सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और पूर्व और दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय प्रतिनिधि के रूप में की गई महान सेवा के लिए वह इस सम्मान की पात्र है और आजकल के दिनो मे जबकि स्त्री जाति के अदर भारी जागृति हो रही है, स्वागत - कारिणी - समिति का भारतवर्ष की एक सर्वोत्तम प्रतिभाशालिनी पुत्री को सभापति चुनना भारतवर्ष की स्त्री जाति का समुचित सम्मान करना है । उनके सभापति चुने जाने से हमारे प्रवासी देश - भाइयो को पूर्ण संतोष होगा और इससे उनके अदर वह साहस पैदा होगा, जिससे वे अपने सामने उपस्थित लडाई को लड सकेगे । राष्ट्र द्वारा दिये जाने वाले सबसे ऊंचे पद पर उनका होना स्वतंत्रता को हमारे अधिक समीप लावे । '
अमेरिका के लिए श्री सरोजिनीदेवी ने गत १२ ता० को हिदुस्तान का किनारा छोडा । यूरोप, अमेरिका, इत्यादि मुल्को मे अपनी स्थायी सभाए स्थापित करके या समय-समय पर अपने प्रतिनिधि भेजकर हमारे बारे मे जो झूठी मान्यताए प्रचलित हो गई है, उन्हें दूर करने की आशा अनेक आदमी रखते है । मुझे यह आशा हमेशा ही गलत जान पडी है । ऐसा करने से हम सार्व-. जनिक धन का और जिनका और अच्छा उपयोग हो सकता है, उन लोगो के समय का दुरुपयोग करेगे । किंतु पश्चिम मे अगर किसीका जाना फल सकता है तो सरोजिनीदेवी का या कविवर वन्द्रनाथ ठाकुर का जाना अवश्य फल सकता है । सरोजिनीदेवी का नाम उनके काव्यो से पश्चिम में प्रसिद्ध है । उनमे चतुराई भी वैसी ही है । उन्हें यह भली- भाति मालूम है कि कहां, क्या और कितना कहना चाहिए। किसीको दुख पहुचाये बिना खरी-खरी सुना देने की कला उन्होने साधी है । जहा कही वह जाती है, उनकी बात सुने बिना लोगों का काम चलता ही नही है । दक्षिण अफ्रीका
अपनी शक्ति का सपूर्ण उपयोग करके उन्होने वहा के अंग्रेजो का मन हरण किया था और सुदर विजय प्राप्त करके सर हबीबुल्ला- प्रतिनिधि-मंडल का रास्ता साफ किया था । वहां का काम कठिन था, किंतु वहापर उन्होने अपनी मर्यादा निश्चित करके कानून के जाल - पेचो मे न पडते हुए, मुख्य बात मे लगे रह- कर अपना काम भली-भाति किया था और हिदुस्तान का नाम चमकाया था। ऐसा ही काम वे अमेरिका आदि देशो मे भी करेगी।
अमेरिका मे उनकी हाजिरी ही मिस मेयो के असत्य का जवाब हो जायगी । उनका साहस भी उनकी दूसरी शक्तियो के ही समान है । परदेश जाने मे न तो उन्हें किसी सहायक की आवश्यकता रहती है और न किसी मत्री की ही । जहा कही जाना हो वह अकेले निर्भयता से विचर सकती है । उनकी ऐसी निर्भयता स्त्रियों के लिए तो अनुकरणीय है ही, पुरुषो को भी लजानेवाली है । हम अवश्य यह आशा रख सकते है कि उनकी पश्चिम की यात्रा मे से अच्छा फल निकलेगा ।"
अमेरिका से कई - एक मित्रों के पत्र बराबर मेरे पास आते रहते हैं, जिनमे सरोजिनीदेवी के काम की प्रशसा रहती है । मित्र लिखते है कि सरोजिनीदेवी अमेरिका मे बडे महत्व का काम कर रही है और अपनी सारी ईश्वरदत्त प्रतिभा का इस देश के लिए पूरा-पूरा उपयोग कर रही है। इसमे शका नहीं कि उन्होने अमेरिकावासियो का मन मोह लिया है। कनाडा की एक बहन ने एक लंबे पत्र मे अपने कुछ अनुभव लिखकर भेजे है, उसमे थोड़ी सी बाते नीचे देता हू
