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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

15 अगस्त 2023

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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि उन्होने अपनी कविता द्वारा भारतवर्ष का सदेश ससार को सुनाया है । इसीसे रवीद्रबाबू को सच्चे हृदय से इस बात की चिता है कि भारतवासी भारत माता के नाम से कोई झूठा या सारहीन सदेशा ससार को + सुनावे | हमारे देश का नाम न डूबने पावे, इस बात की चिता करना रवीद्रबाबू के लिए स्वाभाविक ही है ।"

...

शांतिनिकेतन मे आगमन मेरे लिए एक तीर्थ-यात्रा के समान था । बहुत दिनो से मेरी इच्छा वहा जाने की थी, लेकिन यह अवसर मलिकदा जाते समय ही मुझे मिल सका। मेरे लिए शातिनिकेतन नया नही है । १९१५ मे जब इसकी रूपरेखा बन रही थी तब मैं वही था । इसका मतलब यह नही कि अब इसका निर्माण क्रम रुक गया है। गुरुदेव खुद विकसित हो रहे है। वृद्धा- वस्था के कारण उनके मन के लचीलेपन मे कोई अंतर नही पड़ा है । इसलिए जबतक गुरुदेव की भावना की छाया उसके ऊपर है तबतक शातिनिकेतन की वृद्धि रुक नही सकती । वहा प्रत्येक मनुष्य की उनके प्रति जो श्रद्धा है वह ऊपर उठानेवाली है, क्योकि वह सहज है । मुझे तो इसने अवश्य ही ऊचा उठाया । कृतज्ञा छात्रो और अध्यापको ने उनको 'गुरुदेव' की जो उपाधि दे रखी है उससे शातिनिकेतन में उनकी स्थिति ठीक-ठीक व्यक्त होती है । यह स्थिति उनकी इसलिए है कि वह उस स्थान और वहा के समूह मे निमग्न हो गये है, अपनेको भूल गये है । मैने देखा कि वह अपनी प्रियतम कृति 'विश्व भारती' के लिए जी रहे है । वह चाहते है कि यह फूले-फले और अपने भविष्य के विषय मे निश्चित हो जाय । इस - के बारे में उन्होने मुझसे देर तक बातचीत की। लेकिन इतना भी उनके लिए काफी नही था, इसलिए जब हम विदा हो रहे थे तब उन्होने मुझे नीचे लिखा बहुमूल्य पत्र दिया

प्रिय महात्माजी,

आपने आज सुबह ही हमारे कार्य के 'विश्व भारती' - केद्र का विहगावलोकन किया है। मैं नही जानता कि आपने इसकी मर्यादा का क्या अदाज लगाया है। आप जानते है कि यद्यपि अपने वर्त मान रूप में यह सस्था राष्ट्रीय है, तथापि अत भावना की दृष्टि से यह एक सार्वदेशिक -- अंतर्राष्ट्रीय - सस्था है और अपने साधनो के अनुसार भरसक शेष जगत को भारत की संस्कृति का आतिथ्य प्रदान करती है ।

एक बडे गाढे अवसर पर आपने बिल्कुल टूटने से इसे बचाया और अपने पाव पर खडे होने मे इसकी सहायता की। आपके इस मित्रतापूर्ण कार्य के लिए हम आपके निकट सदा आभारी है ।

और अब शातिनिकेतन से आपके विदा होने के पहले मै आपसे जोरदार अपील करता हू कि यदि आप इसे एक राष्ट्रीय संपत्ति समझते है तो इस सस्था को अपने सरक्षण मे लेकर इसे स्थायित्व प्रदान करे । 'विश्व भारती' उस नौका के समान है, जो मेरे जीवन के सर्वोत्तम रत्नो से भरी हुई है और मुझे आशा है कि अपनी रक्षा के लिए अपने देशवासियों से यह विशेष देख-रेख पाने का दावा कर सकती है ।

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प्रेमपूर्वक — रवीद्रनाथ ठाकुर

इस सस्था को अपने सरक्षण मे लेनेवाला मै कौन होता हू चूकि यह एक ईमानदार आत्मा की कृति है, इसलिए ईश्वर का संरक्षण इसके साथ है । वह कोई दिखावे की चीज नही है । गुरुदेव स्वय सार्वदेशिक -- अतर्राष्ट्रीय - है, क्योकि वह सच्चे रूप मे राष्ट्रीय है । इसलिए उनकी सपूर्ण कृतिया सार्वदेशिक है और 'विश्व भारती' उन सबमे श्रेष्ठ है । मुझे इसमे किसी तरह का सदेह नही कि जहातक आर्थिक बोझ का संबध है इसके भविष्य बारे मे गुरुदेव को पूर्ण चिता से मुक्त कर देना चाहिए। उनकी हृदयग्राही अपील के जवाब मे जो कुछ सहायता करने लायक मै हू, करने का मैने उनको वचन दिया है । "

...

