सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वणिक् शिरोमणि • का उदाहरण मुख्य रहा। अगर वह अपनी सपत्ति के आदर्श ट्रस्टी नही बन पाये तो इसमे दोष उनका नही था । मैने जानबूझकर उनको रोका | मै नही चाहता था कि वे उत्साह में आकर ऐसा कोई काम कर ले, जिसके लिए बाद मे शात मन से सोचने पर उन्हें पछताना पडे । उनकी सादगी तो उनकी अपनी ही चीज थी। अपने लिए उन्होने जितने भी घर बनाये, वे उनके घर नही रहे, धर्म- शाला बन गये । सत्याग्रही के नाते उनका दान सर्वोत्तम रहा । राजनैतिक प्रश्नो की चर्चा में वह अपनी राय दृढतापूर्वक व्यक्त करते थे। उनके निर्णय पक्के हुआ करते थे । त्याग की दृष्टि से उनका अतिम कार्य सर्वश्रेष्ठ रहा । वह किसी ऐसे रचनात्मक काम मे लग जाना चाहते थे, जिसमे वह अपनी पूरी योग्यता के साथ अपने जीवन का शेष भाग तन्मय होकर बिता सके। देश के पशु- धन की रक्षा का काम उन्होने अपने लिए चुना था और गाय को उसका प्रतीक माना था । इस काम में वह इतनी एकाग्रता और लगन के साथ जुट गये थे कि जिसकी कोई मिसाल नही । उनकी उदारता मे जाति, धर्म या वर्ण की सकुचितता को कोई स्थान न था। वह एक ऐसी साधना मे लगे हुए थे, जो कामकाजी आदमी के लिए विरल है ।
विचार-सयम उनकी एक बडी साधना थी । वह सदा ही अपनेको तस्कर विचारो से बचाने की कोशिश मे रहते थे । उनके अवसान से वसुधरा का एक रत्न कम हो गया है । उन- को खोकर देश ने अपना एक वीर-से-वीर सेवक खोया है । जिस कार्य के लिए उन्होने अपना शेष जीवन समर्पित कर दिया था, उसे अब उनकी विधवा जानकीदेवी ने स्वय करने का निश्चय किया है। उन्होने अपनी समस्त निजी सपत्ति को, जो करीब ढाई लाख के आस-पास है, कृष्णार्पण कर दिया है। ईश्वर उन्हे अपने इस अगीकृत कार्य मे सफल होने की शक्ति दे । १
मेरे साथ जमनालालजी का सबध करीब-करीब तभी से - शुरू हुआ जब से मैने हिदुस्तान के सार्वजनिक जीवन मे प्रवेश किया। उन्होने मेरे सभी कामो को पूरी तरह अपना लिया था, यहा तक कि मुझे कुछ करना ही नही पडता था । ज्योही में किसी नये काम को शुरू करत वह उसका बोझ खुद उठा लेते थे । इस तरह मुझे निश्चित कर देना मानो उनका जीवन-कार्य ही बन गया था। ..
११ फरवरी को जब मै जमनालालजी के द्वार पर पहुचा तो उनका देहात हो चुका था। मेरे पास वर्धा से सदेश तो सिर्फ यही आया था कि खून का दौरा कम करने की दवा भेजे। मै दवा भेज- कर अपने दिल की तसल्ली कर सकता था । लेकिन उस दिन मैंने महसूस किया कि नही, मुझे खुद ही जाना चाहिए । जब वहा पहुचा तो मामला कुछ और ही पाया।
जमनालालजी तो बडभागी थे । उनकी तरह हम भी अपने hot asभागी साबित कर सकते है, बशर्ते कि जो चीज उनके रहते हमे साफ नही दिखाई दी वह उनके बाद हमे साफ दिखाई देने लगे, जो जाग्रति हममे उनके जीवित रहते नही आई वह अब सब में आ जाय ।
उनका सबसे बडा काम गोसेवा का था। वैसे तो यह काम पहले भी चलता था, लेकिन धीमी चाल से । इसमे उन्हें सतोष न था । उन्होने इसे तीव्र गति से चलाना चाहा और इतनी तीव्रता से चलाया कि खुद ही चल बसे ।
खादी के काम में उनकी दिलचस्पी मुझसे कम न थी । खादी के लिए जितना समय मैने दिया उतना ही उन्होने भी दिया । उन्होने इस काम के पीछे मुझसे कम बुद्धि खर्च नही की थी। इस- लिए कार्यकर्ता भी वह ही ढूंढ-ढूंढकर मेरे पास लाया करते थे । •थोड़े मे यह कह लीजिय कि अगर मैने खादी का मत्र दिया तो जमनालालजी ने उसको मूर्त रूप दिया । खादी का काम कुछ होने के बाद मै तो जेल में जा बैठा, मगर वह जानते थे कि मेरे नजदीक खादी ही मे स्वराज्य है । अगर उन्होने तुरत ही उसमे रत होकर उसे संगठित रूप न दिया होता तो मेरी गैरहाजिरी मे सारा काम तीन-तेरह हो जाता ।
tara ग्रामोद्योग की थी। उन्होने इसके लिए मगनवाड़ी ही थी, साथ ही उसके सामने की कुछ जमीन भी वह मगनवाड़ी के लिए खरीदने का सकल्प कर चुके थे। अब चि० कमलनयन' ने वह जमीन भी मगनवाडी को दे दी है । ग्रामोद्योग का काम इतना व्यापक है कि इसमे अटूट रुपया खर्च किया जा सकता है। ...
