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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023

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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी बार उनके सामने रखे । भारत सेवक समिति और शास्त्रीजी ने यह बडा ही त्याग किया है, जो वह इस निर्णय पर पहुचे है । यह तो एक प्रकट रहस्य है कि यदि यह प्रस्ताव नही किया जाता तो वह भारत मे अपना काम छोडकर इस जिम्मेदारी को अपने सिर पर लेने के जरा भी इच्छुक नही थे । परतु जब उनसे साग्रह यह अनुरोध किया गया कि वह ही एक ऐसे आदमी है, जो उस समझौते के अनुसार कार्य शुरू कर सकते है, जिसके स्वीकृति कराने में उनका बहुत भारी हाथ रहा है, तो उन्हें इस प्रार्थना और आग्रह को मजूर करना ही पा । दक्षिण अफ्रीका से समय-समय पर जो तार भेजे गये थे उनसे हमे पता चलता है कि वहा के अग्रेज भी इस बात के लिए कितने उत्सुक थे कि शास्त्रीजी ही इस सम्माननीय पद को ग्रहण करे । शास्त्रीजी की वक्तृत्व-शक्ति, निस्पृहता, मधुर विवेक- शीलता और असीम सचाई ने यूनियन सरकार और वहा के यूरो- पीय लोगो के हृदय मे उनके लिए चाह और आदर उत्पन्न कर दिया, जब वह हबीबुल्ला - शिष्टमंडल के साथ कुछ दिन के लिए दक्षिण अफ़्रीका ये थे । मै खुद जानता हू कि हमारे दक्षिण अफ्रीका- निवासी भाई इस बात के लिए कितने असीम चिंतातुर थे कि किस प्रकार शास्त्रीजी ही, वहा भारत के पहले राजदूत बनकर जाय । और श्रीयुत श्रीनिवास शास्त्रीजी के लिए भी तो, जिन्हे परमात्मा ने ऐसे उदार हृदय से भूषित किया है, ऐसे सर्वसम्मत अनुरोध को अस्वीकार करना असंभव था । अब यह प्राय निश्चित है कि शीघ्र उनकी बाकायदा नियुक्ति होकर, उसकी खबर प्रकाशित कर दी जायगी ।

इन पहले राजदूत का काम भी उनके लिए निश्चित कर दिया जायगा । निस्सदेह, यूनियन सरकार और हमारे दक्षिण अफ्रीका के भारतीय भाई भी भारत के इस पहले राजदूत से बडी-बडी आशाए तो करते ही होगे । चूकि शास्त्रीजी स्वयं भारतीय और एक विख्यात पुरुष है, निस्सदेह यूनियन सरकार जरूर यह सोचती होगी कि जातक भारतीयो से सबध है, उन्हें समझा-बुझाकर शास्त्रीजी सरकार के प्रस्तावो आदि का काम सरल कर देगे । दूसरे शब्दो मे यो कहिये कि यूनियन सरकार उनसे आशा करती • है कि शास्त्रीजी उसकी बातो को भारतीय समाज तथा भारत- सरकार के सामने सहानुभूति - पूर्वक रखेगे। इधर भारतीय समाज भी आशा करता है कि शास्त्रीजी इस बात का जरूर आग्रह करेगे कि समझौते का सम्मानयुक्त, बल्कि उदारता-पूर्वक पालन हो । दो प्रतिस्पर्धी उम्मीदवारो को सतुष्ट करना यो कठिन तो है ही, पर दक्षिण अफ्रीका में, जहा कि जातियो और दलों के स्वार्थो में आश्चर्यजनक पारस्परिक विरोध है, यह काम कही अधिक मुश्किल है। किंतु मैं जानता हू कि अगर इस सूक्ष्म तराजू को अपने हाथ मे कोई उठा सकता है और दक्षिण अफ्रीका से संबंध रखनेवाले सभी दलो को सतुष्ट कर सकता है तो अकेले शास्त्रीजी ही एक ऐसे आदमी है । मेरा खयाल है कि यूनियन सरकार के मंत्री यह तो अपेक्षा नही रखते होगे कि भारतीय समाज को उसके न्याय्य स्वत्वो को दिलाने में शास्त्रीजी इच भर भी पीछे हट जाय । हा, अधिक-से-अधिक शास्त्रीजी यह कर सकते है कि वह भारतीयों को १९१४ के समझौते का उल्लघन करके आगे बढने से रोके, कम- से-कम तबतक तो जरूर रोके, जबतक कि वहा के भारतीय अनु- करणीय आत्मसयम और अपने अन्य व्यवहार द्वारा १९१४ मे प्राप्त किये समझौते से आगे बढने की अपनी पात्रता को सिद्ध नही कर देते । 

