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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

16 अगस्त 2023

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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । कट्टर और पुराने खयालात के होते हुए भी बड़े उदार विचार रखते है। उनका किसीसे ईर्ष्या रखना असंभव है । उनकी उदारता ऐसी है कि उसमे उनके दुश्मनो के लिए भी जगह है । कभी उन्हे शासन की चाह न रही और जो शासन आज उनके पास है वह उनकी मातृभूमि की आज तक की लंबी और अखड सेवा का

। ऐसी सेवा का दावा हममे से बहुत कम लोग कर सकते है । उनकी और मेरी विशेषता अलग-अलग है, लेकिन हम दोनो एक दूसरे को सगे भाई -सा प्यार करते है । मेरे और उनके बीच कभी जरा भी बिगाड़ नही हुआ । हमारे रास्ते जुदे - जुदे है । इसलिए हमारे बीच स्पर्धा और डाह का सवाल पैदा ही नही हो सकता ।

आशावाद और भोलेपन में में भेद करता हूं। पंडितजी में  दोनो है । दृष्टिमर्यादा पर निराशा के चिन्ह होते हुए भी और जानते हुए भी जो आशा रखता है वह आशावादी है । यह गुण पडितजी में काफी मात्रा में है। आशा की बाते कोई कह दे और उसपर विश्वास लाना वह भोलापन है । यह भी पडितजी में है । उसे मै त्याज्य समझता हूँ । पडितजी महान व्यक्ति है, इसलिए उनको ऐसे भोलेपन से हानि नही हुई है। हमे ऐसे भोलेपन का अनु- करण कभी नही करना चाहिए। आशावाद अतर्नाद पर निर्भर है, भोलापन बाह्य बातो पर ।"

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देश के सार्वजनिक जीवन को उनकी बहुत बडी देन है । उनका सबसे बडा कार्य हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस है । इस विद्यालय के प्रेम से हमे हार्दिक प्रेम है । महामना मालवीयजी ने उसके लिए जब कभी मेरी सेवाए चाही है, मैने दी है ।

मालवीयजी महाराज के साथ मेरा कितना गाढ सबध हैं। अगर उनका कोई काम मुझसे हो सकता है तो मुझे उसका अभिमान रहता है और अगर में उसे कर सकू तो अपनेको कृतार्थ समझता हूँ । यहा आना मेरे लिए तो एक तीर्थ मे आने के समान है ।

यह विश्वविद्यालय मालवीयजी महाराज का सबसे बडा और प्राण प्रिय कार्य है। उन्होने हिदुस्तान की बहुत - बहुत सेवाए की है, इससे आज कोई इकार नही कर सकता। लेकिन मेरा अपना खयाल यह है कि उनके महान् कार्यो में इस कार्य का महत्व सबसे ज्यादा रहेगा । २५ साल पहले, जब इस विश्वविद्यालय की नीव गई थी, तब भी मालवीयजी महाराज के आग्रह और खिचाव से मैं यहा आ पहुचा था। उस समय तो मैं यह सोच भी न सकता था कि जहा बडे-बडे राजा-महाराजा और खुद वाइसराय आने- वाले है, वहा मुझ जैसे फकीर की क्या जरूरत हो सकती है । तब तो में 'महात्मा' भी नही बना था ।

उस समय भी मालवीयजी महाराज की कृपा-दृष्टि मुझपर थी । कही भी कोई सेवक हो, वह उसे ढ्ढ निकालते है और किसी- न-किसी तरह अपने पास खीच ही लाते है । यह उनका मदा का धधा है ।

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लोग मालवीयजी महाराज की बडी प्रशंसा करते है । वह सब तरह उसके लायक है । मै जानता हू कि हिंदू विश्वविद्यालय का कितना बडा विस्तार है । ससार मे मालवीय- जी से बढकर कोई भिक्षुक नही । जो काम उनके सामने आ जाता है, उसके लिए —— अपने लिए नही -- उनकी भिक्षा की झोली का मुह हमेशा खुला रहता है। वह हमेशा मागा ही करते हैं, और परमात्मा की भी उनपर बड़ी दया है कि जहा जाते है, उन्हे पैसे मिल ही जाते है, तिसपर भी उनकी भूख कभी नही बुझती । उनका भिक्षापात्र सदा खाली रहता है। उन्होने विश्वविद्यालय के लिए एक करोड इकट्ठा करने की प्रतिज्ञा की थी । एक करोड की जगह डेढ करोड दस लाख रुपया इकट्ठा हो गया, मगर उनका पेट नहीं भरा। अभी - अभी उन्होने मुझसे कान कहा है कि आज के हमारे सभापति महाराज साहब दरभंगा ने उनको एक खासी बडी रकम दान में और दी है ।

