धर्म कम्बख्त हर जगह घुस आया है. पूरा माहौल ही धर्म-मय है. नुक्कड़ पर चाय पियो, चीनी से ज़्यादा धर्म घुला मिलता है. ठंड में बाहर निकलो तो कोहरा कम, धर्म ज़्यादा टकराता है.
अखबार उठाओ धर्म. टीवी चला लो धर्म. व्हाट्सएप्प पर धर्म, फेसबुक पर धर्म, ट्विटर पर धर्म. धर्म को गालियां देते लोग. धर्म को डिफेंड करते लोग. धर्म को मानने से इंकार करते लोग. उस इंकार पे ऐतराज़ करते लोग. धर्म ओढ़ रहे हैं, बिछा रहे हैं, खा रहे हैं, ठंड में धर्म से हाथ ताप रहे हैं, धर्म को पैमाना बना कर लोगों को जज कर रहे हैं. मर रहे हैं धर्म के लिए, मार भी रहे हैं.
गीता में कहे कृष्ण के कथन को भारतवर्ष के कुछ लोगों ने बेहद सीरियसली ले लिया है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
‘जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब धर्म के उत्थान के लिए मैं जन्म लेता हूं.’ अब भगवान ने तो अवतार लेने का सिस्टम बंद कर दिया है तो लोगों ने खुद ही ज़िम्मा संभाल लिया है धर्म की हानि रोकने का. उस पर करेला नीम यूं चढ़ा है कि हर एक को लगता है धर्म की हानि हो ही रही है. और बहुत जल्द धर्म डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाने वाला है. खुद को अवतारी पुरुष घोषित करने लगते हैं. ना जाने कितने अवतार प्रवचन कर रहे हैं. हर भाषा में. फिर क्या है! धर्म बचाने की कवायद शुरू हो जाती है. और इसका इकलौता रास्ता जो नज़र आता है, वो है विधर्मियों को गरियाना.
धर्म के लिए ऑब्सेशन इतना बढ़ गया है कि हर एक घटना को हम धार्मिक चश्मे से देखने लगे हैं. अभी हाल ही में बंगाल के एक स्कूल में नबी-दिवस मनाने से स्कूल ने मना किया था. ये एक प्रशासनिक कदम था जिसकी अपनी वजूहात थी. उसे कुछ अल्लाह के बंदों ने धार्मिक आज़ादी से जोड़ कर ख़ूब बवाल काटा. सरस्वती पूजा पर भी बैन लगाने की मांग की. मामला इतना बढ़ा कि स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद कर देना पड़ा.
कोई फिल्म-स्टार अपनी राय ज़ाहिर करता है, तुरंत धर्म ख़तरे में आ जाता है. अपने बच्चे का नाम रखने का हर किसी का विशेषाधिकार भी धर्म के रडार पर आने से बच नहीं पाया है. जानवरों के लिए इंसान को मर जाने देने की घटना इसी भारतवर्ष में हुई क्योंकि धर्म का सवाल था. अपनी बीवी के साथ एक तस्वीर शेयर करने की सज़ा क्रिकेटर को ट्रोल हो के, गंदी-गंदी गालियां सुन के भुगतनी पड़ीं क्योंकि धार्मिक भावनाएं आहत हो गई थीं.
भारत के दोनों ही प्रमुख धर्म आजकल एक अजीब तरह की बेधुंदी (नशे) में नज़र आ रहे हैं. एक दूसरे के प्रति नफ़रत का अंडर-करंट तो हमेशा से रहा है दोनों समाजों के बीच, लेकिन वो इतना विज़िबल पहले कभी नहीं था. शायद इसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है. और फोटोशॉप का भी. तरह-तरह की अफवाहें, फैब्रिकेटेड घटनाएं, झूठी तस्वीरें सीधे आपके मोबाइल में पहुंची जा रही है. उन्हें देखकर ख़ून है कि खौला ही रहता है. ख़ासतौर से उस पीढ़ी का जो अभी-अभी जवान हुई है या अभी हो ही रही है. इस जवां ख़ून की समस्त ऊर्जा नफ़रत को जज़्ब करने में खर्च हुई जा रही है. ये बहुत अफ़सोसनाक मंज़र है.
आप धार्मिक हैं, अच्छी बात है. अपने मज़हब में आपका ईमान पुख़्ता है, और भी अच्छी बात है. लेकिन ये न भूलिए कि आप अपने मज़हब की पहचान भी हैं. आपके मज़हब को आपके किये-धरे से आंका जाएगा. तो अगर आप अपने हक़परस्त, दयालु और भेदभाव-विहीन धर्म की साख बचाना चाहते हैं, तो वैसे बन के भी दिखाइए. जिम्मेदारी है आपकी. किसी प्रथा के विरोध करने भर से अगर आप दो सेकंड में सामने वाले पर गालियों का तोपखाना बरसाना शुरू करते हो तो आप बहुत गंदा विज्ञापन हैं अपने धर्म का. बुर्के का विरोध कर रही किसी महिला को वेश्या बताना, कोठे पर जाने की सलाह देना ये दिखाता है कि अपने खुद के मज़हब की बुनियादी शिक्षाओं से आपका कोई वास्ता नहीं. हुज़ूर अगर लौट आये धरती पर तो सबसे पहले आपके ही कान पे रैपट धरेंगे.
- स्वघोषित भगवान बाबा राम रहीम की मिमिक्री करने पर उनके भक्त भड़क उठते हैं और कॉमेडियन को गिरफ्तार होना पड़ता है.
- पैगंबर साहब का मजाक उड़ाने पर मुस्लिम समाज बड़ी संख्या में सड़क पर उतर आता है और तोड़फोड़ भी करता है.
- पीके में कथित तौर पर हिन्दू भगवानों का मजाक उड़ाने के लिए हिंदू समाज का एक बड़ा तबका आमिर की सात पुश्तों को गालियां निकालता है.
- पंजाब में ग्रंथ-साहिब की प्रति क्षतिग्रस्त पाये जाने पर रास्ता रोक कर बवाल काटा जाता है.
चलिए मैं मान लेता हूं कि धर्म हिंसा की, नफरत की, घृणा की शिक्षा नहीं देता. अब बरायमेहरबानी आप मान जाइए कि आपकी ऐसी हरकतें आपके ही धर्म की छवि खराब करती है. आपका ही धर्म शर्मसार होता है आप लोगों का ये हिंसक रूप देख कर.
धर्म की मूलभूत शिक्षाओं का सबक आप रट के आते हैं, कभी अमल भी तो कीजिये उन पर! मान जाइए कि धर्म के नाम पर मचाया हुआ किसी भी प्रकार का हुड़दंग धर्म की बेइज़्ज़ती का प्रमाणपत्र है. और ये आप ही के हाथों होता है धर्म-रक्षकों! किसी नास्तिक या विधर्मी के हाथों नहीं. आपका धर्म उतना ही अच्छा-बुरा है जितने कि आप!
धर्म जब तक निजी है तब तक ही सुसह्य है. सार्वजनिक होते ही ये हथियार बन जाता है. ऐसा हथियार जो अंधाधुंध चलता है. किसी को नहीं बख्शता. अपने मज़हब से, अपनी प्रथाओं से, अपने इतिहास से लगाव होना अच्छी बात है. लेकिन उसे नफ़रत का जरिया बताना सही नहीं. हमारे बुज़ुर्ग, साधु-संत, पैगंबर आदि कहकर चले गए हैं कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं. इसे ही याद रख लिया जाए तो भी बहुत कुछ संवरेगा. उम्मीद करते हैं कभी तो ऐसा होगा.