दुकानदार- पेंट के दूं या कमीज के?
मैं- जी कमीज के। मैं छः या सात साल का था तब की ये बात है। उस समय एक ही तरह के बटन आते थे पर अब बटन में कई तरह के डिजाइन आते हैं। एक ही डिजाइन के बटन में भी कई पैटर्न होंगे। कुछ महीनों पहले की बात है मुझे एक शर्ट के लिए बटन चाहिए थे। घर से एक खास तरह के बटन लाने को बताए गए थे। कई दुकानों पर ढूढ़ने के बाद भी वो बटन कहीं नहीं मिले। भले ही यह बात छोटी लगे पर बाजारवाद की यह चाल लोगों का बहुत कुछ छीन रही है। एक बटन पसन्द करने में ही बहुत समय खराब हो जाता है। अगर किसी दूसरे का बटन अपने बटन से अच्छा दिख जाये तो कई दिनों के लिए मूढ़ खराब। बाजारीकरण ने इन छोटी-छोटी चीजों से ही हमारा पैसा छीनना या खराब कराना शुरू कर दिया है।
पहले हमारे घर में केवल एक लकड़ी की रई (मथनी) थी, जो 40 साल से भी ज्यादा पुरानी होगी। दादी जी उसी रई का प्रयोग करती थीं लेकिन आज घर में 10 से ज्यादा रई हैं। किसी का रंग अलग है, किसी का डिजाइन तो किसी का काम करने का तरीका, पर काम एक ही आती है बाकी सब तो घर में ऐसे ही पड़ी रहती हैं। ये सब चीजें पैसों के साथ घर की जगह भी खराब कर रही हैं। ऐसे ही बहुत सा सामान है जो घर में बेमतलब जगह घेरे रहता है।