मंदिर से निकल कर मिसेज़ मेहता ने मिसेज़ गुप्ता से बोली,
- अच्छा जी चलती हूँ मैं. बहू के आने का टाइम हो गया है.
- आपका ख्याल रखती है कि नहीं ? हमारी तो बिचारी सुबह सुबह निकल जाती है रात को आती है. अपना ही ख्याल नहीं रख पाती उल्टा हमें ही उसका ध्यान पड़ता है. क्या करें आजकल नौकरियां ही ऐसी हो गई हैं. ना आने का टाइम है ना जाने का. फिर ये मीटिंग शीटिंग आजकल बहुत चल पड़ी हैं. कभी बम्बे जाना है तो कभी बंगलोर.
- ना ये तो आ जाती है छे सवा छे. भई पीठ पीछे कै रई हूँ ख्याल रखती है. बेटा बहू दोनों ही ख्याल रखते हैं जी. जो सच्ची बात है सो है.
- नईं वैसे तो ठीक है. बाहर भी जाते हैं तो भी ध्यान रखते ही हैं. तक़रीबन हर सन्डे बाहर ही खाते हैं तो मुझे भी ले जाते हैं. पर थकावट हो जाती है जी. आजकल इतने अंग्रेजी खाने चल पड़े हैं न जी कि बस हमें तो नाम ही याद नहीं रहते ना ही हजम होते हैं जी अब.
- हंजी हंजी वो तो है. हमारी बहू भी कह रही थी कि शनिवार को डिनर पर चलेंगे. अच्छा जी मिसेज़ गुप्ता बाय.
चलते चलते मिसेज़ मेहता को ख़्याल आता रहा कि बेटा बाहर ले जाता है पर ना तो ज़्यादा खाने को मनुहार करता है और ना ही फिरंगी चीज़ें खाने देता है. बेटी तो हर चीज़ खिलाती है सच बेटियों की बात ही और है. बेटी भी दिल्ली में ही रहती है और महीने मे दो तीन बार मिलने आ जाती है और मॉ को अपने प्यार दुलार से सरोबार कर जाती है. बहू बेटे के पास बात करने के लिए रोज़ कोई नया विषय तो होता नहीं सो बात तबीयत ठीक है ?, दवाई ले ली ?, आराम कर लो, नींद ठीक से आई ? वगैरा तक सीमित रहती थी. बेटी के पास मसालेदार विषय बहुत थे. कभी ननद का, कभी सास ससुर का, देवरानी का या फिर पतिदेव का. मिसेज़ मेहता को भी इन बातों में आनंद आता था. बेटी के साथ पूरा दिन भी कम पड़ जाता था. पर उसके जाते ही मिसेज़ मेहता थोड़ी देर गुमसुम हो जाती थी. बेटा माँ को जितना नियम से रखता बेटी एक दिन के लाड़ प्यार में सारे नियम भूला देती.
शनिवार शाम को बहू ने तैयार होने को कहा साथ में कह दिया की जेवर ना पहनना क्यूंकि रात हो जाएगी. तीनों तैयार हो कर रेस्टोरेंट पहुँच गए. बेटे ने कहा,
- मम्मी आपके लिए क्या आर्डर करूं ? पीज़ा और नॉन-वेज तो आपके लिए ठीक नहीं रहेगा. बाकी आप बताओ. पर आप प्लीज़ ध्यान रखना कल को कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए.
मम्मी ने दाल रोटी खाई.
अगले शनिवार बहू बेटे ने किसी पार्टी में जाना था इसलिए मिसेज़ मेहता ने बेटी को फ़ोन कर दिया. बिटिया ने कहा कि वो शाम को पिक कर लेगी और डिनर करा के वापिस ड्राप कर जाएगी. शनिवार शाम बिटिया आ गई और मम्मी को लिपट गयी,
- ओहो ! मम्मी ये सूट नहीं चलेगा. प्लीज बदलो इसको. अपनी नीली वाली साड़ी निकालो, गले में कुछ पहनो. कोई परफ्यूम लगाओ. अच्छी तरह तैयार हो जाओ ज़रा अब तो मज़े करने के दिन हैं तुम्हारे.
