देवदत्त पटनायक के लेखों से दशहरा का उद्देश्य सही ढंग से पता चलता है। रावण के अलावा किसी राक्षस या असुर का पुतला नहीं जलाया जाता। इसका उद्देश्य यह बताना है कि अहंकार आपको व आपके परिवार को जलाकर नष्ट कर देता है। अहंकार को इतना बुरा गुण बताया गया है कि रावण हर प्रकार से विद्वान होने के बाद भी केवल अहंकार के कारण राक्षसी प्रवित्ति का कहलाया।
देवदत्त पटनायक बताते हैं कि रावण को समझने के लिए विश्वामित्र की कहानी समझना बहुत जरूरी है, जो बच्चों को बताई ही नहीं जाती। रावण व राजा विश्वामित्र दोनों ही अहंकारी थे। विश्वामित्र ने अहंकार के कारण गुरू बशिष्ठ के कई पुत्रों को मार डाला था। दोनों ही परम् ज्ञानी थे। यहाँ रावण ने शिव तांडव श्रोत की रचना की थी वहीं विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की। अगर रावण ने पूरे कैलाश पर्वत को हाथ से उठाया था तो विश्वामित्र ने पूरी पृथ्वी को उठाया था। दोनों ही ब्रह्म ज्ञानी थे लेकिन अपना अहंकार छोड़ने के कारण विश्वामित्र क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण कहलाये जबकि रावण ब्राह्मण होने के बाद भी अहंकार न छोड़ने के कारण राक्षस कहलाया।