*इस समस्त सृष्टि में हमारा देश भारत अपने गौरवशाली संस्कृति एवं सभ्यता के लिए संपूर्ण विश्व में जाना जाता था | अनेक ऋषि - महर्षियों ने इसी पुण्य भूमि भारत में जन्म लेकर के मानव मात्र के कल्याण के लिए अनेकों प्रकार की मान्यताओं एवं परंपराओं का सृजन किया | संस्कृति एवं सभ्यता का प्रसार हमारे देश भारत से ही हुआ था | इस सृष्टि के प्रथम ग्रंथ जिन्हें वेद कहा जाता है इसी भारत भूमि मे प्रकट हुए | हमारा देश भारत वह है जिसे विश्व गुरु एवं सोने की चिड़िया कहा जाता था अपने गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखते हुए हमारे पूर्वज आत्माभिमान में रहते हुए मानव कल्याण एवं समाज के उत्थान का कार्य करते थे जिससे हमारा देश भारत ज्ञान की गंगा बहाता था | अदम्य साहस , ज्ञान - विज्ञान एवं आध्यात्मिकता का उदय हमारे देश भारत से ही हुआ | मानव जीवन को सुगम कैसे बनाया जाय ? जीवन की जटिलताओं से बाहर कैसे निकला जाय ? इसका ज्ञान हमारे धर्म ग्रंथों में भरा पड़ा है , अन्य किसी देश में शायद यह विषय देखने को ना मिले | इन्हीं विषयों को समझते हुए अनेकों विदेशी विद्वानों ने हमारे धर्म ग्रंथों की व्याख्या अपनी भाषाओं में कर अपने देश को प्रगतिपथ पर अग्रसर किया , परंतु हमारे देश वासियों ने अपने ही ज्ञान को भूल कर के विदेशी सभ्यता को अपना करके आधुनिक बनने में सारा समय व्यर्थ कर दिया | विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जहां हमारे देश भारत की संस्कृति एवं सभ्यता की छाप ना देखने को मिलती हो , परंतु हम आज अपने ही देश की संस्कृति एवं सभ्यता को भूलते चले जा रहे हैं | यही हमारा दुर्भाग्य है | यदि हमारे देश के महर्षियों ने ज्ञान , विज्ञान , कला , समृद्धि और संस्कृति का प्रसार समस्त विश्व में किया तो इसका मुख्य कारण था कि उनके भीतर उस खोज के प्रति तन्मयता , साहस तो था ही साथ ही वे कर्मवीर भी थे | उनके इन्हीं साहस एवं तन्मयता का ही परिणाम था कि हमारा देश विश्व गुरु बन सका था |*
*आज प्रत्येक भारतवासी किसी भी नए ज्ञान - विज्ञान के लिए विदेशों की ओर देख रहा है , क्योंकि आज हमने पतन की परिभाषा सीख ली है | जिस प्रकार मदिरापान करके नशे में झूमते हुए मनुष्य को स्वयं का भान नहीं रह जाता उसी प्रकार आज भारतवासियों की नस नस में विदेशीपन एवं बनावट का नशा छा गया है और उसी नशे में वे अपने सांस्कृतिक गौरव को भूलते जा रहे हैं एवं दुर्गति को प्राप्त हो रहे हैं | आज हमारे देश में यदि बेकारी , भ्रष्टाचार एवं अत्याचार चहुँओर व्याप्त है तो इसका एक ही कारण है कि हम आज अपने आत्माभिमान को भूल चुके हैं | हमारी आत्मा चिर निद्रा में सो गयी है जिसके कारण आज समाज में अनेक प्रकार के व्यभिचार देखने को मिल रहे हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि हमारे देश में प्राचीन विज्ञान एवं संस्कृति आज भी विद्यमान है , प्राचीन विद्याओं का अस्तित्व आज भी है परंतु आज मनुष्य के भीतर वह साहस एवं तन्मयता नहीं दिखाई पड़ रही है जो राष्ट्र के गौरव को फिर से उठा सके | जिस दिन अपने गौरव एवं दिव्य संस्कृति को हम समझ जाएंगे उसी दिन हमारे समाज से अनेकों प्रकार की व्यभिचार स्वत: समाप्त हो जाएंगे | जहां हमारे पूर्वजों ने कर्मयोगी बन करके मानव मात्र के कल्याण के लिए अनेक प्रकार की ज्ञान-विज्ञान का प्रसार किया था वही आज लोग कहीं ना कहीं से अपने कर्म से विमुख होते जा रहे हैं | आधुनिक शिक्षा पद्धति के वश में हो करके अपनी प्राचीन शिक्षा पद्धति , संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को भूलता जा रहा आज का मनुष्य सांस्कृतिक पतन की ओर अग्रसर है | आज मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म अर्थोपार्जन रह गया है , समाज के कल्याण की चिंता एवं समाज के उत्थान के विषय में विचार करने का समय आज किसी के पास नहीं बचा है | इसका कारण है कि आज मनुष्य समस्त कार्य निजी स्वार्थ सिद्धि के लिए कर रहा है | अपने देश भारत का गौरव किस प्रकार बढ़े इसका विचार करने वाले नाम मात्र के लोग रहे गए हैं | विचार कीजिए कि न तो देश बदला है , न ही वह धरती बदली , जो प्राचीन देश भारत पहले था वही आज भी है फिर ऐसा क्यों हो रहा है ?? इसका जबाब यही हो सकता है कि आज यदि कुछ बदला है तो मनुष्य की मानसिकता एवं उसके द्वारा सृजित परिवेश | इसी को सुधारने की आवश्यकता है |*
*आज पुन: हमारा देश भारत विश्वगुरु बन सकता है परन्तु उसके लिए हम भारतवासियों को पुन: अपने सांस्कृतिक गौरव के मूल्य को समझते हुए कर्मयोगी बनकर साहस के साथ आध्यात्मिक वृत्तियों को जागृत करना होगा |*