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कल फोन आया था,
एक बजे ट्रेन से आ रही है..! किसी को स्टेशन भेजने की बात चल ऱही थी ।
सच भी था... आज
रिया ससुराल से दूसरी बार दामाद जी के साथ.. आ रही हैं;
घर के
माहौल में उत्साह सा महसूस हो रहा हैं ।
इसी बीच .....एक तेज आवाज आती हैं ~
"इतना सब देने की क्या जरूरत है ?? बेकार फिजूलखर्ची क्यों करना ??
और हाँ, आ भी रही
है तो कहो, टैक्सी करके आ जाये स्टेशन से ।"
( बहन के आने
की बात सुनकर अश्विन भुनभुनाया )
माँ तो एकदम से सकते में आ गई आखिर यह हो क्या
रहा हैं ??
माँ बोली... जब
घर में दो-दो गाड़ियाँ हैं, तो टैक्सी
करके क्यों आएगी मेरी बेटी ? ...और दामाद
जी का कोई मान सम्मान है या नहीं ??
... उसे ससुराल में कुछ सुनना न पड़े ! “मैं खुद
चला जाऊंगा उसे लेने, तुम्हे तकलीफ है तो
तुम रहने दो ।"
पिताजी गुस्से
से.. एक सांस में यह सब बोल गए !!
और ये इतना सारा
सामान का खर्चा क्यों ? " जब शादी
में इतना सारा दे दिया है
तो और पैसा फूँकने से क्या मतलब ।"
अश्विन ने बहन बहनोई के लिए आये कीमती उपहारों
की ओर देखकर ताना कसा ....
पिता जी बोले,
बकवास बंद कर ! "तुमसे तो नहीं माँग रहे हैं । मेरा पैसा है... मैं
अपनी बेटी को चाहे जो दूँ ।"
“ तुम्हारा
दिमाग खराब हो गया है क्या... जो ऐसी
बातें कर रहे हो ।" पिता फिर
से गुस्से में बोले ।
अश्विन दबी आवाज में फिर बोला -
"चाहे जब चली आती है मुँह उठाये... ।"
पिता अब अपने गुस्से पर काबू नही कर पाये और
चिल्ला कर बोले...
" क्यों
न आएगी ??? इस घर की बेटी है वो ।"
तभी.. माँ भी बीच में टोकते हुए वोलीं -
मेरी बेटी हैं वो, “ये उसका भी घर है ।
जब चाहे जितने दिन के लिए चाहे... वह रह
सकती हैं । बराबरी का हक है उसका...।
आखिर तुम्हे हो क्या गया है ? जो ऐसा
अनाप-शनाप बके जा रहे हो ।"
अब बारी.. अश्विन की थी ...
"मुझे कुछ नही हुआ है.. माँ !!
आज मैं बस वही बोल रहा हूँ , जो
आप हमेशा # बुआ के लिए बोलते थे ।
आज अपनी बेटी के लिए..
आज आपको बड़ा दर्द हो रहा है,
लेकिन.. कभी #दादाजी के दर्द.. के बारे में
सोचा है ?
कभी बुआजी
की ससुराल और फूफाजी
के मान-सम्मान की बात नहीं सोची ?
...माँ और
पिता जी एक दम से सन्नाटे में चले गए ...
अश्विन लगातार बोले जा रहा था : "दादाजी
ने कभी आपसे एक धेला नहीं मांगा... वो खुद
आपसे ज्यादा सक्षम थे,
फिर भी आपको बुआ का आना,
दादाजी का उन्हें कुछ देना नहीं सुहाया...आखिर क्यों
???
