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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023

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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्थान प्राप्त कर चुके है | अहिंसा के प्रचार के लिए और उसके साथ ही लोकमत को संगठित और प्रकट करने के लिए उन्होने जितना परिश्रम किया उतना बहुत ही थोडे लोगों ने किया है। उनकी गिरफ्तारी से सरकार की नीति या वृत्ति का जितना सच्चा पता चलता है उतना दूसरी किसी बात से नही ।

पजाबी भाई लालाजी को बडे-से-बड़ा गौरव जो दे सकते है वह यह है कि वे यही समझकर कि लालाजी हमारे साथ ही है, उनका काम बराबर आगे बढाते रहे ।"

आखिरकार लाजपतराय, पडित सतानम, मलिक लालखान और डाक्टर गोपीचंद के मुकदमे का फैसला हो गया । लालाजी तथा पडित सतानम को अठारह महीने की कैद की सजा दी गई । अभियुक्तो के बहुतेरा विरोध करने पर भी सरकार ने जबरदस्ती. उनके बचाव के लिए एक वकील नियुक्त किया था । इस तमाशे के होते हुए भी उनको सजा दी जाना तो निश्चित ही था । सजा का हुक्म सुनाये जाने के जरा पहले ही लालाजी ने मुझे एक पत्र लिखा । उसमे उनके चित्त की प्रसन्नता टपकी पडती है । वह इस प्रकार है।

"आपने जो स्नेहपूर्ण टिप्पणी लिखी है तथा रामप्रसादजी और पुरुषोत्तमलाल के द्वारा जो सदेश भेजा, उनके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद । मै बहुत मजे मे हू । मैने अन्न त्याग नही किया था । मैं अपने आराम के लिए शोरोगुल मचाने के खिलाफ हू । हम यहा इसलिए नही आये है कि किसी तरह की सुविधाएं या रियायते चाहे । सच्चा हाल अखबारो मे जाहिर हुआ है और आशा है कि वह अब आप तक पहुच गया होगा । हम सब लोगों का चित्त बहुत प्रसन्न है और मै राष्ट्रीय पाठशालाओ तथा धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में अपने समय का खूब सदुपयोग कर रहा हू । अहमदाबाद मे जो कुछ हुआ है उसके तथा सर्वपक्षीय परिषद् ( राउड टेबल काफेस) के हालात मुझे मालूम हो गये है । हमारी तकलीफो की वजह से हमारे सिद्धातों के निर्णय मे बाधा न होने दीजिएगा । आप यकीन मानिये, हम अपने मनोरथ को पूरा करने के लिए जबतक चाहिए तबतक और जितनी चाहिए, उतनी तकलीफे बरदाश्त करने को हर तरह से तैयार है । और अब जब कि उसीके लिए हम यहा आये हुए है तो हमे उसे अत तक निबाहना चाहिए ।"

हमें आशा करनी चाहिए कि लालाजी और पडित सतानम को उनका अध्ययन जारी रखने दिया जायगा । मैं उन्हें तथा उनके साथियो को यह भी सूचित करने का साहस करूंगा कि वे मौलाना शौकतअली और श्री राजगोपालाचारी तथा उनके साथियो का • अनुकरण करे, अर्थात् वे साहित्य-सबधी उद्योगो के साथ-ही-साथ चरखा कातने पर भी ध्यान देगे । मैं अभिवचन देता है कि बीच- हू बीच मे चरखा कातते रहने से लालाजी के इतिहास-लेखन तथा पडित सतानम के संस्कृत - अध्ययन में हानि न होगी । '

...

मैने तो लालाजी को एक बच्चे के समान खुले दिलवाला पाया है। उनके त्याग की जोड लगभग हुई नही । मेरी उनसे हिदू- मुसलमानों के बारे मे एक बार नही, अनेक बार बाते हुई है । वह मुसलमानो के साथ तनिक भी दुश्मनी नही रखते, लेकिन उन्हे जल्दी एकता हो जाने में शक है । वह ईश्वर से प्रकाश पाने के लिए प्रार्थना कर रहे है। खुद शक्ति रहते हुए भी वह हिदू-मुसलमानो की एकता के कायल है, क्योकि जैसाकि उन्होने मुझसे कहा है वह स्वराज्य के कायल हैं । वह मानते है कि ऐसी एकता के बिना स्वराज्य स्थापित नही हो सकता । तो भी वह यह नही जानते कि यह एकता किस तरह और कब होगी । मेरा उपाय उन्हे पसद है, परंतु इस बात में शक है कि हिंदू लोग उसका मर्म समझ पावेगे या नही और अगर समझ पावेगे तो उसकी शराफत की कदर करेगे या नही । "

...

