वसन्त पंचमी वाले दिन होली का झण्डा गाड़ा जाता है। वसन्त के मौसम में पतझड़ शुरू हो जाता है। पेड़ से गिरे हुए पत्तों, टहनियों को लोग जला देते थे जिससे प्रदूषण होता था। इसे रोकने के लिए इन गिरे हुए बहुत सारे पत्ते व टहनियों को एक स्थान पर एकत्र करना शुरू किया गया। सवा महीने में उस स्थान पर बहुत सारी लकड़िया एकत्र हो जाती हैं। होली के आसपास बदलता हुआ मौसम होता है जिसे संकमण काल कहते हैं। इस समय वातावरण का तापमान जीवाणुओं के पनपने के लिए अनुकूल होता है। पूरे भारत में एक समय पर ही होली में आग लगाई जाती है जिससे कुछ समय के लिए वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। जो इन जीवाणुओं की संख्या को कम करता है।
होली पर पानी में टेशू के फूल से रंग बनाकर होली खेली जाती है। टेशू का पानी औषधीय होता है जो त्वचा से होकर शरीर के अन्दर जाकर शरीर के लिए लाभकारी होता है। होली पर काँजी बनाई जाती है। इसका राई का पानी होली पर खाये पकवानों को पचाने के साथ पेट के कीड़ों को भी मरता है। बसोड़े पर बासी खाना खाया जाता है यह याद दिलाने के लिए होता है कि इसके बाद बासी खाना नहीं खाना है। क्योंकि गर्मी के कारण खाना भुसने लगता है। जिसे खाने से तबियत बिगड़ सकती है।