और हाँ बात अगर बराबरी और हक की ही है, तो
आपकी बेटी से भी पहले बुआजी का हक है इस घर पर...।"
अफसोस भरे स्वर में अश्विन की आवाज आंसूओ के कारण भर्रा सी गई थी.. ।
माँ-पिता की गर्दन शर्म से नीची हो गयी,
पर अश्विन नही रूका... आपके
खुदगर्ज स्वभाव के कारण बुआ ने यहाँ आना ही छोड़ दिया ।
दादाजी इसी गम में घुलकर मर गए ...।
... और हाँ
में खुद जा रहा हूँ स्टेशन,
रिया को लेने; पर मुझे आज भी खुशी है कि,
“मैं कम से कम आपके जैसा खुदगर्ज
भाई तो नहीं हूँ ।"
कहते हुए
अश्विन कार की चाबी उठाकर स्टेशन जाने के
लिए निकल भी गया था ।
पिताजी आसूँ
पौंछते हुए अपनी बहन सरिता को फोन लगाने लगे ।
दीवार पर लगी.. दादाजी की तस्वीर मानो मुस्कुराकर अश्विन को आशीर्वाद दे रही थी... ।
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मित्रो, यह आज की
पीढ़ी की सकारात्मक सोच है, जो
विचारणीय है और सराहनीय भी है; यदि
हम भी ऐसी ही सोच रखेंगे तो घर की हर बेटी का सम्मान होगा और रिश्तों के बंधन और
भी मजबूत बनेंगे । रक्षाबंधन के पावन पर्व पर यह मनन करने लायक
है ।
* रक्षाबंधन की हार्दिक
शुभेच्छाएँ *
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पशन्तु मा कश्चिन दुख भाग भवेत ।।
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“राखी
मिल गई”
ननद ने अपनी भाभी को फोन किया और पूछा : भाभी
मैंने राखी भेजी थी, मिल गयी क्या आप
लोगों को ?
भाभी : नहीं
दीदी अभी नहीं मिली...
ननद : भाभी कल तक देख लो,
अगर नहीं मिली तो मैं खुद आऊंगी राखी लेकर...
अगले दिन भाभी ने खुद फोन किया : हाँ
दीदी, आपकी राखी मिल गयी है, बहुत अच्छी है... “Thank you
Didi”.
ननद ने फोन रखा और आँखों में आंसू लेकर सोचने
लगी "मन ही मन बोली... लेकिन भाभी मैंने तो
अभी राखी भेजी ही नहीं... और आपको मिल भी गयी
!!!"
यह बहुत पुरानी
कहानी कई जगह अब सच होने लगीं हैं । दोस्तों कृपया अपने
"पवित्र रिश्तों" को
सिमटने
और फिर टूटने से बचाएं क्योंकि रिश्ते हमारे जीवन के फूल हैं जिन्हें ईश्वर ने खुद
हमारे लिए खिलाया है...
रिश्ते काफी अनमोल होते है इनकी रक्षा करे...
बहन बेटी पर किये गए खर्च से हमेशा फ़ायदा ही होता
है...
बहने हमसे चंद पैसे लेने नही,
बल्कि हमे बेसकिमती दुआएं देने आती है, हमारी बलाओं को टालने आती
है, अपने भाई भाभी व परिवार को मोहब्बत भरी नज़र से देखने आती है...
मायका एक बेटी के लिये मायाजाल की तरह होता है । वह मरते दम तक इसे नही भुला
पाती ।
बाबुल का घर और बचपन की यादें शायद ही कोई
बेटी भुला पाती होगी...।
प्लीज... एक बेटी
को,
एक बहिन को,
एक बुआ को
एक ननद को,
उसके अधिकार से वंचित मत कीजिए...।
उसे प्रेमपूर्वक आमंत्रित कीजिए...।
आज ही फोन उठाइये और राखी के लिए क्यों ? हर वार-त्यौहार पर आमंत्रित कीजिए कि,
दीदी टाइम पर आ जाइएगा । आपका
बेसब्री से इंतजार रहेगा...।
आपके फोन का कमाल ये होगा कि दीदी अगले कुछ
दिनों तक चिड़िया की तरह चहक उठेगी । बेसब्री
से मायके आने के सपने गुन्दनें में लग जाएगी ।
यकीन नही तो आप करके देखिए ।।। एक फोन ।।।
आप दिल से ननद को बुलाने की तैयारी कीजिए । ईश्वर सब देखता है ।
एक फोन आपके पास भी आएगा । आपके वजूद को महकाने
के लिए...
आपके लबों पर मुस्कान लाने के लिए...
आपके बचपन मे ले जाने के लिए...
बाबुल के घर बुलाने के लिए, जी
हाँ... बाबुल के घर...
खुश रहिए, मुस्कराते रहिए...।
ईश्वर करे आपके घर रिश्ते खूब फले-फुले...।
बात दिल को लगी हो तो,
शेयर कर दीजिए ।
हार्दिक शुभ-कामनाएँ
सहित... धन्यवाद ... ( इंजी. बैरवा )