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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*जिस प्रकार एक जौहरी अनजाने में हीरे को कांच समझ बैठता है और बाद में पछताता हैं उसी प्रकार आज के कुछ लोग सनातन धर्म की मान्यता एवं नियम रूपी हीरे को व्यर्थ की मान्यता मान लेते हैं और मनमाने ढंग से सारे कृत्य करते हैं जिसके फलस्वरूप उनको भी पछताना ही पड़ता है | इस शरीर को हीरा तन कहा गया है | इस देव दुर्लभ हीरा तन को पाकर के जो लोग युवावस्था में इसका सदुपयोग नहीं कर पाते वे सभी उसी जौहरी की भांति वृद्धावस्था में पश्चाताप करते हैं जिसने हीरे को कांच समझ लिया था | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को समय रहते हुए इस दुर्लभ मानव शरीर की योग्यता को समझते हुए इसे सदैव सत्कर्म में लगाते रहना चाहिए |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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