नुमाइश में कपड़े की दुकान लगी थी वहाँ जाओ, दुकानदार को बताओ कि आपको क्या चाहिए। दुकानदार तुरंत वो कपड़ा आपको दे देता। उसी के सामने जमीन पर कपड़ो का ढेर लगाकर एक दुकानदार बैठा था। वहाँ खुद ही ढेर में से कपड़े ढूढो। एक महिला वहाँ 15-20 मिनट से कपड़े ढूंढ रही थी। तभी वहाँ दूसरी महिला आई और उसे तुरंत ही बहुत अच्छा कपड़ा मिल गया।
यही हाल आजकल हर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का हो गया है। चाहे वो वीडियो हो, फोटो या लेखन। यहाँ पर हर कोई कुछ भी अपलोड कर रहा है। कुछ कंटेन्ट की गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि देखते ही मन खराब हो जाता है। अब इतनी सारी सूचनाओं में काम की चीज हाथ लगना मुश्किल होता है और समय भी खराब होता है। इन खराब चीजों (फोटो,वीडियो, लेख आदि) के कारण अच्छे रचनाकारों का काम दब जाता है और उन्हें वो लोग (पाठक, श्रोता, दर्शक) नहीं मिल पाते जितने मिलने चाहिए। पहले पत्रिकाएं (मैग्जीन) शोरूम की तरह होती थीं जिसमें पाठक को 90% तक अपने काम की चीज मिलती थी और वो महीने भर पहले ही उस पत्रिका के अगले अंक का इंतजार करते थे।