कहा जाता है कि किसीने यह सवाद भेजा है कि अमृतसर की खिलाफत परिषद में मैने लाला लाजपतराय को भीरु कहा है । लालाजी जो कुछ भी हो, वह भीरु नही है । मेरे व्याख्यान का पूर्वापर सबध देखने से प्रतीत होगा कि मै उनका इस आक्षेप से कि वह मुसलमानो के विरोधी है बचाव कर रहा था । उस समय मैने जो कुछ कहा था वह यह है लालाजी सदा शात चित्त रहते है और उन्हे मुसलमानो के उद्देश्य के बारे मे बड़ी शका रहती है । . लेकिन वह मुसलमानो की दोस्ती सच्चे दिल से चाहते है । लालाजी के प्रति मेरा बड़ा आदर भाव है । मैं उन्हें बहादुर, आत्म-त्यागी, उदार, सत्यनिष्ठ और ईश्वर से डरनेवाला मानता हू । उनका स्वदेश-प्रेम बड़ा ही शुद्ध है । देश की जितनी और जैसी सेवा उन्होने की है उसमे उनकी बराबरी करनेवाले बहुत कम है । और यदि ऐसे शख्सों पर सदेह किया जा सके कि उनके उद्देश्यहीन है तो हमे हिदू-मुस्लिम ऐक्य से उसी प्रकार निराश होना पडेगा जिस प्रकार हमे अली भाइयो पर हीन उद्देश्य रखने का सदेह करने पर निराश होना पड़े । हम सब अपूर्ण है, हमारा मत एक-दूसरे के खिलाफ दूषित हो गया है। हम हिंदू और मुसलमान, जैसे है वैसे ही समझे जाने चाहिए । जो हिदू-मुस्लिम ऐक्य को अपना धर्म मानते है उन्हे तो जो साधन हमारे पास है उसीके द्वारा उसे संपादन करने का प्रयत्न करना चाहिए । 

“आपके तार के लिए आभार मानता हू । लोगो की ओर से पुलिस को हमला करने के लिए कोई कारण नही मिला है । यह मामला इरादापूर्वक किया गया था। दो सख्त चोटे लगी है, मगर गंभीर नही है । एक बाईं छाती पर और एक कधे पर लगी है । दूसरी चोटे सत्यपाल, गोपीचंद, हंसराज, मुहम्मद आलम आदि मित्रो ने सभाल ली। दूसरो पर भी मार पड़ी है और चोटे लगी है, कि चिता का कोई कारण नही है ।" "

-लाजपतराय

मैने लाला लाजपतराय को तार से धन्यवाद दिया था और हालत पूछी थी । उसके जवाब मे तुरत ही लालाजी ने ऊपर का तार भेजा । आज के लोगो मे से, जबकि अधिकाश की अभी रेखे भी नही भीगी थी, लालाजी ने 'पंजाब केसरी' का नाम पाया था । अबतक उनका यह अल्काव जैसा-का- तैसा कायम है, क्योकि चाहे उनके पक्ष और विपक्ष मे कुछ भी क्यो न कहा जाय, वह अब भी पजाब के सबसे बड़े निर्विवाद नेता है और सारे भारतवर्ष मे सबसे afts लोकप्रिय और प्रतिष्ठित नेताओ मे से है। वह महासभा के सभापति हो चुके है, यूरोप मे उनका नाम है और वह उन गिने- चुने नेताओ से है, जो दिल की बात तुरत ही कह देते है, गो कोई भले ही गलतफहमी करे या उससे भी अधिक उन्हे अक्सर पह- चाननेवाला मूर्ख समझे । मगर लालाजी अपनी आदत से लाचार है; क्योकि वह अपने दिल मे कोई बात छिपाकर रख ही नही सकते । जो बात सोची, वह वह कहेगे ही। इसलिए जब मेने यह शीर्षक पढा "लालाजी पर मार" और मार के व्यौरे पढे तभी मेरे मुह से निकल गया - " शाबाश ! " अब हमे स्वराज्य पाने मे बहुत देर नही लगेगी, क्योकि चाहे हमारी क्राति हिसक हो या अहिसक स्वतंत्र होने के पहले हमे देश के नाम पर मरने की कला सीखनी होगी। इसके अलावा जबतक महान प्रयत्न न किया जावे, अहिसक दबाव से भी शासक झुकेगे नही । आदर्श और सपूर्ण अहिसा के सामने, मै यह कल्पना कर सकता हू कि शासको की वृत्ति बिल्कुल ही बदल जानी सभव है । मगर गोकि आदर्श और सपूर्ण कार्यक्रम बनाना संभव है, तथापि उसका सपूर्ण और आदर्श अमल कभी सभव नही है, इसलिए सबसे सस्ती बात यही है कि नेताओं पर मार पडे या गोली चले । अबतक अनजान आदमियो पर मार पडी है या वे मारे गये है | थोडे-से आदमियो को गोली मारने से भी देश का ध्यान जितना आकर्षित नही होता उससे कही अधिक • लालाजी पर हमला करने से हुआ है। लालाजी तथा दूसरे नेताओं पर हमले से हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ विचार मे पड गये है और सरकार की शांति तो जरूर ही भग हो गई होगी ।"

...