मम्मी, बेटी और जमाई राजा तीनों रेस्टोरेंट पहुंचे. बेटी ने मम्मी से कहा,
- अब बताओ क्या खाओगे मम्मी ? नूडल्स ले लो, चिकन ले लो नहीं तो पास्ता ले लो. जो दिल करता हो खाओ, शौक से खाओ.
मम्मी ने थोड़ा थोड़ा सभी कुछ खा लिया. रात दस बजे घर वापिस आ गए. 11 बजे बेटा बहू भी आ गए. लगभग 12 बजे मम्मी के पेट में दर्द होने लगा. पहले तो लगा अभी ठीक हो जाएगा पर फिर बिस्तर से उठना ही पड़ा. दर्द भी हो रहा था और घबराहट भी कि बेटा डांटेगा.
लाइट जलाई और दवाइयों का पिटारा खोला और गोली ढूंढ ली. स्टील के गिलास में बड़ी सावधानी से पानी डाला ताकि आवाज़ ना हो. लेकिन सावधानी कुछ ज्यादा हो गई और भरा हुआ गिलास गिर पड़ा. बेटा भागा हुआ आया और जान गया की रात को जागना पड़ेगा. मम्मी की क्लास तो उसी वक़्त रात को 12.30 बजे ही लग गई.
सुबह बिटिया का फ़ोन आया.
- मम्मी आप कैसी हो ?
- कैसी क्या ? तेरे लाड में जाने क्या क्या खा लिया. रात से पेट में दर्द हो रहा है. अब गोलीयां खा रही हूँ और साथ में तेरे भाई की डांट पी रही हूँ. बहुत गुस्से में है. और सुन ले, तेरी क्लास शाम को लगने वाली है !
- - - गायत्री वर्धन, नई दिल्ली.
मंदिर से निकल कर मिसेज़ मेहता ने मिसेज़ गुप्ता से बोली,
- अच्छा जी चलती हूँ मैं. बहू के आने का टाइम हो गया है.
- आपका ख्याल रखती है कि नहीं ? हमारी तो बिचारी सुबह सुबह निकल जाती है रात को आती है. अपना ही ख्याल नहीं रख पाती उल्टा हमें ही उसका ध्यान पड़ता है. क्या करें आजकल नौकरियां ही ऐसी हो गई हैं. ना आने का टाइम है ना जाने का. फिर ये मीटिंग शीटिंग आजकल बहुत चल पड़ी हैं. कभी बम्बे जाना है तो कभी बंगलोर.
- ना ये तो आ जाती है छे सवा छे. भई पीठ पीछे कै रई हूँ ख्याल रखती है. बेटा बहू दोनों ही ख्याल रखते हैं जी. जो सच्ची बात है सो है.
- नईं वैसे तो ठीक है. बाहर भी जाते हैं तो भी ध्यान रखते ही हैं. तक़रीबन हर सन्डे बाहर ही खाते हैं तो मुझे भी ले जाते हैं. पर थकावट हो जाती है जी. आजकल इतने अंग्रेजी खाने चल पड़े हैं न जी कि बस हमें तो नाम ही याद नहीं रहते ना ही हजम होते हैं जी अब.
- हंजी हंजी वो तो है. हमारी बहू भी कह रही थी कि शनिवार को डिनर पर चलेंगे. अच्छा जी मिसेज़ गुप्ता बाय.
