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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023

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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना बदा है |

वासती देवी के साथ मेरा परिचय १९१९ मे हुआ है । गाढ़ परिचय १९२१ मे हुआ । उनकी सरलता, चातुरी और उनके अतिथि सत्कार की बहुतेरी बाते मैने सुनी थी । उनका अनुभव भी ठीक-ठीक हुआ था। जिस प्रकार दार्जिलिंग में देशबंधु के साथ मेरा सबध घनिष्ठ हुआ उसी तरह वासती देवी के साथ भी हुआ । उनके वैधव्य मे तो परिचय बहुत ही बढ़ गया है। जब से वह दार्जिलिंग से शव को लेकर कलकत्ते आई है तब से मै कह सकता हूं कि उनके साथ ही रहा हू । वैधव्य के बाद पहली मुलाकात उनके दामाद के घर हुई । उनके आस-पास बहुतेरी बहने बैठी थी । पूर्वाश्रम मे तो जब मै उनके कमरे मे जाता तो खुद वही सामने आती और मुझे बुलाती । वैधव्य में मुझे क्या बुलाती ' पुतली की तरह स्तम्भित बैठी अनेक बहनो में से मुझे उन्हें पहचानना था । एक मिनट तक तो मै खोजता ही रहा। मांग में सिंदूर, ललाट पर कुकुम, मुह मे पान, हाथ मे चूड़िया और साड़ी पर लेस, हँस- मुख चेहरा -- इनमें में से एक भी चिन्ह में न देखू तो वासती देवी को किस तरह पहचानू ? जहा मैने अनुमान किया था कि वह होगी वहा जाकर बैठ गया और गौर से मुख-मुद्रा देखी । देखना असह्य हो गया। चेहरा तो पहचान में आया । रुदन रोकना असभव हो गया । छाती को पत्थर बनाकर आश्वासन देना तो दूर ही रहा ।

उनके मुख पर सदा शोभित हास्य आज कहां था ? मैने उन्हें संत्वना देने, रिझाने और बातचीत कराने की अनेक कोशिशे की । बहुत समय के बाद मुझे कुछ सफलता मिली ।

देवी जरा हँसी ।

मुझे हिम्मत हुई और मै बोला, “आप रो नहीं सकती। आप रोवेंगी तो सब लोग रोवेगे । मोना ( बडी लड़की) को बड़ी मुश्किल से चुपकी रखा है। बेबी ( छोटी लड़की) की हालत तो आप जानती ही है । सुजाता ( पुत्रवधू) फूट-फूटकर रोती थी, बड़े प्रयास से हुई है । आप दया रखिएगा । आपसे अब बहुत काम लेना है ।"

वीरांगना ने दृढतापूर्वक जवाब दिया, "मैं नही रोऊंगी ।

मुझे रोना आता ही नही ।"

मै इसका मर्भ समझा, मुझे सतोष हुआ ।

रोने से दुःख का भार हल्का हो जाता है । इस विधवा बहन को तो भार हलका नही करना था, उठाना था । फिर रोती कैसे ? कैसे कह सकता था - "लो, चलो, हम भाई-बहन पेट

भर रो ले और दुख कम कर ले ?"

हिदू विधवा दुख की प्रतिमा है। उसने ससार के दुख का भार अपने सिर ले लिया है। उसने दुख को सुख बना डाला है को धर्म बना डाला है ।

वासंती देवी सब तरह के भोजन करती थी । १९२० तक के समय मे उनके यहा छप्पन भोग होते थे और सैकडो लोग भोजन करते थे । पान के बिना वह एक मिनिट नही रह सकती थी । पान की डिबिया पास ही पडी रहती थी ।

अब शृंगार-भाव का त्याग, पान का त्याग, मिष्ठानो का त्याग, मांस-मत्स्य का त्याग, केवल पति का ध्यान, परमात्मा का ध्यान |

इस दुख को सहन करना धर्म है या अधर्म ? और धर्मो में तो ऐसा नही देखा जाता । हिदू-धर्मशास्त्रियो ने भूल तो न की हो ? वासती देवी को देखकर मुझे इसमे भूल नही दिखाई देती, for धर्म की शुद्ध भावना दिखाई देती है । वैधव्य हिदू-धर्म का शृगार है । धर्म का भूषण वराग्य है, वैभव नही। दुनिया भले ही और कुछ कहे तो कहती रहे ।

परतु हिदू शास्त्र किस वैधव्य की स्तुति और स्वागत करता है ? १५ वर्ष की मुग्धा के वैधव्य का नही जो कि विवाह का अर्थ भी नही जानती । बाल विधवाओ के लिए वैधव्य धर्म नही, अधर्म है । वासती देवी को मदन खुद आकर ललचावे तो वह भस्म हो जा । वासती देवी के शिव की तरह तीसरी आंख है । परंतु पद्रह वर्ष की बालिका वैधव्य की शोभा को क्या समझ सकती है ? उसके लिए. तो वह अत्याचार ही है । बाल-विधवाओ की वृद्धि मे मुझे हिदू-धर्म की अवनति दिखाई देती है । वासती देवी जैसी के वैधव्य मे मै शुद्ध धर्म का पोषण देखता हू । वैधव्य सब तरह, सब जगह, सब समय, अनिवार्य सिद्धात नही है । वह उस स्त्री के लिए धर्म है जो उसकी रक्षा करती है ।

