देश में आज भी कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए अपने मज़हब से कहीं ज़्यादा देश की एकता और अखंडता के लिए समर्पित होना मायने रखता है. 72 साल के हयात उल्ला चतुर्वेदी भी एक ऐसे ही शख़्स हैं.
पेशे से शिक्षक हयात उल्ला को संस्कृत भाषा का संपूर्ण ज्ञान है. संस्कृत में विद्वान होने के कारण ही उन्हें 1967 में चतुर्वेदी की उपाधि मिली थी. वे एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे. 2003 में वो रिटायर हुए. इसके बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा. नौकरी छोड़ने के 14 साल बाद भी वे पढ़ाने का मोह नहीं छोड़ पाए हैं और इस समय महगांव इंटर कॉलेज में छात्रों को पढ़ाते हैं.
हयात उल्ला चतुर्वेदी कौशांबी जिला के रहने वाले हैं. हयात को चारों वेदों का भी ज्ञान है. उनके घर में भी संस्कृत भाषा में ही बातचीत होती है. 'वे मानते हैं कि भाषा का ज्ञान मज़हब की दीवार को गिरा देता है, जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है.'
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बच्चों के बीच ज्ञान बांटने का ऐसा जज़्बा है कि उम्र की लाचारी भी आड़े नहीं आती. संस्कृत विषय में उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए वह राष्ट्रीय एकता के लिए अमेरिका, नेपाल, मॉरीशस आदि देशों में सेमिनार भी कर चुके हैं. बच्चों के मुताबिक, हयात उल्ला चतुर्वेदी का पढ़ाने का तरीका दूसरे अध्यापकों से अलग है. वो बच्चों को समझाने के लिए हिंदी, उर्दू और संस्कृत भाषा का जब प्रयोग करते है, तो उन्हें बेहतर समझ में आता है.
महगांव इंटर कालेज में हयात उल्ला के साथ पढ़ाने वाले उनके सहयोगी अध्यापक भी उनको अपना आदर्श मानते हैं.अध्यापकों का कहना है, "शुरुआत के दिनों में हमें बड़ा आश्चर्य होता था कि एक मुस्लिम होकर वो कैसे ब्राह्मणों की भाषा का विद्वान हो सकता है, लेकिन अब उनके ज्ञान और जज्बे को देख उन्हें भी प्रेरणा मिलती है.
हयात उल्ला जैसे कई लोग आज भी धर्म और मज़हब की कड़वाहट से दूर एक ऐसी नई पीढ़ी तैयार करने में लगे हैं, जो सही मायने में देश को नई ऊंचाईयों तक ले जा सकें.
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