ता हू कि मालवीयजी महाराज स्वय किस तरह रहते है । यह मेरा सौभाग्य है कि उनके जीवन का कोई पहलू मुझसे छिपा नही । उनकी सादगी, उनकी सरलता, उनकी पवित्रता और उनके प्रेम से मै भली-भांति परिचित हू । उनके इन गुणो मे से आप जितना कुछ ले सके, जरूर ले । विद्यार्थियो के लिए तो उनके जीवन की बहुतेरी बाते सीखने लायक हे । मगर मुझे डर है कि उन्होने, जितना सीखना चाहिए, सीखा नही है । यह आपका और हमारा दुर्भाग्य है । इसमे उनका कोई कसूर नही । धूप मे रहकर भी कोई सूरज का तेज न पा सके तो उसमे सूरज बेचारे का क्या दोष ? वह तो अपनी तरफ से सबको गर्मी पहुचाता रहता है, पर अगर कोई उसे लेना ही न चाहे और ठंड मे रहकर ठिठुरता फिरे तो सूरज भी उसके लिए क्या करे ? मालवीयजी महाराज के इतने निकट रहकर भी अगर आप उनके जीवन से सादगी, त्याग, देशभक्ति, उदारता और विश्वव्यापी प्रेम आदि सद्गुणो का अपने जीवन मे अनुकरण न कर सके तो कहिये, आप से बढकर अभागा और कौन होगा ? "

अग्रेजी में एक कहावत है- 'राजा गया, राजा हमेशा जियो ।' ठीक यही भारत भूषण मालवीयजी महाराज के लिए कहा जा सकता है — “मालवीयजी गये, मालवीयजी अमर हो । " मालवीयजी हिंदुस्तान के लिए पैदा हुए और हिदुस्तान के लिए किये गये अपने कामो मे जीते है । उनके काम बहुत है । बहुत बडे है । उनमें सबसे बडा हिदू विश्वविद्यालय है । गलती से उसे हम बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के नाम से पहचानते है । उस नाम के लिए दोष मालवीयजी महाराज का नही, उनके पैरोकारो का रहा है । मालवीयजी महाराज दासानुदास थे । दास लोग जैसा करते थे, वैसा वह करने देते थे । मुझे पता है कि यह अनुकूलता उनके स्वभाव मे भरी थी, यहातक कि बाज दफा वह दोष का रूप लेलेती थी, लेकिन 'समरथ को नहि दोष गुसाई' वाली बात मालवीयजी महाराज के बारे मे भी कही जा सकती है । उनका प्रिय नाम तो हिदू विश्वविद्यालय ही था और यह सुधार तो अब भी करने योग्य है । इस विश्वविद्यालय का हरेक पत्थर शुद्ध हिदू-धर्म का प्रतिबिब होना चाहिए। एक भी मकान पश्चिम के जडवाद की निशानी न हो, बल्कि अध्यात्म की निशानी हो । और जैसे मकान हो, वैसे ही शिक्षक और विद्यार्थी भी हो । आज है ? प्रत्येक विद्यार्थी शुद्ध धर्म की जीवित प्रतिमा है ? नही है तो, क्यो नही है ? इस विश्वविद्यालय की परीक्षा विद्यार्थियों की संख्या से नही, बल्कि उनके हिदू-धर्म की प्रतिमा होने से ही हो सकती है, फिर भले वे थोडे ही क्यो न हो । 

मैं जानता हूं कि यह काम कठिन है, लेकिन यही इस विद्यालय की जड है । अगर यह ऐसा नही है, तो कुछ नही है । इसलिए स्वर्गीय मालवीयजी के पुत्रो का और उनके अनुयायियो का धर्म स्पष्ट है । जगत मे हिदू-धर्म का क्या स्थान है ? उसमे आज क्या दोष है ? वे कैसे दूर किये जा सकते है ? मालवीयजी महा- राज के भक्तो का कर्त्तव्य है कि वे इन प्रश्नो को हल करे । मालवीय- जी अपनी स्मृति छोड गये है । उसको स्थायी रूप देना, उसका विकास करना, उनका श्रेष्ठ स्मृति - स्तभ होगा ।

