ये आदत दोनों पीढ़ियों में उनके खिलौनों से आई है।मनोवैज्ञानिक कहते हैं खिलौने ऐसे होने चाहिए जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो। हमारे नाना-दादा भी बंदूक वाले खिलौनों से खेलने को सख्त मना करते थे। अब तो पिचकारी भी बंदूक की शक्ल में आने लगी हैं।
70 के दशक में बच्चों पर ज्यादा विकल्प नहीं होते थे। उस समय मिट्टी या बाँस की खपच्ची के खिलौने होते थे। माँ बाप भी बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करते थे। बच्चे खुद ही अपने खिलौने बना लेते थे। कपड़े या कागज की गुड़िया बना ली । मिट्टी के खिलौने बना लिए। मिट्टी से पूरा का पूरा किचन सेट बना लिया जाता था।