*आदिकाल में जब इस सृष्टि में मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ तो उनको जीवन जीने के लिए वेदों का सहारा लेना पड़ा | सर्वप्रथम हमारे सप्तऋषियों ने वेद की रचनाओं से मनुष्य के जीवन जीने में सहयोगी नीतियों / रीतियों का प्रतिपादन किया जिन्हें "वेदरीति" का नाम दिया गया | फिर धीरे धीरे धराधाम पर मनुष्य का विस्तार हुआ और वेदरीतियों से समायोजित करते हुए लोगों ने अपनी कुछ नीतियां बनाई जिन्हें "लोकरीति" कहा गया , फिर लोगों ने अपने पूर्वजों के अनुसार अपने कुल की कुछ विशेष रीतियाँ बनाईं जो "लोकरीति" के नाम से जानी जाती हैं | लोकरीति एवं कुलरीति का उद्गम स्थल वेदरीति ही है | सारी रीतियां वेदों से ही उद्धृत हुई हैं | सनातन
धर्म के सभी पर्व एवं त्योहार एवं उनके नियम एक समान बनाए गए हैं परंतु विभिन्न अंचलों में लोकरीति एवं कुलरीति के अनुसार इनमें विभिन्नता देखने को मिलती रहती है | होली का त्यौहार एवं इससे जुड़े नीति नियम प्राय: एक ही है परंतु कहीं-कहीं इनमें लोकरीति का समायोजन हो गया है | इसी लोकनीति में प्रमुख एक यह है कि विवाहोपरांत कन्या की पहली होली ससुराल में ना होकर के मायके में ही होगी | यह वेदरीति ना हो करके लोकरीति है | इसके कारणों पर यदि विचार किया जाय तो विभिन्न मत निकल कर सामने आते हैं |
देश के किसी भाग में यह माना जाता है कि सास एवं बहू को एक साथ होलिका दहन नहीं देखना चाहिए तो कहीं यह मान्यता है कि वर की प्रथम होली ससुराल में होनी चाहिए | कुल मिलाकर जो लोकरीति हमारे देश में चली आ रही है वह यह है कि कन्या की पहली होली नईहर (मायके) में ही होगी |* *आज भी
समाज में इस रीति का पालन विशेषकर ग्रामीण अंचलों में किया जा रहा है | विवाहोपरांत कन्या की पहली होली ससुराल में अशुभ मानी जाती है , कारण कुछ भी हो | इस विषय पर कई विद्वानों से वार्ता करने पर एवं उसका सार निकालने पर मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस निर्णय पर पहुंचता हूं कि जिस प्रकार होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को मार डालने के उद्देश्य अग्नि में लेकर बैठी थी एवं स्वयं भस्म हो गई उसी कलंक को मिटाने के लिए हमारे पूर्वजों ने यह नियम बनाया होगा कि कन्या की पहली होली मायके में होगी , और वह अपने भतीजे को उबटन लगा कर के उस उबटन की मैल को होलिका में दहन करेगी | जिससे उसके भतीजे की रक्षा हो एवं मायके में आकर के भतीजे को जलाने का प्रयास करने वाला कलंक उस पर ना लगे | बहरहाल यह पौराणिक कारण नहीं हो सकता परंतु लोक मान्यता यही देखने को मिल रही है |
भारत देश की यही विशेषता है भिन्न-भिन्न लोकरीति होने के साथ ही उसमें वेदरीति का समायोजन अवश्य होता है | अनेकता में एकता का ऐसा उदाहरण अन्य किसी देश में शायद ही देखने को मिले | इसीलिए हमारा देश भारत महान है | त्यौहार एक ही है मनाने की परम्परा भी एक है परंतु लोग इसे अपने अपने ढ़ग से ही मनाते हैं |* *होलिका दहन के दिन प्रत्येक प्राणी को अपनी बुराइयों का , अपने आसपास की नकारात्मकता का दहन करके उसी प्रसन्नता में एवं अबीर गुलाल चलाकर होली का पर्व मनाना चाहिए |*