विश्वविद्यालय के लिए स्व० मालवीयजी ने काफी द्रव्य इकट्ठा किया था, लेकिन बाकी भी काफी रहा है । इस काम मे तो . हरेक आदमी हाथ बटा सकता है ।

यह तो हुईं उनकी बाह्य प्रवृत्ति । उनका आतरिक जीवन विशुद्ध था । वह दया के भडार थे । उनका शास्त्रीय ज्ञान बडा था । भागवत उनकी प्रिय पुस्तक थी । वह सजग कथाकार थे । उनकी स्मरण शक्ति तेजस्विनी थी । जीवन शुद्ध था, सादा था ।

उनकी राजनीति को और दूसरी अनेक प्रवृत्तियो को छोड देता हूं । जिन्होने अपना सारा जीवन सेवा के लिए अर्पित किया था और जो अनेक विभूतिया रखते थे, उनकी प्रवृत्ति की मर्यादा हो नही सकती। मैने तो उनमे से चिरस्थायी चीजे ही देने का सकल्प किया था । जो लोग विश्वविद्यालय को शुद्ध बनाने में मदद देना चाहते है, वे मालवीयजी महाराज के अंतर्जीवन के मनन और अनुसरण करने की कोशिश करे । '

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रचनाएँ
देश सेवकों के संस्मरण
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देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निबंधों को कालानुक्रमिक रूप से व्यवस्थित किया गया है, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती दिनों से शुरू होकर महात्मा गांधी की हत्या तक समाप्त होता है। निबंधों में असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक सत्याग्रह सहित कई विषयों को शामिल किया गया है। देश सेवकों के संस्कार में प्रत्येक निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर एक अद्वितीय और व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रभाकर के निबंध केवल ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं, बल्कि साहित्य की कृतियाँ भी हैं जो उस समय की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाती हैं। देश सेवकों के संस्कार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर साहित्य में एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान रचना है।
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अध्याय 1: हकीम अजमल खां

15 अगस्त 2023
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एक जमाना था, शायद सन् ' १५ की साल में, जब मै दिल्ली आया था, हकीम अजमल खां साहब से मिला और डाक्टर अंसारी से | मुझसे कहा गया कि हमारे दिल्ली के बादशाह अंग्रेज नही है, बल्कि ये हकीम साहब है । डाक्टर असार

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अध्याय 2: डा० मुख्तार अहमद अंसारी

15 अगस्त 2023
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डा० असारी जितने अच्छे मुसलमान है, उतने ही अच्छे भारतीय भी है । उनमे धर्मोन्माद की तो किसीने शंका ही नही की है। वर्षों तक वह एक साथ महासभा के सहमंत्री रहे है। एकता के लिए किये गये उनके प्रयत्नो को तो

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अध्याय 3: बी अम्मा

15 अगस्त 2023
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यह मानना मश्किल है कि बी अम्मा का देहात हो गया है। अम्मा की उस राजसी मूर्ति को या सार्वजनिक सभाओं में उन- की बुलंद आवाज को कौन नही जानता । बुढापा होते हुए भी उन- में एक नवयुवक की शक्ति थी । खिलाफत और

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अध्याय 4: धर्मानंद कौसंबी

15 अगस्त 2023
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शायद आपने उनका नाम नही सुना होगा । इसलिए शायद आप दुख मानना नही चाहेगे । वैसे किसी मृत्यु पर हमे दुख मानना चाहिए भी नही, लेकिन इसान का स्वभाव है कि वह अपने स्नेही या पूज्य के मरने पर दुख मानता ही है।

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अध्याय 5: कस्तूरबा गांधी

15 अगस्त 2023
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तेरह वर्ष की उम्र मे मेरा विवाह हो गया। दो मासूम बच्चे अनजाने ससार-सागर में कूद पडे। हम दोनो एक-दूसरे से डरते थे, ऐसा खयाल आता है। एक-दूसरे से शरमाते तो थे ही । धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पहचानने लगे।

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अध्याय 6: मगनलाल खुशालचंद गांधी

