*एकवेणी जपाकर्ण , पूर्ण नग्ना खरास्थिता,* *लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी , तैलाभ्यक्तशरीरिणी।* *वामपादोल्लसल्लोह , लताकण्टकभूषणा,* *वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा , कालरात्रिर्भयङ्करी॥-------* *नवरात्र की सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की उपासना का विधान है। पौराणिक मतानुसार देवी कालरात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा भी हैं। काल का अर्थ है (कालिमा यां मृत्यु) रात्रि का अर्थ है निशा, रात व अस्त हो जाना। कालरात्रि का अर्थ हुआ काली रात जैसा अथवा काल का अस्त होना। अर्थात प्रलय की रात्रि को भी जीत लेना | एक नारी को कालरात्रि की संज्ञा इसलिए दी जा सकती है क्योंकि वह अपनी सेवा, त्याग, पातिव्रतधर्म का पालन करके काल को भी जीतने की क्षमता रखती है | हमारे भारतीय वांग्मय में ऐसी महान नारियों की गाथायें देखने को मिलती हैं | सती सावित्री ने किस प्रकार पतिसेवा के ही बल पर अपने पति के प्राण यमराज से वापस ले लिया , अर्थात उस प्रलय की रात्रि पर विजय प्राप्त की | सती नर्मदा ने सूर्य की गति को रोक दिया | और सबसे आश्चर्यजनक एवं ज्वलंत उदाहरण सती सुलोचना का है, जिसके पातिव्रतधर्म में इतना बल था कि पति का कटा हुआ सर भी रामादल में हंसने लगता है | सतियों में सर्वश्रेष्ठ माता अनुसुइया को कैसे भुलाया जा सकता है जिन्होंने ॐ पति परमेश्वराय का जप करके त्रिदेवों को भी बालक बना दिया |* *आज के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो नारी अपने बल को भूलती हुई दिख रही है क्योंकि वह पतिसेवा व पातिव्रतधर्म को वह किनारे पर करके तमाम सुख, ऐश्वर्य व परिवार की सुखकामना के लिए स्वयं में विश्वसनीय न होकर अनेक प्रकार के पूजा-पाठ, यंत्र-मंत्र-तंत्र के चक्कर में पड़कर स्वयं व परिवार को भी अंधकार की ओर ही ले जा रही है | जबकि नारियों के
धर्म के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी मानस में बताते हैं----- एकइ धर्म एक व्रत नेमा | कायं वचन मन पति पद प्रेमा || नारियों का एक धर्म एक ही नियम एवं ही पूजा होनी चाहिए कि मन, वचन, कर्म से केवल पति की सेवा करें तो समझ लो कि ३३कोटि देवताओं का पूजन हो गया | ऐसा करने पर आज की नारी भी काल को जीतने वाली "कालरात्रि" बन सकती है | एवं एकबार यमराज से भी लड़कर पति को जीवित करा सकती है | नारियां सदैव से महान रही हैं | सृष्टि के सम्पूर्ण गुण एवं अवगुण नारी में विद्यमान हैं , आवश्यकता है अवगुणों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाने की | परंतु दुर्भाग्य है पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में आज नारी भ्रमित होकर अपने आदर्शों, कर्तव्यों को भूलती दिख रही है | वह पति की सेवा करने के बजाय मन्दिरों,मठों एवं संतो-महन्थों के चक्कर लगा रही है | और ऐसा करके वह स्वयं के साथ-साथ पूरे परिवार को संकट की ओर ले जा रही है |* *आज नारियों को आवश्यकता है स्वयं को पहचानने की | अपने अन्दर काल को भी जीतने की क्षमता को पुनर्स्थापित करने की | ऐसा करके वह परिवार के ऊपर छायी "प्रलय की रात्रि" को भी हरा करके "कालरात्रि" बन सकती है |*