लाला लाजपतराय का देहात हो गया । लालाजी चिर- जीवी होवे । जबतक हिदुस्तान के आकाश मे सूर्य चमकता है तब- तक लालाजी मर नही सकते । लालाजी तो एक सस्था थे। अपनी जवानी के ही समय से उन्होने देशभक्ति को अपना धर्म बना लिया था और उनके देशप्रेम में सकीर्णता न थी । वह अपने देश से इसलिए प्रेम करते थे कि वह संसार से प्रेम करते थे । उनकी राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीयता से भरपूर थी । इसलिए यूरोपियन लोगो पर भी उनका इतना अधिक प्रभाव था । यूरोप और अमेरिका में उनके अनेक मित्र थे । वे मित्र लालाजी को जानले थे और इसलिए उनसे प्रेम करते थे ।

उनकी सेवाए विविध थी । वह बड़े ही उत्साही समाज और धर्म-सुधारक थे। हममे से बहुत से लोगो के समान वह भी इसीलिए राजनीतिज्ञ बने थे कि समाज और धर्म-सुधार की उनकी लगन राजनीति मे शामिल हुए बिना पूरी होती ही नहीं थी । सार्वजनिक जीवन शुरू करने के कुछ ही समय बाद उन्होने देख लिया था कि विदेशी गुलामी से देश के स्वतंत्र हुए बिना हमारे इच्छित सुधारो में से बहुत-से नही हो सकेगे । जैसाकि हममे से बहुतो को जान पड़ता है, उन्हे भी जान पडा था कि विदेशी परतत्रता का जहर देश की नस-नस मे घुस गया है ।

ऐसे एक भी सार्वजनिक आंदोलन का नाम लेना असंभव है, जिसमे लालाजी शामिल न थे । सेवा करने की उनकी भूख सदा अतृप्त ही रहती थी । उन्होने शिक्षण सस्थाएं खोली, वह दलितो के मित्र बने, जहा कही दुख-दारिद्र्य हो, वही वह दौड़ते  थे । नवयुवकों को वह असाधारण प्रेम से अपने पास जमा करते थे । सहायता के लिए किसी नौजवान की प्रार्थना उनके पास बेकार न गई । राजनैतिक क्षेत्र मे वह ऐसे थे कि उनके बिना चल ही नही सकता था। अपने विचार प्रकट करने में वह कभी भयभीत न हुए । उस समय भी जबकि कष्ट सहना रोजमर्रा की बात नही हो गई थी, अपने विचार निर्भीकता से प्रकाशित करने के लिए उन्होने कष्ट सहा था । उनके जीवन मे कोई छिपा हुआ रहस्य नही था । उनकी अत्यंत अधिक स्पष्टवादिता से मित्रो को प्रायः घबराहट में पड़ना होता था, उनके आलोचक भी चक्कर में पड़ जाते थे, मगर उनकी यह आदत छूटनेवाली नही थी ।

मुसलमान मित्रो का लिहाज रखता हुआ भी मै दावे के साथ यह कहता हूं कि लालाजी इस्लाम के दुश्मन नही थे । हिदू-धर्म को सबल बनाने तथा शुद्ध करने की उनकी प्रबल इच्छा को भूल से मुसलमानों या इस्लाम के प्रति घृणा नही समझनी चाहिए । हिंदू-मुसलमानो मे एकता स्थापित करने की उनकी हार्दिक इच्छा थी । वह हिंदूराज की चाहना नही करते थे, वह हिदुस्तानी राज की इच्छा करते थे । अपने-आपको हिदुस्तानी कहनेवाले सभी लोगों में वह सम्पूर्ण समानता स्थापित करना चाहते थे । लालाजी की मृत्यु से भी हम परस्पर एक-दूसरे पर विश्वास करना सीखे और अगर हम निर्भय बन जाय तो यह तुरत ही संभव है ।

