ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन - निवास - वासियो की तजवीज इस प्रकार उनकी ७० वी जयती मनाने की है, जिस से ठक्करबापा के दिवस पर, हरिजन - कार्य के निमित्त, उन्हे . ७०००) की एक विनम्र थैली भेट करना चाहते है । इसके लिए उन्होने मेरा आशीर्वाद मागा है । यह भी चाहते है कि उनके इस शुभ प्रयत्न को में प्रकाश मे ला दू । पर मैने तो उन्हे झिडका है कि उनमे आत्म-श्रद्धा की कमी है। ठक्करबापा एक विरल लोकसेवक है । वह विनम्र स्वभाव के है । वह प्रशसा के भूखे नही । उनका जीवन कार्य ही उनका एकमात्र सतोष और विश्राम है। वृद्धावस्था उनके उत्साह को मद नही कर सकी है। वह स्वय एक सस्था है । एक बार जब मैने उनसे कहा कि वह थोडा आराम ले ले तो तुरत उनका जवाब आया, “जब इतना तमाम काम करने को पड़ा है, तब मै आराम कैसे ले सकता हू ? मेरा काम ही मेरा आराम है ।" अपने aar - कार्य मे वह जिस प्रकार अपनी शक्ति लगा रहे है, उसे देख कर तो उनके आस-पास रहनेवाले नवयुवक भी लज्जित हो जाते है । इतने महान कार्य के लिए और उस जनसेवक के लिए, जो अपने विशाल वृद्ध कधो पर इतना भारी भार वहन कर रहा है, ७०००) की थैली एक प्रकार का अपमान है । कार्यकर्त्ताओ का तो यह लक्ष्य होना चाहिए कि सारे हिदुस्तान से वे ७०,००० ) से कम तो किसी हालत मे इकट्ठे नही करेगे । महान् सेवा- प्रवृत्ति और उसके सेवारत पिता को देखते हुए, यह ७०,००० ) की रकम भी कोई चीज नही है । लेकिन एक महीने के अंदर यह कम इकट्ठी करनी है, इस दृष्टि से यह ठीक ही है । "
भारत सेवक समिति को अपने प्राणो की तरह प्रिय समझने- वाले एक मित्र श्री ठक्करबापा - कोष के लिए दस रुपये का चदा भेजते हुए लिखते है—
"श्री ठक्करबापा की प्रशंसा में लिखे गये आपके एक-एक शब्द का मै समर्थन करता हू। इस सबंध में मेरी एक ही सूचना है और वह यह कि बापा के पुण्य कार्यो का सारा श्रेय भारत- सेवक- • समिति को महज इसलिए नही मिलना चाहिए कि बापा उसके एक सदस्य है । समिति ने बिना किसी हिचकिचाहट के उनको अपना सदस्य माना है और बापा के द्वारा मानव जाति की जो. महान सेवा हुई है, उसपर हमेशा ही गर्व किया है ।"
यह शिकायत बिल्कुल ठीक है । दरअसल बात तो यह है कि बापा की कई विशेषताओ का उल्लेख करते हुए में उनकी एक खास विशेषता का उल्लेख करना भूल गया हू, इसका 'खयाल ही न रहा । बात यह कि भारत सेवक समिति की सदस्यता स्वीकार करने से पहले बापा म्युनिसिपल कारपोरेशन, बबई के रोड safar का काम करते थे । हरिजन सेवक - सघ को उनकी सेवाएं भारत समिति की ओर से ही बतौर कर्ज के मिली है ।
बापा की इकहत्तरवी जयती मनाने मे मुझे हाजिर होना चाहिए । लेकिन मैं इस लायक नही रहा हू । मेरी तो हार्दिक आशा है कि बापा सौ वर्ष पूरे करे । बापा का जन्म ही दलितो की सेवा के लिए है, वह भले ही अस्पृश्य हो या भिल्ल या सताल या खासी इत्यादि । उनकी कदर करने में भी हम दलितो की कुछ-न-कुछ सेवा करते है । बापा की सेवा ने हिदुस्तान को बढाया है । "