सुबह-सुबह ढोल नगाड़ों की आवाज सुनकर मैं यह देखने गया कि माजरा क्या है। सामने सड़क पर निशुल्क प्याऊ का उद्घाटन हो रहा था। यह प्याऊ शहर के प्रसिद्ध समाज सेवी की थी। जिनकी पूरे शहर में कई निशुल्क प्याऊ लगती थी। उद्धघाटन में उन समाजसेवी के संग पुलिस, अधिकारी व शहर के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। उद्धघाटन तो अच्छी बात है पर यह उद्धघाटन 20 जून को हो रहा था जब गर्मी जा चुकी होती है। क्योंकि उन समाजसेवी को अखबार में अपना समाचार छपवाना होता है तो वह मार्च से जगह-जगह प्याऊ लगवाकर उनके उद्धघाटन करने शुरू कर देते हैं। और हमारे यहाँ आज नम्बर आया था।
इसी तरह सर्दियों में भी नबम्बर से मार्च तक निशुल्क रेन बसेरों के उद्धघाटन होते रहते हैं जबकि कई जरूरतमंद लोग सर्दी में सड़कों पर सोने को मजबूर होते हैं।
जब हम लोग अपने घरों में कूलर या घड़े गर्मी शुरू होते ही लगा लेते हैं तो यह प्याऊ या रेन बसेरे मौसम की शुरुआत में क्यों नहीं लगाए जाते। समाजसेवी पूरे शहर में एक साथ प्याऊ या रेन बसेरे लगवा दें फिर धीरे-धीरे उनके उद्धघाटन करते रहें।