मिसेज शर्मा अपनी सहेली के घर गयीं थीं। वहाँ सहेली के बेटे का जन्मदिन था इसलिए मिसेज शर्मा बच्चे के लिए आर्ट व स्टेशनरी का सामान पैक करवाकर लाई थीं। सामान देखकर बच्चा बोल पड़ा कि आँटी इनकी जगह इसका गिफ्ट पैक ले आतीं वो देखने में अच्छा लगता है। मिसेज शर्मा ने अपना पक्ष रखा कि गिफ्ट पैक दोगुना महँगा पड़ रहा था उसमें भी इतना ही सामान था। वहीं उतने ही पैसों में दोगुना सामान आ गया। ये बात सुनकर सहेली बोल पड़ी कि पैसा बचाने के लिए तुम खुला सामान पैक करा लाई। गिफ्ट पैक लेने व देने वाले, दोनों की इज्जत बनी रहती है। आखिर स्टैंडर्ड भी कोई चीज है। सहेली की बात सुनकर और लोग भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगे।
हमारे यहाँ कोई स्नैक्स का गिफ्ट पैक दे गया था। उसमें केवल 5 या 10 रुपये के नमकीन के कई पैकेट थे। जिन सभी की कीमत 50 रुपये थी। वो गिफ्ट पैक 160 रुपये का था। उसकी पैकिंग का खर्चा 5 या 10 रुपये से ज्यादा नहीं होगा लेकिन कम्पनी उस गिफ्ट पैक पर 100 रुपये बेमतलब का कमा रही थी। हममें से ज्यादातर गिफ्ट पैक की पैकिंग को कचरे में फेंक देते हैं। चाहें वो पैकिंग कितनी भी अच्छी क्यों न हो। यानि हमारे द्वारा दिये गये अतिरिक्त पैसे कचरे में जाते हैं। हमारे स्टैंडर्ड या दिखावे की चाह में या फिर हमारी बेवकूफी का फायदा कम्पनियाँ उठती हैं। आज से 20 साल पहले की बात करें जब गिफ्ट पैक का चलन नहीं था तब गिफ्ट पैक उतने ही पैसों के या कभी-कभी उससे भी सस्ते पड़ते थे जो बाजार में उसका लूज सामान खरीदने पर पड़ते। हम लोग दिखवे के लिए इन कम्पनियों को अमीर बना रहे हैं और महंगाई बढ़ने पर सरकारों को कोसते हैं।