, परिवार हो, समाज अथवा देश हो, सभी जगह नियमों का पालन करना अनिवार्य है | परमात्मा और प्रकृति ने इस संसार में सबके लिए पहले से ही सब कुछ सुनिश्चित कर रखा है | आदमी जन्म लेता है, तो जन्म के पहले उसके लिए दूध का प्रबंध कर दिया जाता है | प्रत्येक जीव के भोजन की व्यवस्था प्रकृति पहले से करती रहती है और जब कभी प्रकृति का नियम टूटता है, तो अनेक दुर्घटनाएं घटने लगती हैं, क्योंकि प्रकृति कभी भी अव्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकती | वह तुरंत फैसला करती है | जैसा समय पर सूर्योदय होना, चांद निकलना, रात-दिन होना, बारिश आदि सब कुछ प्रकृति के नियम के अंतर्गत चल रहा है, ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी पूरी व्यवस्था की हुई है |* *आज का मनुष्य पढा - लिखा है , बुद्धिमान है , वह जानता है कि यह सम्पूर्ण सृष्टि ही एक नियम के सूत्र में बंधकर चल रही है परंतु फिर भी वह कभी - कभी स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में बहक जाता है | सरकारें , बड़ी - बड़ी समितियाँ , समूह यहाँ तक कि मनुष्य का अपना परिवार भी एक नियम के आधार पर ही चल रहा है | और यहाँ सबके द्वारा नियमों की मानने की बाध्यता भी है | जो नियमों का अतिक्रमण करता है वह समाज में अव्यवस्था फैलाते हुए समाज से निष्कासित / बहिष्कृत कर दिया जाता है | मनुष्य यह जानता है कि इस स्थान पर ये नियम पालन करना अनिवार्य है परंतु फिर भी वह अपने में मस्त एवं स्वयं को सर्वोपकि मानकर नियम का उल्लंघन करता रहता है | जिसके परिणाम स्वरूप एक दिन ऐसा आता है कि वह समाज से बिल्कुल अलग कर दिया जाता है | जो लोग उसका सम्मान करते रहे हैं वही उसको तिरस्कृत कर देते हैं | प्रत्येक मनुष्य को यह समझना चाहिए कि जब यह प्रकृति (जिसकी गोद में पलकर हम बड़े होकर जीवन यापव़न कर रहे हैं ) एक नियम के अन्तर्गत चल रही है तो हम क्यों नहीं चल सकते हैं | मेरा (आचार्य अर्जुन तिवारी का) मानना है कि जानते तो सभी हैं कि यहाँ नियमबद्ध होकर ही रहना पड़ेगा परंतु मानना कोई नहीं चाहता | कुछ लोग तो बिल्कुल ही नहीं मानते और वही दण्ड के भागीदार बन जाते हैं | सनातन
धर्म में जहाँ चार आश्रमों का उल्
लेख है वहीं सबके नियम भी अलग - अलग हैं और इन नियमों का पालन करना ही मनुष्य का परम धर्म एवं कर्म है |* *सनातन धर्म ने सदैव नियम पालन का ही पाठ पढाया है | क्योंकि बिना नियम पालन किये इस मानव जीवन को सुचारु ढंग से नहीं जिया जा सकता है | http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/