यहा आप लोगो के लिए कोई अतिथि या महमान बन- कर नही आया हू । शातिनिकेतन तो मेरे लिए घर से भी अधिक है । जब १९१४ मे मै इग्लैण्ड से लौटनेवाला था तब यही तो मेरे दक्षिण अफ्रीकावाले कुटुब का प्रेमपूर्वक आतिथ्य हुआ था और यहा मुझे भी करीब एक महीने तक आश्रय मिला था । जब आप सब लोगो को अपने सामने एकत्र देखता हू तो उन दिनो की याद मेरे हृदय पर छा जाती है। मैं कितना चाहता हू कि यहा ज्यादा दिन ठहरू, पर अफसोस कि यह सभव नही । यहा कर्तव्य का प्रश्न है । उस दिन एक मित्र को एक पत्र में मैंने लिखा था कि शातिनिकेतन और मलिकंदा की यह यात्रा मेरे लिए तीर्थ-यात्रा है । सचमुच इस बार शातिनिकेतन मेरे लिए 'शाति का निकेतन' सिद्ध हुआ । मै यहा राजनीति की सब चिता और झझट छोडकर मात्र गुरुदेव के दर्शन और आशीर्वाद लेने आया हू । मैने अक्सर एक कुशल भिक्षुक होने का दावा किया है । लेकिन आज गुरुव का मुझे जो आशीर्वाद मिला है उससे बढकर दान मेरी झोली मे कभी किसीने नही डाला है। मैं जानता हू कि उनका आशीर्वाद तो मुझे हमेशा ही है। मगर आज मेरा खास सौभाग्य है कि उन्हीके हाथो रूबरू मुझे आशीर्वाद मिला और इस कारण मेरे हर्ष का पार नही ।

डा० रवीद्रनाथ टैगोर के निधन मे हमने न केवल अपने युग के सबसे बड़े कवि को ही, बल्कि एक उत्कट राष्ट्रवादी को, जो कि मानवता का पुजारी भी था, खो दिया है। शायद ही कोई ऐसी सार्वजनिक प्रवृत्ति होगी, जिसपर उनके शक्तिशाली व्यक्तित्व की छाप न पडी हो । शातिनिकेतन और श्रीनिकेतन के रूप में उन्होने समस्त राष्ट्र के लिए ही नही अपितु समस्त ससार के लिए विरासत छोडी है ।

गुरुदेव की देह खाक मे मिल चुकी है, लेकिन उनके अदर जो जोत थी, जो उजेला था, वह तो सूरज की तरह था, जो तबतक बना रहेगा जबतक धरती पर जानदार रहेगे । गुरुदेव ने जो रोशनी फैलाई वह आत्मा के लिए थी। सूरज की रोशनी जैसे हमारे शरीर को फायदा पहुचाती है, वैसे गुरुदेव की फैलाई रोशनी ने हमारी आत्मा को ऊपर उठाया है। वह एक कवि थे और प्रथम श्रेणी के साहित्यिक थे । उन्होने अपनी मातृभाषा मे लिखा और सारा बगाल उनकी कविता के झरने से काव्य - रस का गहरा पान कर सका। उनकी रचनाओ के अनुवाद बहुत-सी भाषाओं मे हो चुके है। वह अग्रेजी के भी बहुत बड़े लेखक थे और शायद बिना अग्रेजी जाने ही वह उस जबान के इतने बड़े लेखक बन गये थे । मदरसे की पढाई तो उन्होने की थी, लेकिन यूनिवर्सिटी की कोई टैगोर की क्या बात । उन्होने क्या नही साधा साहित्य का एक भी क्षेत्र उन्होने छोडा है ? और सबमे कमाल | ऐसी अलौकिक शक्तिवाला आदमी हमारे यहा तो है हीं नही, लेकिन दुनिया में भी होगा या नही, इसमे मुझे शक है।