जब राजनीति को लोग भूल जायगे, जब जनता का ध्यान खीच लेनेवाली अनेक क्षणभगुर वस्तुए भी विस्मृत हो जायंगी, तब भी लालाजी के गभीर और विशाल हरिजन - प्रेम hi और उनकी तज्जनिक महान् सेवाओ को करोडो हिंदू ही नही, बल्कि कोटिशः सवर्ण हिंदू भी और हिंदू ही क्यों, समस्त भारत- वर्ष बडी श्रद्धा-भक्ति से याद किया करेगा । लालाजी एक महान् मानव-प्रेमी थे और उनका वह मानव-प्रेम, विश्वव्यापी था । उनकी प्रत्येक वर्षी के अवसर पर हमे अपने जीवन मे लालाजी को उनकी प्रत्येक विगत वर्षो की अपेक्षा, अधिकाधिक सजीव करते जाना चाहिए । लालाजी - जैसे समाज सुधारकों का जब निधन होता है। तब केवल उनकी देह का ही नाश होता है। उनका कार्य और े स्वप्न को सही बनाने के लिए अभी तक बचे हुए है, एक बार सभी मिलकर महान प्रयत्न कर अपनेको लालाजी के जैसे देशबंधु पाने का अधिकारी सिद्ध करेगे । '

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जब राजनीति को लोग भूल जायगे, जब जनता का ध्यान खीच लेनेवाली अनेक क्षणभगुर वस्तुए भी विस्मृत हो जायंगी, तब भी लालाजी के गभीर और विशाल हरिजन - प्रेम hi और उनकी तज्जनिक महान् सेवाओ को करोडो हिंदू ही नही, बल्कि कोटिशः सवर्ण हिंदू भी और हिंदू ही क्यों, समस्त भारत- वर्ष बडी श्रद्धा-भक्ति से याद किया करेगा । लालाजी एक महान् मानव-प्रेमी थे और उनका वह मानव-प्रेम, विश्वव्यापी था । उनकी प्रत्येक वर्षी के अवसर पर हमे अपने जीवन मे लालाजी को उनकी प्रत्येक विगत वर्षो की अपेक्षा, अधिकाधिक सजीव करते जाना चाहिए । लालाजी - जैसे समाज सुधारकों का जब निधन होता है। तब केवल उनकी देह का ही नाश होता है। उनका कार्य और उनके विचारो का देह के साथ अत नही होता । उनकी शक्ति तो उत्तरोत्तर बढती जाती है । हमे इसका अनुभव तब और अधिक होता है जब हम देखते है कि ज्योज्यो समय बीतता है त्यो त्यो इस जीर्ण चोले के बाहर इसका प्रभाव स्वत प्रकट होता जाता है । मनुष्य के अदर जो क्षणजीवी अश है वह देह के साथ नाश ant प्राप्त हो जाता है, किंतु मनुष्य का जो शाश्वत अविनाशी अश है वह तो देह के भस्मीभूत होने पर भी जीवित रहता है और देह का बधन दूर हो जाने से वह और भी अधिक प्रकाशमान हो जाता है। इस विचार को सामने रखकर हमे लालाजी की स्मृति hat चिरजीवी रखना चाहिए। हरिजन हिदू तथा सवर्ण हिदू, दोनो ही स्व ० लालाजी का पुण्यस्मरण करके हिदू-समाज मे से यह अस्पृ- श्यता का पाप-कलंक धो डालने का नये सिरे से सकल्प करे । हरि- जन तो उन त्रुटियों को दूर करे जो अत्याचार बर्दाश्त करते-करते लोगो मे पैदा हो जाती है और सवर्ण अपने उस पाप को पखारकर शुद्ध हो जाय, जो उन्होने हरिजनो को जन्मना अस्पृश्य और अपने को जन्मना उच्च मान कर किया है ।"

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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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एक जमाना था, शायद सन् ' १५ की साल में, जब मै दिल्ली आया था, हकीम अजमल खां साहब से मिला और डाक्टर अंसारी से | मुझसे कहा गया कि हमारे दिल्ली के बादशाह अंग्रेज नही है, बल्कि ये हकीम साहब है । डाक्टर असार

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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

15 अगस्त 2023
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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

15 अगस्त 2023
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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

15 अगस्त 2023
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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

15 अगस्त 2023
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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

15 अगस्त 2023
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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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अध्याय 12: अब्बास तैयबजी

16 अगस्त 2023
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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

16 अगस्त 2023
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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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अध्याय 14: महादेव देसाई

16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

16 अगस्त 2023
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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

16 अगस्त 2023
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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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अध्याय 18: जमनालाल बजाज

16 अगस्त 2023
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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

16 अगस्त 2023
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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

16 अगस्त 2023
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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

16 अगस्त 2023
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