सो-सोशल मीडिया का अवलोकन करते समय मेरी नजर एक लेख पर पड़ी। ये लेख मैंने 15-20 साल पहले अखबार में पढ़ा था। जो एक प्रसिद्ध लेखक ने लिखा था पर सो-सोशल मीडिया पर यह लेख उस व्यक्ति ने अपने नाम से डाल रखा था। लेख पढ़कर में पुरानी यादों में खो गया। उन प्रसिद्ध लेखक (आलोक पुराणिक) के लेख पढ़ने के लिए में पड़ोस के दादा जी से अखबार माँग कर लाता था क्योंकि हमारे यहाँ दूसरा अखबार आता था।
सो-सोशल मीडिया पर उस लेख को पढ़ने के बाद उसके नीचे कई कमेंट भी थे। कमेंट पढ़ते-पढ़ते आधा घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला जबकि लेख पढ़ने में पांच-दस मिनट लगे होंगे। पहले अखबार या पत्रिका पढ़ने में इतना समय खराब नहीं होता था। केवल काम की चीज ही मिलती थी पर सो-सोशल मीडिया एक बार खोल लो तो वहाँ तो कुबेर के खजाने का तिलिस्म खुल जाता है।