15 अगस्त 2023
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मेरे चाचा के पोते मगनलाल खुशालचंद गांधी मेरे कामों मे मेरे साथ सन् १९०४ से ही थे । मगनलाल के पिता ने अपने सभी पुत्रो को देश के काम में दे दिया है। वह इस महीने के शुरू में सेठ जमनालालजी तथा दूसरे मित

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अध्याय 7: गोपालकृष्ण गोखले

15 अगस्त 2023
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गुरु के विषय मे शिष्य क्या लिखे । उसका लिखना एक प्रकार की धृष्टता मात्र है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु मे अपने- को लीन कर दे, अर्थात् वह टीकाकार हो ही नही सकता । जो भक्ति दोष देखती हो वह सच्ची भक्ति

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अध्याय 8: घोषालबाबू

15 अगस्त 2023
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ग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी । मैने निश्चय किया था कि काग्रेस के दफ्तर में यदि मेरी सेवा स्वीकार हो तो कुछ सेवा करके अनुभव प्राप्त करू । जिस दिन हम आये उसी दिन नहा-धोकर मै काग्रेस के दफ्तर

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अध्याय 9: अमृतलाल वि० ठक्कर

15 अगस्त 2023
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ठक्करबापा आगामी २७ नवबर को ७० वर्ष के हो जायगे । बापा हरिजनो के पिता है और आदिवासियो और उन सबके भी, जो लगभग हरिजनो की ही कोटि के है और जिनकी गणना अर्द्ध- सभ्य जातियों में की जाती है। दिल्ली के हरिजन

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अध्याय 10: द्रनाथ ठाकुर

15 अगस्त 2023
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लार्ड हार्डिज ने डाक्टर रवीद्रनाथ ठाकुर को एशिया के महाकवि की पदवी दी थी, पर अब रवीद्रबाबू न सिर्फ एशिया के बल्कि ससार भर के महाकवि गिने जा रहे है । उनके हाथ से भारतवर्ष की सबसे बडी सेवा यह हुई है कि

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अध्याय 11: लोकमान्य तिलक

16 अगस्त 2023
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब ससार मे नही है । यह विश्वास करना कठिन मालूम होता है कि वह ससार से उठ गये । हम लोगो के समय मे ऐसा दूसरा कोई नही, जिसका जनता पर लोकमान्य के जैसा प्रभाव हो । हजारो देशवासियो क

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अध्याय 12: अब्बास तैयबजी

16 अगस्त 2023
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सबसे पहले सन् १९१५ मे मै अब्बास तैयबजी से मिला था । जहा की मै गया, तैयबजी - परिवार का कोई-न-कोई स्त्री-पुरुष मुझसे आकर जरूर मिला । ऐसा मालूम पडता है, मानो इस महान् और चारो तरफ फैले हुए परिवार ने यह

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अध्याय 13: देशबंधु चित्तरंजन दास

16 अगस्त 2023
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देशबंधु दास एक महान् पुरुष थे। मैं गत छ वर्षो से उन्हें जानता हू । कुछ ही दिन पहले जब में दार्जिलिंग से उनसे विदा हुआ था तब मैने एक मित्र से कहा था कि जितनी ही घनिष्ठता उनसे बढती है उतना ही उनके प्र

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अध्याय 14: महादेव देसाई

16 अगस्त 2023
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महादेव की अकस्मात् मृत्यु हो गई । पहले जरा भी पता नही चला। रात अच्छी तरह सोये । नाश्ता किया। मेरे साथ टहले । सुशीला ' और जेल के डाक्टरो ने, जो कुछ कर सकते थे, किया लेकिन ईश्वर की मर्जी कुछ और थी ।

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अध्याय 15: सरोजिनी नायडू

16 अगस्त 2023
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सरोजिनी देवी आगामी वर्ष के लिए महासभा की सभा - नेत्री निर्वाचित हो गई । यह सम्मान उनको पिछले वर्ष ही दिया जानेवाला था । बडी योग्यता द्वारा उन्होने यह सम्मान प्राप्त किया है । उनकी असीम शक्ति के लिए और

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अध्याय 16: मोतीलाल नेहरू

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महासभा का सभापतित्व अब फूलो का कोमल ताज नही रह गया है। फूल के दल तो दिनो-दिन गिरते जाते है और काटे उघड जाते है । अब इस काटो के ताज को कौन धारण करेगा ? बाप या बेटा ? सैकडो लडाइयो के लडाका पडित मोतीलाल

