ईश्वरचंद्र विद्यासागर जानते थे की बालिकाओ की शिक्षा से ही समाज में फैली रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास और कुरुतियाँ दूर की जा सकती है.
देश को समृद्ध , समर्थ और योग्य नागरिक प्रदान करने के लिए बालिकाओ की शिक्षा जरुरी है. उन्होंने बंगाल में ऐसे 35 स्कूल खोले जिसमे बालिकाओ की शिक्षा का प्रबंध था. वे बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए मेहनती और मेधावी छात्रो को पुरुस्कार भी दिया करते थे. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से सबसे पहले एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली चंद्रमुखी बोस को पुरुस्कार दिया था.
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ब्रह्म समाज नामक संस्था के सदस्य थे. स्त्री की शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने विधवा विवाह और विधवाओ की दशा सुधारने का काम भी किया. इसके लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
अंत में विधवा विवाह को क़ानूनी स्वीकृति प्राप्त हो गयी. सुधारवादी विचारधाराओ का जनता के बीच प्रचार करने के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने अंग्रेजी व बंगला में पत्र निकाले. ईश्वरचंद्र विद्यासागर का कहना था की कोई भी व्यक्ति अच्छे कपडे पहनने, अच्छे मकान में रहने तथा अच्छा खाने से ही बड़ा नहीं होता बल्कि अच्छे काम करने से बड़ा होता है.
एक बार ईश्वरचंद्र विद्यासागर गाड़ी में कलकत्ता से वर्दमान आ रहे थे उसी गाड़ी में एक नवयुवक बहुत अच्छे कपडे पहने बैठा था. उसे भी वर्दमान आना था. स्टेशन पर गाड़ी पहुंची नवयुवक ने अपना सामान ले चलने के लिए कुली को पुकारा. स्टेशन पर उस समय कोई कूली नहीं था. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उससे कहा की यहाँ कोई कूली नहीं है. आप परेशान न हो,आपका सामान में ले चलता हूँ. नवयुवक खुश हो गया. उसने कहाँ मैं तुम्हे पूरी मजदूरी दूंगा. घर पहुंचकर वह नवयुवक ईश्वरचंद्र विद्यासागर को पैसे देने लगा. उन्होंने पैसे नहीं लिए.
अगले दिन वर्दमान में ईश्वरचंद्र विद्यासागर के स्वागत के लिए बहुत से लोग एकत्र हुए. वह नवयुवक भी वहां आया. उसने देखा की यह तो वहीँ व्यक्ति है जो कल मेरा सामान लेकर आया था. नवयुवक को बड़ा आश्चर्य हुआ और लज्जित भी हुआ. जब सभा समाप्त हुई तब वह ईश्वरचंद्र विद्यासागर के घर गया और पैरो पर गिरकर क्षमा मांगी. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने समझाया की अपना काम स्वयं करना चाहिए.
ईश्वरचंद्र विद्यासागर 19वी शताब्दी के महान विभूति थे. उनकी मृत्यु 62 वर्ष की आयु में संवत 1948 में हुई. उन्होंने अपने समय में फैली अशिक्षा और रूढ़िवादिता को दूर करने का संकल्प लिया. अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी उन्होंने शैक्षिक, सामाजिक और महिलाओ की स्थिति में में जो सुधार किये उसके लिए हमारे देशवासी उन्हें सदैव याद करेंगे.
ऐसे महान समाज-सुधारक को हमारा शत-शत नमन.
गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर को आधुनिक बंगाल काव्य का जनक माना है.