रिवाज के कुए में तैरना अच्छा है । उसमे डूबना आत्म- । हत्या है।

जो बात स्त्री के सबध मे वही बात पुरुष के सबंध में होन चाहिए। राम ने यह कर दिखाया । सती सीता का त्याग भी वह सह सके । अपने ही किये त्याग से खुद ही जले । जब से सीता गई । तब से रामचंद्र का तेज घट गया। सीता के देह का तो त्याग उन्होने किया, पर उसे अपने हृदय की स्वामिनी बना लिया। उस दिन से उन्हे न तो शृगार भाया, न दूसरा वैभव । कर्तव्य समझ- कर तटस्थता के साथ राज्य कार्य करते हुए शात रहे ।

जिस बात को आज वासती देवी सह रही है, जिसमे से वह अपने विलास को हटा सकती है, वे बाते जबतक पुरुष न करेगे · तबतक हिदू-धर्म अधूरा है । 'एक को गुड और दूसरे को थूहर यह उल्टा न्याय ईश्वर के दरबार मे नही हो सकता । परंतु आज हिदू- पुरुषो ने इस ईश्वरीय कानून को उलट दिया है । स्त्री के लिए वैधव्य कायम रखा है और अपने लिए श्मशान भूमि मे ही दूसरे विवाह की योजना करने का अधिकार |

वासती देवी ने अबतक किसीके देखते, आसू की एक बूद तक नही गिराई है । फिर भी उनके चेहरे पर तेज तो आ ही नही रहा है । उनकी मुखाकृति ऐसी हो गई है कि मानो भारी बीमारी से उठी हो । यह हालत देखकर मैने उनसे निवेदन किया कि थोडा समय निकलकर बाहर हवा खाने चलिये। मेरे साथ मोटर तो बैठी, पर बोलने क्यो लगी ? मैने कितनी ही बाते चलाई— वह सुनती रही। पर खुद उसमे बराय नाम शरीक हुईं | हवाखोरी की तो, पर पछताई । सारी रात नीद न आई । " जो बात मेरे पति को अतिशय प्रिय थी वह आज इस अभागिनी ने की । यह क्या शोक है ?" ऐसे विचारो मे रात गई । भोबल ( उनका लडका ) मुझे यह खबर दे गया ! आज मेरा मौनवार है । मैने कागज पर लिखा है - " यह पागलपन हमे माताजी के सिर से निकालना होगा । हमारे प्रियतम को प्रिय लगनेवाली बहुतेरी बाते हमे उसके वियोग के बाद करनी पडती है । माताजी विलास के लिए मोटर मे नही बैठी थी, केवल आरोग्य के लिए बैठी थी । उन्हें स्वच्छ हवा की बहुत जरूरत थी । हमे उनका बल बढाकर उनके शरीर की रक्षा करनी होगी । पिताजी के काम को चमकाने और बढाने के लिए हमे उनके शरीर की आवश्यकता है । यह माताजी से कहना ।"

" माताजी ने तो मुझसे कहा था कि यह बात ही आपसे न कही जाय। पर मुझसे न रहा गया। अभी तो यही उचित मालूम होता है कि आप उन्हें मोटर मे बैठने के लिए न कहे ।" भोबल ने कहा ।

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बेचारा भोबल ! किसीका लौटाये न लौटने वाला लड़का आज बकरी जैसा बनकर बैठा है। उसका कल्याण हो ।

पर इस साध्वी विधवा का क्या ? वैधव्य प्यारा लगता है, फिर भी असह्य मालूम होता है । सुधन्वा खौलते हुए तेल के कड़ाह भटकता था और मुझ जैसे दूर रहकर देखनेवाले उसके दुख की कल्पना करके कापते थे । सती स्त्रियो, अपने दुख को तुम । संभाल कर रखना । वह दुख नही, सुख है । तुम्हारा नाम लेकर बहुतेरे पार उतर गये है और उतरेंगे ।

वासती देवी की जय हो ! 


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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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16 अगस्त 2023
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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

16 अगस्त 2023
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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

16 अगस्त 2023
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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

16 अगस्त 2023
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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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अध्याय 18: जमनालाल बजाज

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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

16 अगस्त 2023
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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

16 अगस्त 2023
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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्

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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

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स्वर्गीय नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे । मै सुन चुका था कि वह एक अच्छे लेखक है। नेशनल इडियन एसो - सिएशनवाली मिस मैंनिग के यहा उनसे मिला | मिस गजानती थी कि सबसे हिल-मिल जाना मैं नही जानता । जब कभी मै

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