*सनातन धर्म में मनुष्य को मोक्ष प्रदान करने वाली दिव्य सप्तपुरियों का उल्लेख मिलता है | यथा :- अयोध्या - मथुरा माया काशी कांचीत्वन्तिका ! पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः !! अर्थात :- अयोध्या , मथुरा , माया (हरिद्वार) काशी , कांची (कांचीपुरम्) अवन्तिका (उज्जैन) एवं द्वारिका यह सात ऐसे स्थान हैं हमारे भारत देश में जो मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करने वाले कहे हैं जिसमें से प्रथम स्थान है अयोध्या का | अयोध्या' का रहस्य उद्घाटित करते हुए गया कि :--- "अकारो ब्रह्म च प्रोक्तं यकारो विष्णुरुच्यते ! धकारो रुद्ररुपश्च अयोध्या नाम राजते !! अर्थात :- अ कार ब्रह्मा है और य कार विष्णु तथा ध कार शिवरुप है | इस प्रकार अयोध्या के नाम में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का निवास है | इसी अयोध्या में भगवान विष्णु के अवतारी पुरुष रूप में भगवान श्री राम का प्राकट्य हुआ था | अयोध्या के कण - कण में प्रभु श्रीराम की दिव्य छवि दिखाई पड़ती है | क्योंकि यह अयोध्या भगवान श्रीराम की क्रीड़ा भूमि रही है यहाँ कण कण में उनकी स्मृति अनुप्राणित है | यही कारण है कि यहां वर्ष भर श्रद्धालु भक्तों का तांता लगा रहता है | सनातन धर्म में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत एक विधान मिलता है प्रदक्षिणा का | प्रदक्षिणा का अर्थ होता है अपने आराध्य के दाहिनी ओर चारों ओर घूमना अर्थात परिक्रमा करना | इसी भाव को मन में रखकर लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष पावन धाम अयोध्या की परिक्रमा करने के लिए पधारते हैं | अयोध्या में दो प्रकार की परिक्रमा होती है | एक बड़ी परिक्रमा जिसे चौदह कोसी परिक्रमा कहा जाता है तो दूसरी छोटी परिक्रमा जो पंचकोसी के नाम से जानी जाती है | चौदहकोसी परिक्रमा का विधान है की यह परिक्रमा सरयू में स्नान ध्यान करके स्वर्गद्वार से प्रारंभ होती है और पूरे नगर का भ्रमण करके पुनः आकर स्वर्ग द्वार पर ही इसका समापन हो जाता है | जिस प्रकार पूजन में आवाज देवताओं की प्रदक्षिणा की जाती है उसी प्रकार पूरे नगर का भ्रमण अर्थात परिक्रमा करके अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा समर्पित की जाती है | नंगे पांव जय सियाराम के उद्घोष के साथ एक साथ लाखों श्रद्धालु एक ही मार्ग पर चलते हुए सनातन की दिव्यता को प्रदर्शित करते हैं |*
*आज कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को पावन धाम अयोध्या के चतुर्दिक चौदह कोसी परिक्रमा श्रद्धालुओं के द्वारा की जा रही है | परंतु प्राचीन काल की परिक्रमा और आज की परिक्रमा में विशेष अंतर देखने को मिल रहा है | जहां पहले लोग सरयू जी में स्नान करके हनुमान जी के दर्शन करने के बाद रामलला का पूजन करके स्वर्गद्वार में इकट्ठे होते थे और स्वर्गद्वार से अपनी परिक्रमा प्रारंभ करते थे , वही आज परिक्रमा का कोई विधान ही नहीं रह गया है जिसकी जहां से इच्छा होती है वहीं से परिक्रमा उठा देता है , और परिक्रमा करते हुए जब अयोध्या पहुंचता है तब इच्छा हुई तो स्नान कर लिया नहीं तो हाथ पैर धुल कर आगे बढ़ जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूं कि धर्मकार्य में भी आधुनिकता स्पष्ट देखने को मिल रही है | जहां जय श्री राम का नारा लगाते हुए परिक्रमा करने का विधान बताया गया है , जहां माताएं मंगल गीत गाते हुए परिक्रमा करते हुए देखी जाती थी आज वही परिक्रमा में जल्दबाजी एवं दौड़ते हुए परिक्रमा जल्दी से जल्दी पूरी करने की होड़ सी लगी रहती है | युवा वर्ग एक दूसरे को पछाड़ते हुए आगे बढ़ते रहते हैं | कोई गिर गया तो मुड़कर कोई देखना ही नहीं चाहता है जबकि श्रद्धा से परिक्रमा करने का अर्थ है कि यदि कोई ऐसा श्रद्धालु भी परिक्रमा करने आ रहे जो कि चलने में कुछ असहज लग रहा है तो उसकी सहायता करते हुए उसकी परिक्रमा भी पूरी कराई जाय | परोपकार की भावना मन में लेकर के भगवान के प्रति श्रद्धा लेकरके की गयी परिक्रमा अवश्य फलदायी होती है | आज सनातन धर्म की दिव्यता देखनी हो तो पावनधाम अयोध्या में देखी जा सकती है जहां आज लगभग २० लाख श्रद्धालु एक साथ एक ही मार्ग पर बढ़ते हुए देखे जा सकते हैं | यह अयोध्या एवं अयोध्या नाथ भगवान श्री राम के प्रति आम जनमानस की श्रद्धा भावना ही है | भगवान श्रीराम मनुष्य के रोम-रोम में बसते हैं | भगवान श्री राम की महिमा का वर्णन स्वयं ब्रह्मा जी भी नहीं कर सकते हैं | परिक्रमा की महिमा को ऋग्वेद में भी बताया गया है | कोई भी पूजा कोई भी अनुष्ठान बिना प्रदक्षिणा अर्थात परिक्रमा के पूर्ण नहीं माना जा सकता है | इसी भाव को मन में लेकर के अपने जीवन के ज्ञाताज्ञात कर्मों के उचित फल एवं मोक्ष की कामना से भक्तजन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर वर्णित मोक्षदायिनी अयोध्यापुरी पहुंचते हैं |*
*परिक्रमा के लिए कहा गया है कि :- "ज्यों ज्यों पग आगे बढ़इ , कोटिन यज्ञ समान !" परिक्रमा में उठाया हुआ एक-एक पग करोड़ों यज्ञों के फल को प्रधान करने वाला होता है |*