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एक बात और जमनालालजी कई बार कहा करते थे कि लोग और सब जगह तो खादी पहनकर चले जाते है, लेकिन बैक नही जाते । अगर बैक में वह अपनी मारवाड़ी पगडी पहनकर न जाय तो उनके खयाल में इसमें उनकी प्रतिष्ठा की हानि होती है । मगर खुद जमनालालजी ने कभी इसकी कोई चर्चा नही की । फिर उसका नतीजा कुछ भी क्यों न हुआ हो । अत मै यह चाहता हू कि हममे इतनी स्वतंत्रता और इतना आत्म गौरव पैदा हो जाना चाहिए कि हम अपनी खादी की पोशाक में हर जगह बिना झिझक के जा सके ।
अबतक इस देश की आजादी को खोने में व्यापारी - समाज की खास जिम्मेदारी रही है । जमनालालजी को यह चीज बराबर खटका करती थी ।
जमनालालजी का स्मृति - स्तभ खडा करके हम उनकी याद को चिरस्थायी नही बना सकते । स्तभ पर खुदे हुए शिला - लेख को तो लोग पढकर थोडे ही समय मे भुल जायगे, परतु जिस आदमी ने दुनिया के लिए इतना कुछ किया है उसके काम को चिर- स्थायी रखने का सकल्प कोई कर ले तो वह उनका सच्चा स्मारक हो रहेगा । कितु इसके लिए मै जबरदस्ती नही करना चाहता । जिसे जो कुछ भी करना हो आत्मोन्नति के लिए करे । अगर स, इसी खयाल से महिला आश्रम की स्थापना हुई । आज इस आश्रम के लिए एक त्यागी और सुशिक्षित महिला की आवश्यकता है । आप इस आवश्यकता की पूर्ति में सहायक हो सकते है । बुनियादी तालीम और हरिजन सेवक संघ के काम का
यही हाल है । आप इनमें शरीक हो सकते है । हिदू-मुस्लिम- एकता के लिए उनके दिल मे खास लगन थी । उनके अदर सांप्र- दायिक द्वेष की बू तक न थी। आप उनके जीवन से इस गुण को ग्रहण कर सकते है |
जमनालालजी का स्मृति - स्तभ खडा करके हम उनकी याद को चिरस्थायी नही बना सकते । स्तभ पर खुदे हुए शिला - लेख को तो लोग पढकर थोडे ही समय मे भुल जायगे, परतु जिस आदमी ने दुनिया के लिए इतना कुछ किया है उसके काम को चिर- स्थायी रखने का सकल्प कोई कर ले तो वह उनका सच्चा स्मारक हो रहेगा । कितु इसके लिए मै जबरदस्ती नही करना चाहता । जिसे जो कुछ भी करना हो आत्मोन्नति के लिए करे । अगर दिखावे के लिए कुछ भी होगा तो उससे मुझे और जमनालालजी की आत्मा को उल्टा कष्ट ही होगा ।
जमनालाल का शरीर मर गया, पर असल जमनालाल तो जिदा ही है और आगे के लिए उसे जिदा रखना हमारा काम है । "