महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी । सुशीला और मैने शव को स्नान कराया। शरीर शांति से पडा है, फूलो से ढका है, धूप जल रही है। सुशीला और मै गीता-पाठ कर रहे है । महादेव की योगी और देशभक्त की भाति मृत्यु हुई है। दुर्गा, बाबला और सुशीला से कहो, शोक करने की मनाई है। ऐसी महान मृत्यु पर हर्ष ही होना चाहिए । अत्येष्ठि मेरे सामने हो रही है। भस्म रख लूगा ।'
भावना तो महादेव की खुराक थी । उसका बलिदान कोई छोटी चीज नही है । अकेला भी वह बहुत काम करेगा । मै इसे शुभ शकुन मानता हू । शुद्धतम बलिदान हुआ है, इसका परिणाम अशुभ नही हो सकता । महादेव मेरा अतिरिक्त शरीर था । कितनी दफा मैने उसे मैक्सवेल के पास भेजा है, दूसरो के पास भेजा है। मान लेता था कि महादेव को काम सौपा है तो वह कर लेगा ।
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उसे मेरा वारिस होना था, पर मुझे उसका वारिस होना पड़ा है । महादेव की समाधि पर जाना मेरे लिए बिल्कुल सहज बन गया है । मैं न जाऊ तो बेचैन हो जाऊ । वहा जाकर में कुछ करना नही चाहता, समय भी नही देना चाहता, मगर हो आता हू, इतना ही मेरे लिए बस है । अगर मै जिदा रहा तो यह जमीन आगाखा' से माग लूगा । वह न दे, यह सभव हो सकता है । मगर किसी रोज तो हिदुस्तान आजाद होगा । तब यह यात्रा का स्थान बनेगा | मै वहा जाता हू तो महादेव के गुणो का स्मरण करने के लिए, उन्हे ग्रहण करने के लिए । मैं उसकी स्मृति को खोना नही चाहता । और जिस तरह से वह यहा मरा, उससे उसकी स्त्री और उसके लडके के प्रति मेरी वफादारी भी मुझे बताती है कि मुझे वहा नियमित रूप से जाना चाहिए। हो सकता है कि मेरी जिंदगी मे यह जगह मुझे न मिल सके और इस जगह को यात्रा-स्थल बनते मै न देख सकू, मगर किसी-न-किसी दिन वह जरूर बनेगा, इतना मै जानता हू ।
आज तो मैं सब काम उसका काम समझकर करता हू बाहर जाऊगा तब भी उसीका काम करूगा ।
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'लगता ही नही कि महादेव सदा के लिए गया । कल
रात को स्वप्न मे वह लडकी कहती है, “महादेवभाई कहां है ?" मै उत्तर देता हू, "बहन, मै तो उसे श्मशान मे छोड आया हूँ ।" पीछे वह पागल सी हो जाती है, कहती है, “लाओ महादेव- भाई को उसे वहा क्यो छोड़ आये ? " . • महादेव की मै भाट की तरह स्तुति करता हू, मगर मेरा मन उसकी शिकायत भी करता है । उसकी मिसाल सपूर्ण या आदर्श नही मानना चाहिए । वह इस विचार का जप करते-करते चला गया कि मै बापू के बाद क्या कर सकता हू ? बापू से पहले चला जाऊ तो अच्छा है । मगर उसे तो कहना चाहिए था कि “नही, मुझे तो जिदा रहना है और बापू का काम करना है ।" यह दृढ़ सकल्प उसे मरने से रोक भी लेता । "
मेरे विचार से महादेव के चरित्र की सबसे बडी खूबी थी मौका पडने पर अपनेको भूलकर शून्यवत् बन जाने की उनकी शक्ति ।
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जमनालाल, मगनलाल और महादेव – इनमें से हरेक अपने-अपने क्षेत्र मे अनूठे थे । मेरा खयाल है कि उनकी जगह दूसरे नही ले सकते । मगर मैं कहूगा कि इन तीनो मे से महादेव मुझमे पूरी तरह खो गया था। मैं यह कह सकता हू कि मुझसे अलग उसकी कोई हस्ती ही नही रह गई थी ।
महादेव की एक बडी खूबी यह थी कि जो काम उन्हे सौपा जाता था, उसे करने के लिए वह सदा तैयार रहते और बड़े उत्साह से करते थे । इसी तरह वह एक अच्छे लेखक, अच्छे रसोइया और अच्छे कुली बन सके थे । अक्सर जो लोग मेरे साथ काम करने के लिए आते है, वे ऐसे ही बन जाते है । "
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महादेव गुलाब का फूल है ।
वह मेरे बॉसवेल ( जीवनी लिखनेवाले) बनना चाहते थे, फिर भी मुझसे पहले मरना चाहते थे। इससे बेहतर वह क्या कर सकते थे ? सो वह तो चले गये और मुझे उनकी जीवनी लिखने के लिए छोड़ गये । बच्चे अपने मा-बाप के पहले मरना चाहे तो इससे बढकर बेरहमी और क्या हो सकती है ? यह उन- का निरा स्वार्थ है । भले ही मै दूसरो को इस बात का यकीन न दिला 'सकू, . लेकिन यह मैं जरूर महसूस करता हू कि मौत कभी वक्त से पहले नही आती । दुनिया मे अपना काम खत्म करने से पहले कोई मर्द या औरत कभी नही मरता । महादेव ने पचास साल मे सौ बरस का काम पूरा कर डाला था । सो वह आराम करने चले गये, जिसपर उनका पूरा हक था।
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महादेव के मित्र और प्रशंसक उनके प्रिय काम करके ही उनकी बरसी मना सकते है । वह बड़े शक्तिशाली पुरुष थे । वह सुदर और सुडौल अक्षर लिखते थे । वह कई चीजो से प्यार करते थे । लेकिन उन सबमे चर्खे की जगह पहली थी । एक कलाकार होने के नाते वह नियम से बहुत बढिया कताई करते थे । कामकाज के भारी बोझ से थककर चूर हो जाने पर भी वह हमेशा कातने का वक्त निकाल लेते थे । चर्खा उन्हें फिर तरोताजा बना देता था ।
कई खूबियो मे उनके बेजोड अक्षर भी कोई कम महत्व नही रखते थे । उसमे कोई उनका सानी न था । रामदास स्वामी ने अपने एक दोहे में खूबसूरत अक्षरो की चमकीले मोतियो से खुलना की है। महादेव की कलम से निकले हुए अक्षर खरे मोती जैसे होते थे ।
उनकी तीसरी खूबी थी, हिदुस्तान की भाषाओं से उनका प्रेम । वह भाषा - शास्त्री थे । बगाली, मराठी और हिंदी पर उनका पूरा अधिकार था और वह उर्दू भी सीख चुके थे । '