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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

16 अगस्त 2023

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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स्नेह से ढक लिया, वह मुझे मेरी मा की याद दिलाता है। मैं यह कभी नही जानता था कि उनमे मा के गुण भी है । . बारदोली और खेडा के किसानों के लिए उनकी चिता में कभी नही भूल सकता । "

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सरदार वल्लभभाई हँसी मे कहा करते थे कि उनके हाथ की रेखाओ मे जेल की रेखा नही है । उन लोगो के लिए जेल है ही नही, जिनके मन मे जेल महल के समान है और जो जेल और महल कोई भेद नही समझते । जहा आज सरदार विराजे है, वहा हम सबको जाना है, पर बिना योग्यता प्राप्त किये जेल नही मिलती । सरदार वल्लभभाई की अमूल्य सेवाओ के हम पात्र थे या नही, इसे प्रमाणित करने का अवसर अब आ गया है। उन्हें गुजरात से आशा क्यो न हो ? उन्होने मजदूरो की सेवा मे कौन कमी रखी है ?

डाकवालों और रेलवे के नौकरो ने उनके पास बैठकर स्वराज्य का पाठ कौन कम पढा है ? अहमदाबाद का ऐसा कौन नागरिक है जो नही जानता कि उन्होने अपना सर्वस्व होम कर शहर की सेवा की है ? शहर में जब भीषण महामारी फैली थी, उन दिनो गरीबों की सेवा का इतजाम करनेवाला कौन था ? वल्लभभाई | अकाल पड़ने पर अकाल पीडितो की मदद के लिए दौड पडनेवाला कौन था ? वल्लभभाई । गुजरात में ऐतिहासिक बाढ आई, लाखों लोग घरबारविहीन बन गये, खेतो की फसल बह गई । उस समय सारे गुजरात का सकट टालने के लिए सैकडो स्वयसेवको को तैयार करनेवाला, लोगो के लिए एक करोड रुपये सरकार के खजाने से निकलवानेवाला कौन था ? वल्लभभाई ही । और वह भी वल्लभभाई ही थे, जिन्हें बारदोली की जीत के लिए ऋणी जनता ने सरदार कहकर पुकारा और जो संपूर्ण स्वराज्य की आखिरी लड़ाई के लिए जनता को तैयार कर रहे थे । वल्लभभाई तो अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जेल पहुच गये । अब हमें क्या करना चाहिए ? इस सवाल का एक जवाब तो साफ ही है। हम हिम्मत न हारे, उलटे हममे से हरएक दुगुनी दृढता और दुगुनी हिम्मत के साथ सविनय - भग के लिए तैयार हो जाय और जेल की, या मौत मिले तो मौत की राह पकड़ ले। सरदार के जाने के बाद अब रहनुमा कौन होगा? इस तरह का नामर्दी से भरा हुआ सवाल कोई अपने मन मे न उठने दे । • जिसे सविनय -भग करना है, उसके पास आज बहुतेरे साधन पड़े हुए है और सरकार नये-नये साधन पैदा कर रही है । जैसे हमारे लिए यह जीवन-मरण का खेल है, वैसे ही सरकार के लिए भी है। मालूम होता है कि उसकी हस्ती का आधार ही स्वतंत्र स्वभाव के मनुष्यो को दबाने पर है, नही तो वह वल्लभभाई के समान शाति, रक्षा के लिए प्रसिद्ध आदमी को क्यों पकडती ? 

सरदार के लिए सब समान है, एक नन्हा बालक भी इसे जाता है । उन्हे तो गरीब मात्र की सेवा करनी है। फिर भले ही भगी हो या ब्राह्मण, गुजराती हो या मद्रासी, राष्ट्र ने उनकी इस विशेषता को पहचाना और पहचानकर राष्ट्रपति बनाया ।"सरदार मेरे सगे भाई के समान है, तथापि इतना प्रमाण पत्र देते हुए मुझे जरा भी सकोच नही होता । "

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वल्लभभाई अरबी घोडे की तेजी से दौड़ रहे है । संस्कृत की किताब हाथ से छूटती ही नही । इसकी मुझे आशा नही थी ! - लिफाफो मे तो कोई उनकी बराबरी नही कर सकता । लिफाफे वह नापे बिना बनाते है और अदाज से काटते है, मगर बराबर के निकलते है और फिर भी ऐसा नही लगता कि इसमे बहुत समय लगता है । उनकी व्यवस्था आश्चर्यजनक है। जो कुछ करना हो उसे याद रखने के लिए छोडते ही नही । जैसे आया वैसे ही कर डाला । कातना जब से शुरू किया है, तब से बराबर समय पर कातते है । इस तरह सूत मे और गति में रोज सुधार होता जा रहा है । हाथ में लिया हुआ भूल जाने की बात तो शायद ही होती है । और जहा इतनी व्यवस्था हो, वहा घाधली तो हो ही कैसे ?