अतः यदि इस दक्षिण अफ्रीका के हमारे भारतीय भाई भारत के प्रतिनिधि के काम को सरल और अपनी परिस्थिति को सुरक्षित कर लेना चाहे तो वे उनसे बड़े-बड़े चमत्कारो की आशाए करना छोड दे । उनका यह अनुमान गलत होगा कि "चूकि हम अभी एक सम्माननीय समझौता करा चुके है और उसपर अमल कराने के लिए भारत का एक महान पुरुष हमारे यहा आ रहा है, इसलिए अब तो हमारी परिस्थिति में एकदम कायापलट हो जायगा ।" उन्हे याद रखना चाहिए कि माननीय शास्त्रीजी वहा उनके वकील बनकर, उनके प्रत्येक व्यक्तिगत शिकायत के लिए ast को नही जा रहे है । उनको मामूली व्यक्तिगत शिकायते सुना-सुनाकर परेशान करना उस सोने के अडे देनेवाले पक्षी की हत्या करने के समान है । वह तो वहा भारतीय सम्मान के रक्षक बन कर जा रहे है । सर्वसाधारण भारतीय समाज के स्वत्व और स्वाधीनता की रक्षा के लिए वह वहा जा रहे है । शास्त्रीजी वहा यह देखने के लिए जा रहे है कि यूनियन सरकार कही कोई नवीन रुकावटी कानून न बनाने पाये । अलावा इसके वह देखेगे कि वर्त मान कानूनो का पालन उदारता पूर्वक तो हो रहा है । उनके पालन भारतीयो के स्वत्वो को कोई हानि तो नही हो रही है, आदि । अत यदि उनसे कोई व्यक्तिगत शिकायत की भी जाय तो वह किसी व्यापक सर्वसाधारण नियम का उदाहरण स्वरूप हो । इस लिए यदि व्यक्तिगत मामलो मे शास्त्रीजी की सहायता मागने मे दक्षिण अफ्रीका का भारतीय समाज दूरदर्शी सयम से काम न लेगा तो वह उनकी परिस्थिति को असह्य और उस महान् उद्देश्य के लिए उन्हें असमर्थ बना देगा जिसके लिए वह वहा विशेष रूप से भेजे गये है । और सचमुच एक राजदूत की उपयोगिता केवल यही समाप्त नही हो जाती कि वह केवल सरकारी पद से सबध रखने- वाले अपने कर्तव्य का पालनभर कर ले, बल्कि उसकी वह अप्र- ' त्यक्ष सेवा कही अधिक उपयोगी है जो सरकारी तथा गैरसरकारी कामो को लेकर उससे मिलने-जुलनेवाले लोगो पर उसके मिलन- सार स्वभाव और सच्चरित्र के प्रभाव द्वारा होती है । अत. यदि हमारे देशभाई शास्त्रीजी के दिमागी और हृदय के महान गुणों करना चाहें तो वे मेरी बताई उपर्युक्त मर्यादाओ का जरूर खयाल रखे ।"

...

इस सप्ताह मे मिले पत्र में एक सज्जन ने क्लर्कस्डोप की प्रसिद्ध घटना का, जिसके बारे में दक्षिण अफ्रीका के अखबारो के पन्ने-के-पन्ने भरे रहते है, आखो देखा सच्चा वर्णन किया है। यूनि- यन सरकार के निसंकोच पूरी और स्पष्ट माफी माग लेने से यद्यपि इस घटना पर राजनैतिक दृष्टि से अब कुछ भी कहना बाकी नही रह जाता है और न कुछ कहने की जरूरत ही है तो भी इस षडयंत्र के सामने जिसका कि परिणाम श्री शास्त्रीजी के लिए प्राणात भी हो सकता था, उन्होने जो उदारता और हिम्मत का व्यवहार किया उसकी प्रशसा कितनी ही क्यो न की जाय वह कम ही होगी । मेरे सामने जो पत्र है उससे मालूम होता है कि जिस सभा में वह व्याख्यान दे रहे थे, उसको तोड देने के लिए डेप्टीमेयर के नेतृत्व मे जो दल आया था उसने बत्तिया बुझा दी, फिर भी वह भारत माता का सच्चा सपूत और प्रतिनिधि अपने स्थान पर यत्किचित् भी घबडाये बिना डटा रहा, जरा भी न हटा और जब भडाका होने के कारण सभा के हाल मे श्रोताओ को सास लेना भी मुश्किल हो गया तब वह बाहर गये और वहा, जैसे कोई बात ही नही हुई हो, इस घटना के प्रति इशारा तक न करते हुए उन्होने अपना व्याख्यान पूरा किया । यो तो इस घटना के पहले ही दक्षिण अफ्रीका के यूरोपियनो में वह प्रिय हो गये थे; परंतु शास्त्रीजी के इस धीर हिम्मतभरे और उदार आचरण ने वहा के यूरोपियनों के विचार में उन्हें और भी अधिक गौरवान्वित कर दिया है और क्योकि उन्हें अपने लिए यश नही चाहिए था (शास्त्रीजी से अधिक कीर्ति से लजानेवाले मनुष्य कदाचित् ही मिल सकेगे ) उन्होने, जिस काम के वह प्रतिनिधि थे, उसके लाभ मे अपनी लोकप्रियता का बडी योग्यता और सफलता पूर्वक उपयोग किया । दक्षिण अफ्रीका मे उनके बहुत ही थीडे समय के निवास मे उन्होने अपने देशवासियो गौरव बहुत बढ़ा दिया है। हम यह आशा करे कि वहा के भार- तीय अपने आदर्श व्यवहार से अपनेको उस गौरव के योग्य प्रमा- णित करेंगे ।

