बौद्ध धर्म में दलाई लामा की खास अहमियत होती है. किसी तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु की मौत के बाद उत्तराधिकारी की खोज की जाती है. ये पूरी प्रोसेस काफी पेचीदा होती है. उत्तराधिकारी का चुनाव वंश परंपरा या वोट के बजाय पुनर्जन्म के आधार पर तय होता है.
कुछ मामलों में धर्मगुरु अपने ‘अवतार’ संबंधी कुछ संकेत छोड़ जाते हैं. धर्मगुरु की मौत के बाद इन संकेतों की मदद से ऐसे बच्चों की लिस्ट बनाई जाती है, जो धर्मगुरु के अवतार जैसे हों. इसमें सबसे ज्यादा जिस बात का ध्यान रखा जाता है, वो है ऐसे बच्चों की लिस्ट बनाना जो धर्मगुरु की मौत के 9 महीने बाद पैदा हुए हों.
1959 में तिब्बत पर चीनी अधिकार से पहले सभी अवतार आस पास के देशों में मिल जाते थे. पर अब लामा की खोज दुनियाभर में की जाने लगी है. 1933 में 13वें दलाई लामा की मौत हुई थी. इसके बाद नए दलाई लामा की खोज शुरू हुई. खोज के वक्त ये पाया गया कि मृत लामा का शरीर दक्षिण दिशा से मुड़कर कुछ ही दिन में पूर्व दिशा की ओर आ गया. बताया जाता है कि जिस दिशा में शव आया, उस दिशा में अजीब किस्म के बादल देखे गए और वहीं बने महल के खंबे पर तारे की शेप वाली फंफूद भी उग आई.
इस खोजी अभियान के कार्यवाहक राजाध्यक्ष ने कई दिन के ध्यान और पूजा के बाद पवित्र झील में ‘अ, क, म’ अक्षरों की आकृतियां, हरे गोमेज और सुनहरी छत वाला एक मठ और मूंगिया रंग की एक छत वाला घर देखा. इसके साल भर बाद ल्हासा से गए खोजी दल ने पूर्व के आम्ददो प्रांत में एक ऐसी ही छत वाले कुंबुंभ मठ के पास मूंगिया छत वाले घर में रहने वाले एक किसान के बच्चे को खोज लिया. इस बच्चे ने 13वें दलाई लामा के कई सहयोगियों, मालाओं, छड़ी और दूसरी चीजों को आसानी से पहचान लिया. यही बच्चा आज के दलाई लामा हैं. 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो.
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