कई मुसलमान दोस्तो ने शिकायत की थी कि सरदार का रुख मुसलमानो के खिलाफ है। मैने कुछ दु ख से उनकी बात सुनी, मगर कोई सफाई पेश न की । उपवास शुरू होने के बाद मैने अपने ऊपर जो रोक-थाम लगाई हुई थी वह चली गई । इसलिए मैने टीकाकारों को कहा कि सरदार को मुझसे और पंडित नेहरू से अलग करके और मुझे और पंडित नेहरू को खामख्वाह आसमान पर चढाकर वे गलती करते है ।

इससे उनको फायदा नही पहुच सकता । सरदार के बात करने के ढग में एक तरह का अक्खडपन है, जिससे कभी-कभी लोगो का दिल दुख जाता है, अगरचे सरदार का इरादा किसीको दुखी बनाने का नही होता। उनका दिल बहुत बडा है । उसमें सबके लिए जगह है । सो मैने जो कहा, उसका मतलब यह था कि अपने जीवन भर के वफादार साथी को एक बेजा इलजाम से बरी कर दू । मुझे यह भी डर था कि सुननेवाले कही यह न समझ बैठे कि मैं सरदार को अपना 'जी हुजुर' मानता हू । सरदार को प्रेम से मेरा 'जी हुजूर' कहा जाता था । इसलिए मैने सरदार की तारीफ • करते समय कह दिया कि वह इतने शक्तिशाली और मन के मज़बूत है कि वह किसीके 'जी हुजूर' हो ही नही सकते । जब वह मेरे 'जी हुजूर' कहलाते थे तब वह ऐसा कहने देते थे, क्योकि जो कुछ मै कहता था वह अपने-आप उनके गले उतर जाता था । वे अपने क्षेत्र मे बहुत बड़े थे । अहमदाबाद म्युनिसिपैलिटी में उन्होने शासन चलाने मे बहुत काबलियत बताई थी। मगर वह इतने नम्र थे कि उन्होने अपनी राजनैतिक तालीम मेरे नीचे शुरू की। उन्होने उसका कारण मुझे बताया था कि जब मै हिदुस्तान में आया था उन दिनो जिस तरह का राज-काज हिदुस्तान में चलता था, उसमें हिस्सा लेने का उन्हें मन नही होता था। मगर अब जब सत्ता उनके गले आ पडी तब उन्होने देखा कि जिस अहिसा को वह आजतक सफलतापूर्वक चला सके अब वह नही चला सकते । मैने कहा है कि मैं समझ गया हू कि जिस चीज को मै और मेरे साथी अहिसा कहा करते थे वह सच्ची अहिंसा न थी । वह तो नकली चीज थी और उसका नाम है निष्क्रिय प्रतिरोध । हा, किनके हाथो में निष्क्रिय प्रतिरोध किसी काम की चीज है ? जरा सोचिये तो सही कि एक कमजोर आदमी जनता का प्रतिनिधि बने तो वह अपने मालिको की हँसी और बेइज्जती ही करवा सकता है। मै जानता हू कि सरदार कभी उन्हे सौपी हुई जिम्मेदारी को दगा नही दे सकते । वे उसका पतन बर्दाश्त नही कर सकते।'

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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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एक जमाना था, शायद सन् ' १५ की साल में, जब मै दिल्ली आया था, हकीम अजमल खां साहब से मिला और डाक्टर अंसारी से | मुझसे कहा गया कि हमारे दिल्ली के बादशाह अंग्रेज नही है, बल्कि ये हकीम साहब है । डाक्टर असार

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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

15 अगस्त 2023
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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

15 अगस्त 2023
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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

15 अगस्त 2023
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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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अध्याय 12: अब्बास तैयबजी

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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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अध्याय 14: महादेव देसाई

16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

16 अगस्त 2023
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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

16 अगस्त 2023
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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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अध्याय 18: जमनालाल बजाज

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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्

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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

16 अगस्त 2023
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स्वर्गीय नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे । मै सुन चुका था कि वह एक अच्छे लेखक है। नेशनल इडियन एसो - सिएशनवाली मिस मैंनिग के यहा उनसे मिला | मिस गजानती थी कि सबसे हिल-मिल जाना मैं नही जानता । जब कभी मै

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