परतु दक्षिण अफ्रीका के मुश्किल और नाजुक प्रश्न को हल करने में उनके कार्य का महत्व केवल इसीपर, जो एक घटना - मात्र है, निर्भर नही है । हम उनके दफ्तर की भीतरी कार्यवाही के विषय मे, सिवा उनके परिणामो के कुछ नही जानते । पर इसमे उन्हें उस सारी राजनीति -कला का उपयोग करना पड़ता था जो अपने पक्ष के सत्य होने के विश्वास से प्राप्त होती है तथा जो झूठ, कपट तथा नीचता को कभी बरदाश्त नही कर सकती । परतु हम यह जरूर जानते है कि सस्कृत और अंग्रेजी की अपार विद्वता और जुदा-जुदा विषय का ज्ञान, वाक्यपटुता इत्यादि कुदरत से प्रचुरता में मिली हुई बख्शीशो को अपने कार्य के लिए उपयोग करने में उन्होने कोई कसर नही की है । चुनंदा यूरोपियनो के बड़े श्रोतृ- समूह के आगे वह भारतीय तत्वज्ञान और सस्कृति पर व्याख्यान देते थे, जिससे उनके दिलो पर बड़ा असर होता था और उस पक्ष - पात के परदे को, जिसके कारण यूरोपियनो का बडा समूह भारतीय मे कोई गुण ही नही देख सकता था, उन्होने पतला कर दिया है । दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रश्न में, ये व्याख्यान ही शायद उनका सबसे बडा और अधिक स्थायी हिस्सा है ।"

मौत ने न सिर्फ हमारे बीच से, बल्कि समूची दुनिया के बीच से भारत माता के एक बड़े-से-बड़े सपूत को उठा लिया है । उनके परिचय मे आनेवाला हरकोई देख सकता था कि वह हिंदु- स्तान को बहुत ही प्यार करते थे। पिछले दिनो जब मैं उनसे मद्रास मे मिला था, उन्होने सिवा हिदुस्तान और उसकी संस्कृति के, जिनके लिए वह जीये और मरे, दूसरी किसी बात की चर्चा ही नही की। जब वह मृत्यु - शय्या पर पडे दीखते थे, तब भी मुझे विश्वास है। कि उनको अपनी कोई चिंता नही थी। उनका संस्कृत - ज्ञान अग्रेजी के उनके अगाध ज्ञान से ज्यादा नही तो कम भी न था । मुझे एक ही बात और कहनी है और वह यह कि अगरचे राजनीति में हमारे खयाल एक-दूसरे से मिलते नही थे, तो भी हमारे दिल एक ही थे और मै यह कभी सोच नही सकता कि उनकी देशभक्ति हमारे किसी बड़े-से-बडे देशभक्त से कम थी। शास्त्रीजी जिदा है, यद्यपि उनका नामधारी शरीर भस्म हो चुका है ।


प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत बेहतरीन लेख लिखा है आपने 👍🙏🙏

16 अगस्त 2023

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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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एक जमाना था, शायद सन् ' १५ की साल में, जब मै दिल्ली आया था, हकीम अजमल खां साहब से मिला और डाक्टर अंसारी से | मुझसे कहा गया कि हमारे दिल्ली के बादशाह अंग्रेज नही है, बल्कि ये हकीम साहब है । डाक्टर असार

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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

15 अगस्त 2023
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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

15 अगस्त 2023
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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

15 अगस्त 2023
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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

15 अगस्त 2023
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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

15 अगस्त 2023
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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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अध्याय 12: अब्बास तैयबजी

16 अगस्त 2023
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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

16 अगस्त 2023
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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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अध्याय 14: महादेव देसाई

16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

16 अगस्त 2023
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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

16 अगस्त 2023
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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

16 अगस्त 2023
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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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अध्याय 18: जमनालाल बजाज

16 अगस्त 2023
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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

16 अगस्त 2023
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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

16 अगस्त 2023
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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

16 अगस्त 2023
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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्

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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

16 अगस्त 2023
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स्वर्गीय नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे । मै सुन चुका था कि वह एक अच्छे लेखक है। नेशनल इडियन एसो - सिएशनवाली मिस मैंनिग के यहा उनसे मिला | मिस गजानती थी कि सबसे हिल-मिल जाना मैं नही जानता । जब कभी मै

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