गुरुदेव की देह खाक मे मिल चुकी है, लेकिन उनके अदर जो जोत थी, जो उजेला था, वह तो सूरज की तरह था, जो तबतक बना रहेगा जबतक धरती पर जानदार रहेगे । गुरुदेव ने जो रोशनी फैलाई वह आत्मा के लिए थी। सूरज की रोशनी जैसे हमारे शरीर को फायदा पहुचाती है, वैसे गुरुदेव की फैलाई रोशनी ने हमारी आत्मा को ऊपर उठाया है। वह एक कवि थे और प्रथम श्रेणी के साहित्यिक थे । उन्होने अपनी मातृभाषा मे लिखा और सारा बगाल उनकी कविता के झरने से काव्य - रस का गहरा पान कर सका। उनकी रचनाओ के अनुवाद बहुत-सी भाषाओं मे हो चुके है। वह अग्रेजी के भी बहुत बड़े लेखक थे और शायद बिना अग्रेजी जाने ही वह उस जबान के इतने बड़े लेखक बन गये थे । मदरसे की पढाई तो उन्होने की थी, लेकिन यूनिवर्सिटी की कोई डिग्री उन्होने नही ली थी।

वह तो बस गुरुदेव ही थे । हमारे एक वाइसराय ने उनको 'एशिया का कवि' कहा था। उससे पहले किसी को ऐसी पदवी नही मिली थी। वह समूची दुनिया के भी कवि थे । यही क्यो, वह तो ऋषि थे । हमारे लिए वह अपनी ' गीताजलि' छोड गये है, जिसने उनको सारी दुनिया में मशहूर कर दिया। तुलसी- दासजी हमारे लिए अपनी अमर रामायण छोड गये है । वेदव्यास- जी ने महाभारत के रूप मे हमारे लिए मानव जाति का इतिहास छोड़ा है। ये सब निरे कवि नही थे । ये तो गुरु थे । गुरुदेव ने भी सिर्फ कवि के नाते ही नही, ऋषि की हैसियत से भी लिखा है । लेकिन सिर्फ लिखना ही उनकी अकेली खासियत नही थी । वह एक कलाकार थे, नृत्यकार थे और गायक थे । बढिया से बढिया कला मे जो मिठास और पवित्रता होनी चाहिए, वह सब उनमे और उनकी चीजो मे थी। नई-नई चीजे पैदा करने की उनकी ताकत ने हमको शातिनिकेतन, श्रीनिकेतन और विश्व भारती जैसी सस्था दी है । अपनी इन सस्थाओ मे वह भावरूप से विराज- मान है, और ये अकेले बगाल को ही नही, बल्कि समूचे हिदुस्तान को उनकी विरासत के रूप में मिली है। शातिनिकेतन तो हम सबके लिए असल मे यात्रा का एक धाम ही बन गया है। गुरुदेव अपने जीतेजी इन सस्थाओ को वह रूप नही दे पाये, जो वह देना चाहते थे, जिसका वह सपना देखते थे। कौन है, जो ऐसा कर पाया हो ? आदमी के मनोरथ को पूरा करना तो भगवान के हाथ में है । फिर भी ये सस्थाए हमे उनकी कोशिशो की याद दिलावेगी और हमेशा हमको यह बताती रहेंगी कि गुरुदेव के मन मे अपने देश के लिए कितनी गहरी प्रीति थी और उन्होने उसकी कितनी- कितनी सेवाए की है । "

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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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एक जमाना था, शायद सन् ' १५ की साल में, जब मै दिल्ली आया था, हकीम अजमल खां साहब से मिला और डाक्टर अंसारी से | मुझसे कहा गया कि हमारे दिल्ली के बादशाह अंग्रेज नही है, बल्कि ये हकीम साहब है । डाक्टर असार

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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

15 अगस्त 2023
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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

16 अगस्त 2023
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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

16 अगस्त 2023
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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

16 अगस्त 2023
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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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16 अगस्त 2023
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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

16 अगस्त 2023
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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

16 अगस्त 2023
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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्

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16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

16 अगस्त 2023
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स्वर्गीय नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे । मै सुन चुका था कि वह एक अच्छे लेखक है। नेशनल इडियन एसो - सिएशनवाली मिस मैंनिग के यहा उनसे मिला | मिस गजानती थी कि सबसे हिल-मिल जाना मैं नही जानता । जब कभी मै

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