हिन्दू कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। आप ईसाई या इस्लाम की तरह इसको अपना कर हिन्दू नहीं बन सकते। पर भारत में रहने वालों को ही इस धर्म के मौलिक तत्वों या बेसिक का ज्ञान नहीं है। इसको सनातन धर्म कहा जाता है यानि जो शुरू से था। क्योंकि यह और धर्मों की तरह जड़ (बुत) नहीं है इसलिए इसमें समय के अनुरूप परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। सनातन धर्म का परम उद्देश्य ईश्वर से साक्षात्कार है। मीराबाई, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद आदि को ईश्वर का साक्षात्कार हो चुका है। सनातन धर्म में किसी को कुछ करने या न करने का उपदेश या बाध्य नहीं किया जाता। आप कोई भी पुराण पढ़ लो वहाँ केवल आपको सलाह दी जाती है कि ऐसा करोगे तो यह परिणाम होगा वैसा करोगे तो यह परिणाम होगा। आपको स्वंय अपनी बुद्धि से सोचना है आपको कैसा व्यवहार करना है। रामायण या महाभारत में कभी भी आपको किसी कार्य करने के लिये बाध्य नहीं किया जाता।
सनातन धर्म में आपसे कोई वादा नहीं किया जाता जैसे आपको चंगई मिलेगी या जन्नत नसीब होगी। यहाँ कर्म को प्रधानता दी गयी है। सनातन धर्म में देवताओं की स्तुति की जाती है जैसे कर्पूर गौरम करुणावतारं। पर नये लोग आपसे कुछ वादा करते हैं जैसे अंधे को आँख दीजे या संकट क्षण में दूर करे या व्रत कथाए, सत्यनारायण की कथा जो आपको पूजा न करने पर कष्ट देते हैं। जबकि श्री कृष्ण ने इसी कारण इन्द्र की बजाय गोबर्धन की पूजा की थी।
सनातन धर्म में विचारों के मंथन पर जोर दिया है। जैसे समुद्र मंथन में देवता अपने दुश्मनों या असुरों के साथ भी मंथन करते हैं। इस विचार मंथन में विष व अमृत दोनों निकलते हैं। बुरे या गलत विचारों (विष) को कण्ठ में रखकर अच्छे विचारों (अमृत) को आत्मसात करना चाहिए। दूसरे धर्मों में वाद-विवाद पर जोर दिया जाता है कि मेरा मत ही सही है। यहाँ दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहते हैं।