शपथ लेते ही मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार ने देखते ही देखते पूरी रफ्तार पकड ली है। इसी का नतीजा है कि अधिकांश मत्री निर्धारित समय पर सचिवालय पहुंचने लगे हैं। इसी के साथ ही मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के अपने सचिवालय, हजरतगंज कोतवाली और मेडिकल कालेज के औचक निरीक्षण से खासा हडकंपा मच गया है। अधिकारी और कर्मचारी चौकन्ने हो गये हैं। लेकिन, इसके बावजूद, इनकी सरकार में एक ऐसे भी मंत्री हैं, जो मुख्य मंत्री के लिये ‘प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः‘ जैसे साबित हो रहे हैं। इसका अर्थ हुआ कि भोजन करते समय जैसे ही कोई अपने मुंह में पहला कौर डालना चाहे, तो उसमें मक्खी पड जाने से उसका पूरा भोजन ही बेकार हो जाता है। अपने आपराधिक रिकार्ड के कारण चर्चित एक उद्दाम महत्वाकांक्षी मंत्री की इस सरकार में कुछ ऐसी ही भूमिका चल रही है।
बताया जाता है कि मुख्य मंत्री पद के लिये दावेदार भाजपा के इस नेता की जब सारी तिकडमें फेल हो गयीं, तो उन्होंने इस सरकार में गृहमंत्री बनने के लिये जीतोड कोशिशें शुरू कर दी। चर्चा है कि मुख्य मंत्री आदित्य नाथ जब मंत्रियों के नाम और उनको दिये जाने वाले विभागों के बारे में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का अनुमोदन प्राप्त करने के लिये उनके पास गये, तो उन्होंने इनका हौसला आफजाई करते हुए उस पर तत्काल अपनी मोहर लगा दी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के सांसदों की बैठक में भी उन्होंने अपने खास अंदाज में उन सबसे कहा कि आप लोग ऐसा कोई भी काम न करें, जिससे प्रदेश के नये नवेले मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत हो।
बताया जाता है कि इसके बाद मुख्य मंत्री भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से भी विचारविमर्श करने उनके पास गये। चर्चा है कि उन्होंने इशारों में ही कुछ वरिष्ठ मंत्रियों को महत्वपूर्ण विभाग देने की बात कही थी। इनमें प्रदेश के उप मुख्य मंत्री डा0 दिनेश शर्मा सहित कुछ और मंत्रियों के भी नाम थे। सबसे ‘ऊपर‘ उपर्युक्त अति महत्वाकांक्षी मंत्री का नाम था। किन्हीं कारणों से यह खुद को अमित शाह जैसे अति परिपक्व राजनेता का बहुत चहेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं। लेकिन, मुख्य मंत्री योगी तो योगीचित्त के ही ठहरे। उन्होंने शाह को सुना तो जरूर,लेकिन बिना कोई टिप्पणी किये वापस लौट आये। इसके बाद उनकी समझ में जो भी मंत्री जिस विभाग के लिये उन्हें उपयुक्त समझ में आया, उन्होने उसे उसी विभाग का दायित्व सौंप दिया।
बताया जाता है कि अपने विभाग से घोर असंतुष्ट उक्त वरिष्ठ मंत्री को जब कुछ और नहीं सूझा, तो बौखलाहट में उन्होंने एनेक्सी के पंचम तल पर स्थित मुख्य मंत्री के सचिवालय के कार्यालय कक्ष पर ही कब्जा कर लिया। वहां अपने नाम और पद की प्लेट भी लगवा दी। इसके बाद मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपना राजकाज चलाने लगे। यहीं उनके समर्थकों की भी भीड जुटने लगी। इस तरह लगातार तीन दिनों तक उनके हनक दिखाते रहने की खबर जब सीधे मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ तक पहंची, तो उन्होंने वहां पहुंच कर खुद अपनी आंखों से यह सारा नजारा देखा। इस पर मुख्य मंत्री ने यह कहते हुए उन्हें जमकर लताड लगायी कि जब आप जैसे वरिष्ठ मंत्री ही इस हद तक की अनुशासनहीनता करने पर उतर आयेंगे, यह सरकार कैसे चलेगी और लोगों में उसके प्रति कितना गलत संदेश जायेगा। इसके बाद ही उन महोदय की नेमप्लेट हटाकर मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की नेमप्लेट लगा दी गयी।
बताया जाता है कि इस घटनाक्रम से बुरी आहत और बौखलाये इस मंत्री ने सीधे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से फरियाद करने के इरादे से उसी रात दिल्ली पहुंच गये। यहां उन्होंने पहले तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर अपना दुखडा सुनाने के लिये उनसे समय लेने की कोशिश की। लेकिन, इस दिशा में उनके सारे जीतोड प्रयास बेकार हो गये। प्रधान मंत्री ने उन्हें मिलने का समय ही नहीं दिया। इसके बाद वह अमित शाह के पास पहुंचे। यहां भी उन्हें यह कहकर दो टूक जवाब दे दिया गया कि लौट जाइये और कायदे से अपना काम कीजिये। लेकिन, बताया जाता है कि अभी तक अपना काम शुरू करने की बजाय यह मातम मनाने में ही लगे हुए हैं। इसके विपरीत योगी सरकार के उन अन्य सभी मंत्रियों ने विधिवत अपना काम शुरू कर दिया है जिनके लिये चर्चा है कि शाह ने इशारे में ही सिफारिश की थी।
हाँलाकि, मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की अद्भुत गतिशीलता और सक्रियता, काम करन-कराने के उनके अंदाज और तौरतरीके और संवेदनशीलता का पूरे प्रदेश में बहुत अच्छा संदेश जाना शुरू हो गया है। ऐसा ही होता रहा, तो कुछ ही समय के बाद वह आम आदमी की नजर में उत्तर प्रदेश कें दूसरे मोदी समझे जाने लगेंगे। यह चर्चा लोगों की जुबान पर आ गयी है। उप मुख्य मंत्री डा0 दिनेश शर्मा सहित ब्रजेश पाठक, सूर्यप्रताप शाही, स्वतंत्र देव सिंह,डा0 रीता जोशी बहुगुणा सिद्धार्थ नाथ सिंह और सुरेश खन्ना जैसे मंत्रियों ने भी अपना काम शुरू कर दिया है। लेकिन, अभी भी कई ऐसे मंत्री हैं, जो न तो मुख्य मंत्री द्वारा निर्धारित समय पर सचिवालय आते हैं। और आये भी तो जैसे पाला छूकर जाने में उन्हें देर नहीं लगती। कुछ ऐसे भी माननीय हैं, जो न सचिवालय में और न अपने आवास पर ही आम लोगों के लिये सुलभ हैं।