हो-हल्ले की आवाज सुनकर मैं घर के बाहर निकला तो वहाँ का नजारा इस प्रकार था, मेहता जी ने बिट्टू कुमार का गिरेवान पकड़ रखा था और चिल्ला रहे थे दूसरों की बीबी को देखता है तेरी आशिक मिजाजी तो आज मैं उतारता हूँ। मोहल्ले के कई लोग भी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तैयार खड़े थे।
जेठालाल, भाभीजी घर पर हैं आदि नाटकों में तो हमें ऐसे आशिक मिजाज लोग बहुत भाते हैं पर असल जिंदगी में हम उन्हें पीटने तक को तैयार हो जाते हैं। जेठालाल आदि को हम खुद तो देखते ही हैं, साथ में अपने बच्चों को भी दिखते हैं। हम ये भी नहीं सोचते 5 या 10 साल के बच्चे पर जेठालाल का क्या असर पड़ेगा। जब वो बड़ा होकर जेठालाल की तरह बन जाता हैं और उसे दूसरे की बबिता जी पसंद आने लगती है तो समाज को बुरा लगता है। हम बात तो परायी स्त्री को माँ समान मानने की करते हैं पर जेठालाल जैसे चरित्र को देखना पसंद करते हैं।