*सनातन
धर्म इतना विस्तृत है , उसकी मान्यताएं इतनी विशाल हैं जिन्हें एक साथ समझ पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है | हां यह कहा जा सकता है यदि प्राचीन सनातन संस्कृति को एक ही शब्द में समेटना हो तो वह है यज्ञ | हमारी भारतीय संस्कृति में यज्ञ का बहुत व्यापक अर्थ है | यज्ञ मात्र अग्निहोत्र ना होकर के यह परमार्थ परायण कारी भी कहा जाता है | यज्ञ मात्र स्वयं के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है | जिस प्रकार मिट्टी में मिला हुआ अन्नकण सौ गुना हो जाता है उसी प्रकार अग्नि से मिला पदार्थ लाखों गुना हो जाता है | अग्नि के संपर्क में कोई भी द्रव्य आ जाने पर वह सूक्ष्मीभूत होकर के पूरे वातावरण में फैल जाता है , और अपने गुण से लोगों को प्रभावित करता है | जब स्वास्थ्यवर्धक औषधियां यज्ञ के संपर्क में आती हैं तब वह अपना प्रभाव स्थूल और सूक्ष्म शरीर पर दिखाती हैं और व्यक्ति
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है | यज्ञ से आयु , आरोग्यता , तेजस्विता , विद्या , यश , पराक्रम , वंशवृद्धि , धन धान्यादि सभी प्रकार के राज - भोग ऐश्वर्य , लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है | वैदिक काल में रूद्रयज्ञ , सूर्ययज्ञ , लक्ष्मीयज्ञ , अश्वमेधयज्ञ , गोमेधयज्ञ , नरमेधयज्ञ एवं दैनिक यज्ञ का भी विधान रहा है | इसके साथ ही पुत्रेष्टियज्ञ , राजसूययज्ञ , सोमयज्ञ वर्षायज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार की कामनाओं के लिए होते चले आ रहे हैं | हमारा शास्त्र इतिहास यज्ञ के अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है | हमें आवश्यकता इनकी सूक्ष्मता एवं दिव्यता को समझने की |* *आज हम जिस युग में जीवन यापन कर रहे हैं यहां चारों तरफ से सनातन का विरोध करने वाले आपको दिखाई पड़ेंगे | हमारे
धर्म ग्रंथों के साथ मध्यकाल में छेड़छाड़ करके उनके अर्थ को अनर्थ बनाने का कार्य विधर्मियों के द्वारा किया गया था | सनातन विरोधियों के कहने का तात्पर्य है कि हमारे वेदों में अश्वमेधयज्ञ का अर्थ हुआ अश्व की बलि देना एवं गोमेध यज्ञ का अर्थ हुआ गाय की बलि देना | जबकि ऐसा कुछ नहीं है | ऐसे सभी भ्रम फैलाने वाले विधर्मियों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूंगा कि हमारे प्राचीनतम "शतपथ ब्राह्मण" में लिखा हुआ है कि अश्वमेध शब्द का अर्थ यज्ञ में अश्व कि बलि देना नहीं है, अपितु राष्ट्र के गौरव, कल्याण और विकास के लिए किये जाने वाले सभी कार्य अश्वमेध हैं | इसी प्रकार गौमेध का अर्थ यज्ञ में गौ की बलि देना नहीं है, अपितु अन्न को दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य की किरणों से उचित उपयोग लेना, धरती को पवित्रा या साफ़ रखना है | ‘ गौ’ शब्द का एक और अर्थ हैं पृथ्वी | पृथ्वी और उसके पर्यावरण को स्वच्छ रखना भी ‘गौमेध’ कहलाता है |नरमेध का अर्थ मनुष्य की बलि देना नहीं हैं अपितु मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके शरीर का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना नरमेध यज्ञ है | मनुष्यों को उत्तम कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं संगठित करना भी नरमेध या पुरुषमेध या नृमेध यज्ञ कहलाता है | अजमेध का अर्थ बकरी आदि की यज्ञ में बलि देना नहीं है, अपितु अज कहते हैं बीज, अनाज या धान आदि को | इसलिए अजमेध का सही अर्थ
कृषि की पैदावार बढ़ाना हैं | अजमेध का सीमित अर्थ अग्निहोत्रा में धान आदि की आहुति देना है | इन सूक्ष्म तत्वों को आज हमें समझना होगा अन्यथा हम व हमारी आने वाली पीढ़ियाँ यही समझती रहेंगी कि हमारा सनातन धर्म हिंसक एवं बलि को मान्यता देने वाला ही था | जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है |* *सनातन धर्म में कहीं भी हिंसा या बलि को समर्थन नहीं दिया गया है | हमें विधर्मियों द्वारा फैलाये जा रहे कुप्रचारों से भ्रमित नहीं होना चाहिए |*