“सरोजिनी देवी थोडे समय के लिए मेरी मेहमान बनी थी । आपके उन मित्र और दूत से मिलकर मैने अपने-आपको बडभागी पाया है। में खुद एक स्त्री हू, वह भी स्त्री ही है। साथ ही वह तो कवि और सुधारक है, इसीलिए उन्होने मेरा हृदय और भी चुरा लिया है । उनकी आत्मा का मुझपर बहुत ज्यादा असर हुआ है और इतने दिन के बाद भी उन- के मिलाप की बात हमारे हृदय मे जैसी-की-तैसी बनी हुई है । जिस गिरजाघर मे सरोजिनीदेवी ने व्याख्यान दिया था वह तो श्रोताओ से खचाखच भर गया था। उनके ज्ञान की, उनके अनु- भवों की, उनकी काव्य-शक्ति की, उनके मधुर कोकिल कंठ की, उनके विनोद की और अग्रेजी भाषा पर उनके प्रभुत्व की में आपसे क्या बात कहू ? जैसे-जैसे उनकी वाणी का प्रवाह बढता गया, वैसे-वैसे लोग मारे आश्चर्य के चकित होते गये और आखिर- कार उनके गुणो पर पूरे-पूरे मुग्ध हो गये ।
उन्होने हमारे सामने जितनी भी समस्याए रखी, हममे से कोई भी उनका उत्तर न दे सका । मेरे पास एक व्यवहार कुशल व्यापारी बैठे हुए थे, उन्होने समाधित होकर उनका सारा व्याख्यान सुना । जो प्रश्न पूछे गये सरोजिनीदेवी ने उनके ठीक-ठीक उत्तर दिये और बीच-बीच मे जिस ढंग से उन्होने विनोद का सहारा लिया उसे देखकर तो पूर्वोक्त व्यापारी महाशय से बोले बिना न रहा गया । उन्होने कहा, 'ऐसी शक्ति तो मैने किसी भी दूसरी स्त्री मे नही देखी। अगर सच कहू, मेरी राय मे कोई भी पुरुष इनके मुकाबले मे खडा. नही रह सकता ।' वर्तमान भारत के विषय में उन्होने जो कहा, वह बहुत ज्यादा असर करनेवाला था । उन्होने हमारी न्याय-प्रियता को जागृत किया, हमारे हृदयो को पानी-पानी कर दिया और हमे उसी समय यह अनुभव होने लगा कि आपके वहा भी उसी तरह का राज्यतंत्र होना चाहिए, जैसा हमारे यहा है । सरोजिनीदेवी की रचना मे, मालूम होता है, ईश्वर ने कई रंग पूरे है । उनसे भोजन के समय मिलिये या सम्मेलनो मे मिलिये, सा- मान्य वार्तालाप के लिए मिलिये अथवा और किसी काम के लिए, हर हालत में उनकी प्रतिभा बिखरी पडती थी । उनके उत्साह का तो पार ही नही है । कई निमत्रणो को स्वीकार कर चुकी है, एक ही दिन में कई जगह जाती है, लेकिन मालूम नही होता कि थकी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है मानो उनके पास शक्ति का कोई अटूट भडार है । लोकप्रियता से वह फूल नही उठती । यहा की सब अच्छी चीजे उन्हे पसद है । वह बच्चों को प्यार करती है, सुंदर फूल उनका मन चुरा लेते है, हमारे वृक्ष, हमारे सरोवर और हमारी नदिया उन्हे आनद प्रदान करती है, फिर भी वह भविष्य hat ही भूलती। यानी, स्त्री जाति मे जो कमजोरिया रहती है और प्रशसा के कारण जिस तरह बहुधा स्त्रिया अपना आपा भूल जाती है, उस तरह का भय मुझे सरोजिनीदेवी के बारे मे नही है ।"
समझता कि इन बहन ने जिन शब्दो मे सरोजिनीदेवी की शक्ति का वर्णन किया है उनमें कोई बात बढाकर लिखी गई है । सरोजिनीदेवी मे वस्तुस्थिति को पल भर में समझ लेने की अपूर्व शक्ति है। वह अपनी मर्यादा को समझती है । अर्थशास्त्रियो और राजनैतिक नेताओ की बारीकी में वह कभी नही उतरती । इस तरह के ज्ञान का न तो वह कभी दावा करती है और न आडबर ही । साधारण आदमी के पास जितना ज्ञान होता है, उतने ही ज्ञान
पूजी से वह अपना काम इतनी चतुराई से कर लेती है कि सामनेवाला आदमी उन्हे कभी उलझन मे डाल ही नही सकता । उलटे जो कुछ उनसे ग्रहण करता है उसीमे इतना सतोष अनुभव करता है, मानो उसे सबकुछ मिल गया हो।'
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