चलते चलते मिसेज़ मेहता को ख़्याल आता रहा कि बेटा बाहर ले जाता है पर ना तो ज़्यादा खाने को मनुहार करता है और ना ही फिरंगी चीज़ें खाने देता है. बेटी तो हर चीज़ खिलाती है सच बेटियों की बात ही और है. बेटी भी दिल्ली में ही रहती है और महीने मे दो तीन बार मिलने आ जाती है और मॉ को अपने प्यार दुलार से सरोबार कर जाती है. बहू बेटे के पास बात करने के लिए रोज़ कोई नया विषय तो होता नहीं सो बात तबीयत ठीक है ?, दवाई ले ली ?, आराम कर लो, नींद ठीक से आई ? वगैरा तक सीमित रहती थी. बेटी के पास मसालेदार विषय बहुत थे. कभी ननद का, कभी सास ससुर का, देवरानी का या फिर पतिदेव का. मिसेज़ मेहता को भी इन बातों में आनंद आता था. बेटी के साथ पूरा दिन भी कम पड़ जाता था. पर उसके जाते ही मिसेज़ मेहता थोड़ी देर गुमसुम हो जाती थी. बेटा माँ को जितना नियम से रखता बेटी एक दिन के लाड़ प्यार में सारे नियम भूला देती.
शनिवार शाम को बहू ने तैयार होने को कहा साथ में कह दिया की जेवर ना पहनना क्यूंकि रात हो जाएगी. तीनों तैयार हो कर रेस्टोरेंट पहुँच गए. बेटे ने कहा,
- मम्मी आपके लिए क्या आर्डर करूं ? पीज़ा और नॉन-वेज तो आपके लिए ठीक नहीं रहेगा. बाकी आप बताओ. पर आप प्लीज़ ध्यान रखना कल को कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए.
मम्मी ने दाल रोटी खाई.
अगले शनिवार बहू बेटे ने किसी पार्टी में जाना था इसलिए मिसेज़ मेहता ने बेटी को फ़ोन कर दिया. बिटिया ने कहा कि वो शाम को पिक कर लेगी और डिनर करा के वापिस ड्राप कर जाएगी. शनिवार शाम बिटिया आ गई और मम्मी को लिपट गयी,
- ओहो ! मम्मी ये सूट नहीं चलेगा. प्लीज बदलो इसको. अपनी नीली वाली साड़ी निकालो, गले में कुछ पहनो. कोई परफ्यूम लगाओ. अच्छी तरह तैयार हो जाओ ज़रा अब तो मज़े करने के दिन हैं तुम्हारे.
मम्मी, बेटी और जमाई राजा तीनों रेस्टोरेंट पहुंचे. बेटी ने मम्मी से कहा,
- अब बताओ क्या खाओगे मम्मी ? नूडल्स ले लो, चिकन ले लो नहीं तो पास्ता ले लो. जो दिल करता हो खाओ, शौक से खाओ.
मम्मी ने थोड़ा थोड़ा सभी कुछ खा लिया. रात दस बजे घर वापिस आ गए. 11 बजे बेटा बहू भी आ गए. लगभग 12 बजे मम्मी के पेट में दर्द होने लगा. पहले तो लगा अभी ठीक हो जाएगा पर फिर बिस्तर से उठना ही पड़ा. दर्द भी हो रहा था और घबराहट भी कि बेटा डांटेगा.
लाइट जलाई और दवाइयों का पिटारा खोला और गोली ढूंढ ली. स्टील के गिलास में बड़ी सावधानी से पानी डाला ताकि आवाज़ ना हो. लेकिन सावधानी कुछ ज्यादा हो गई और भरा हुआ गिलास गिर पड़ा. बेटा भागा हुआ आया और जान गया की रात को जागना पड़ेगा. मम्मी की क्लास तो उसी वक़्त रात को 12.30 बजे ही लग गई.
सुबह बिटिया का फ़ोन आया.
- मम्मी आप कैसी हो ?
- कैसी क्या ? तेरे लाड में जाने क्या क्या खा लिया. रात से पेट में दर्द हो रहा है. अब गोलीयां खा रही हूँ और साथ में तेरे भाई की डांट पी रही हूँ. बहुत गुस्से में है. और सुन ले, तेरी क्लास शाम को लगने वाली है !
- - - गायत्री वर्धन, नई दिल्ली.