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अध्याय 17: वल्लभभाई पटेल

16 अगस्त 2023
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सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ रहना मेरा बडा सौभाग्य 'था । उनकी अनुपम वीरता से मैं अच्छी तरह परिचित था, परतु पिछले १६ महीने मे जिस प्रकार रहा, वैसा सौभाग्य मुझे कभी नही मिला था । जिस प्रकार उन्होने मुझे स

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अध्याय 18: जमनालाल बजाज

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सेठ जमनालाल बजाज को छीनकर काल ने हमारे बीच से एक शक्तिशाली व्यक्ति को छीन लिया है। जब-जब मैने धनवानो के लिए यह लिखा कि वे लोककल्याण की दृष्टि से अपने धन के ट्रस्टी बन जाय तब-तब मेरे सामने सदा ही इस वण

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अध्याय 19: सुभाषचंद्र बोस

16 अगस्त 2023
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नेताजी के जीवन से जो सबसे बड़ी शिक्षा ली जा सकती है वह है उनकी अपने अनुयायियो मे ऐक्यभावना की प्रेरणाविधि, जिससे कि वे सब साप्रदायिक तथा प्रातीय बधनो से मुक्त रह सके और एक समान उद्देश्य के लिए अपना रक

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अध्याय 20: मदनमोहन मालवीय

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जब से १९१५ मे हिदुस्तान आया तब से मेरा मालवीयजी के साथ बहुत समागम है और में उन्हें अच्छी तरह जानता हू । मेरा उनके साथ गहरा परिचय रहता है । उन्हें मैं हिंदू-संसार के श्रेष्ठ व्यक्तियो मे मानता हूं । क

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अध्याय 21: श्रीमद् राजचंद्रभाई

16 अगस्त 2023
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में जिनके पवित्र सस्मरण लिखना आरंभ करता हूं, उन स्वर्गीय राजचद्र की आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९७९ को उनका जन्म हुआ था । मेरे जीवन पर श्रीमद्राजचद्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पडा है कि

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अध्याय 22: आचार्य सुशील रुद्र

16 अगस्त 2023
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आचार्य सुशील रुद्र का देहात ३० जून, १९२५ को होगया । वह मेरे एक आदरणीय मित्र और खामोश समाज सेवी थे। उनकी मृत्यु से मुझे जो दुख हुआ है उसमे पाठक मेरा साथ दे | भारत की मुख्य बीमारी है राजनैतिक गुलामी |

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अध्याय 23: लाला लाजपतराय

16 अगस्त 2023
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लाला लाजपतराय को गिरफ्तार क्या किया, सरकार ने हमारे एक बड़े-से-बडे मुखिया को पकड़ लिया है। उसका नाम भारत के बच्चे-बच्चे की जबान पर है । अपने स्वार्थ-त्याग के कारण वह अपने देश भाइयो के हृदय में उच्च स्

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अध्याय 24: वासंती देवी

16 अगस्त 2023
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कुछ वर्ष पूर्व मैने स्वर्गीय रमाबाई रानडे के दर्शन का वर्णन किया था । मैने आदर्श विधवा के रूप मे उनका परिचय दिया था । इस समय मेरे भाग्य मे एक महान् वीर की विधवा के वैधव्य के आरभ का चित्र उपस्थित करना

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अध्याय 25: स्वामी श्रद्धानंद

16 अगस्त 2023
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जिसकी उम्मीद थी वह ही गुजरा। कोई छ महीने हुए स्वामी श्रद्धानदजी सत्याग्रहाश्रम में आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीत में उन्होने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमे उन्हें मार डालन

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अध्याय 26: श्रीनिवास शास्त्री

16 अगस्त 2023
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दक्षिण अफ्रीका - निवासी भारतीयो को यह सुनकर बडी तसल्ली होगी कि माननीय शास्त्री ने पहला भारतीय राजदूत बनकर अफ्रीका में रहना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि सरकार वह स्थान ग्रहण करने के प्रस्ताव को आखिरी

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अध्याय 27: नारायण हेमचंद्र

16 अगस्त 2023
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स्वर्गीय नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे । मै सुन चुका था कि वह एक अच्छे लेखक है। नेशनल इडियन एसो - सिएशनवाली मिस मैंनिग के यहा उनसे मिला | मिस गजानती थी कि सबसे हिल-मिल जाना मैं नही जानता । जब कभी मै

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