*नारी का हमारे
समाज में क्या स्थान है यह किसी से छिपा नहीं है। मां, बहिन और पत्नी के रूप में सदैव पूज्य रही है। जो आदर जो मान उसे मिला वही किसी से छिपा नहीं है। वह जननी है बड़े-बड़े महापुरुषों की। भगवान महावीर जैसे महापुरुष उसी की कोख से जन्में। हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारे इतिहास नारी की महानता और गौरवगाथा से भरे पड़े हैं। यमराज से अपने पति के प्राण छुड़ाने वाली नारी ही थी। कालिदास जैसे मुर्ख को महान बनाने वाली नारी ही थी। अंग्रेजों से अकेले दम पर लोहा लेने वाली झांसी की रानी भी नारी ही थी। उसने घर की चारदीवारी छोड़ी थी। अपनी लाज, गरिमा नहीं छोड़ी थी। नारी वस्तुत: देश, समाज, परिवार की नाड़ी होती है। जैसे-हाथ की नाड़ी की गति से वात, पित्त, कफ आदि की समता-विषमता का तथा स्वस्थता व अस्वस्थता का अनुमान होता है। वैसे ही नारी के सफल मातृत्व, चारित्र बल, सेवा, शीलादि गुणों से बालक, परिवार की नैतिकता आंकी जाती है। आज का बालक कल का नागरिक है।
देश व समाज का कार्यभार उसके कंधों पर होगा। उसको सुसंस्कारित करने में मां का वद् हस्त होता है। क्योंकि मां ही बालक की प्रथम पाठशाला होती है। सुसंस्कारों को देखकर सुपुत्रों का निर्माण करना मां का परम कर्तव्य है। लज्जा नारी का सहज स्वाभाविक गुण है। बालक की शिक्षा
धर्म और अचार की तुला को नम्रीभूत करने में नारी का अग्रणी स्थान होता है|* *परन्तु आज मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आज की नारी वह नारी नहीं रही। यह सब अतीत की बात है। आज वह भटक गयी है, अपने कर्तव्य रूपी अमृत को खो चुकी है। अपने रास्ते से हट गयी है। कारण सिर्फ दो हैं- एक फैशन की होड़ उसे खोखलेपन की ओर लिये जा रही है। दूसरा मर्दों से बराबरी का दर्जा। नारी जो घर की शोभा थी, क्लबों और बाजारों की शोभा बनती जा रही है। पाश्चात्य फैशन के अन्धानुकरण में उससे अपनी सभ्यता, नैसगिक सौन्दर्य, रीति-रिवाज धर्म, कर्म, सब कुछ ताक में रख दिया है। अहर्निश उपन्यासों का अध्ययन, सभा सोसायटी में जोशीले भाषण देना, पीठ-पीछे गप्पें लगाना आम उद्देश्य बन गया है। आज उसकी आंखों में न ममता का सागर है, न स्नेह का वह दरिया जो मन में पावनता भर दे। सचमुच वैदुष्य का निखार फैशन नहीं। किसी भी नारी का यह कर्तव्य नहीं कि वह अधिकारों की प्राप्ति, कर्तव्यों की आहुति देकर करे। क्या करें ? परिस्थितियां प्रतिकूल हैं, वातावरण खराब है, समय अनुकूल नहीं है। लेकिन जिन्हें कुछ कर गुजरने की साध होती है वह ऐसा बहाना नहीं बनाते | गुलाब के फूल कांटों में ही खिलते हैं। यदि सत्य इतना महंगा न होता तो उसकी हालत ऐसी न होती कि ---- गली-गली गोरस फिरे, मदिरा बैठ बिकाय।----- हमें अपनी इन्द्रियों और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करनी है। सादगी और सदाचार की रोशनी में इस मुक्ति को सार्थक करना है। नारी के लिए लिखा है कि -------* *‘कार्येषु मंत्री, करणेषु दासी, भोज्येषु माता, रमणेषु रम्भा, धर्मानुकूल: क्षमयाधरित्री भार्या च षड्गुणवती च दुर्लभ:।* *अतंत: यही कहना है कि --- हमारी बहिनें दया, क्षमा, संस्कार को धारण करते हुए एक नये युग में संस्कारित परिवार निर्माण का शंखनाद करें---*