भारत में “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” (Beti Bachao Beti Padhao) एक अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मुद्दा है | बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं पर कविताओं और नारों के जरिए न केवल सरकार बल्कि आम आदमी भी अपनी बात को लोगों के समक्ष रख रहे है, जिससे समाज में फ़ैली कुरीतियां जैसे कन्याभ्रूण हत्या , बाल- विवाह इत्यादि को रोका जाए। ताकि बेटी को एक सुरक्षित समाज मिल सके और वो हर किसी से कदम से कदम मिला कर चल सके। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं योजना को संयुक्त रूप से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जनवरी सन 2015 को शुरू किया गया था.
“उसे हम पर तो देते हैं , मगर उड़ने नहीं देते ,
हमारी बेटी बुलबुल है, मगर पिंजरे में रहते है - प्रो रहमान मुस्सवीर”
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं जैसे कई अभियान सरकार द्वारा चलाये गए ताकि लोगों में इसके प्रति जगरूकता बढे। लेकिन आज भी कई ऐसी जगह हैं जहाँ कन्याभ्रूण हत्या, बाल-विवाह जैसी कुप्रथाओं को नहीं रोका जा रहा बल्कि इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। कितने भी पढ़े- लिखे होने के बावजूद आज भी लड़कियों को हमेशा ही लड़कों की अपेक्षा कम ही समझा जाता है।
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किसी ने खूब कहा है
“मोती हैं अगर बेटे तो हीरा है बेटियां ,
एक कुल को देखते हैं बेटे, तो दो - दो कुल की लाज होती हैं बेटियां।”
ऐसी ही बेटियों पर कुछ कवितायेँ हम आपसे साझा कर रहे हैं -
#बेटी : माँ तूने ऐसे तो नहीं पाला था!!! (अंकिशा मिश्रा)
कोख में अपनी नौ महीने तक , एक सुन्दर दुनिया दिखाई थी
सवालों के घेरे में इतने गम ने अँधेरे है
तूने ये तो नहीं बताया था….
कच्ची माटी को तू सीने से लगाए ,आँचल में छिपाए फिरती थी
पर मिट्टी को यूँ दुनिया रेत समझ कर बोतल में बंद कर देती है
तूने ये तो नहीं बतलाया था .....
वो लुक्का छुपी खेल में जब मैं छुपती तू ढूंढती थी ,
देख मुझे अनदेखा कर देती थी
पर अब जब छुपती चुप्पी साधे सब कुरेद कुरेद के निकलते है
तो क्या तूने मुझसे वो झूठा खेल रचाया था….
भरा गिलास दूध का लेकर दौड़- दौड़ तू पिलाती थी
पर दौड़ा- दौड़ा कर यूँ ज़हर पिलाती दुनिया है
तूने ये तो नहीं बुझाया था.....
मांथे पर बिंदिया लगाकर मुझे सजाती थी ,
नज़र का काला टीका लगाती थी ,
पर अब सजकर जब निकलूं घर से , तो हैवानी नज़रें यूँ तार तार कर देती है
तूने ये तो नहीं समझाया था....
पतंग सा उड़ गया बचपन , अब जवानी की यही दास्ताँ लिखती हूँ
आँख मूँद जब सोचा मैंने तो मन में सवाल ये आया था
कि माँ तूने ऐसे तो नहीं पाला था
ओ माँ तूने ऐसे तो नहीं पला था !!!!!!
#बेटी :कैसी भी हो एक बहन होनी चाहिये..!! (आकाश बाबू )
बड़ी हो तो माँ- बाप से बचाने वाली
छोटी हो तो हमारे पीठ पिछे छुपने वाली..!!
.
बड़ी हो तो चुपचाप हमारे पाँकेट मे पैसे रखने
वाली..!
छोटी हो तो चुपचाप पैसे निकाल के लेने
वाली...!!
छोटी हो या बड़ी, छोटी-
छोटी बातों पे लड़ने वाली,
एक बहन होनी चाहिये..!!
बड़ी हो तो , गलती पे
हमारे कान खींचने वाली..!
छोटी हो तो अपनी गलती पर,
साँरी भईया कहने वाली..!!
खुद से ज्यादा हमे प्यार करने वाली,
एक बहन होनी चाहिये..!!
#बेटी : है शक्ति, हिम्मत, अभिमान (जितेंद्र कुमार शर्मा )
मॅा क्या सुन रही हो मेरी आवाज
मै आपकी ही परछाई
क्या भूल गयी मुझे
मै आपकी अजन्मी बेटी
शायद समय के चक्र ने
विस्मृत कर दिया होगा आपको
पर मुझे आज भी सब याद है
वो आपका मुस्कराता चेहरा
ममता भरी आॅंखें
कुछ भी नही भूली हूॅ।
वो दादी की कर्कश आवाज
वो बात -बात पर तानों से आगाज
आखिर मजबूर होगयी थी आप भी
मुझसे मुक्ति पाने के लिए
हर रास्ते को तलाशा था आपने
पर भी कुछ न कर सकी
मेरे मन में अनुकरिक्त प्रश्न है आज भी
कोई मेरा कसूर बता दे
क्या हुई थी मुझसे खता
कोई कुछ तो बता दे।
हरियाणा की बेटी ने दिया है भारत को सम्मान
अब तो लगा दो अजन्मी बेटी की हत्या पर पूर्ण विराम।
निर्दोष को सजा देने की परम्परा का
कब तक करोगे निर्वाहन
क्यों नही करते बेटी बचाओ का आवाहन
शायद डरते हों
क्ही खत्म न हो जाये
पुरूषों का अधिपत्य
कही बढ़ न जाये
नारियों का महत्व
पर रोक न पाआगें
बेटियों के बढ़ते कदमों को
हर बार दिलायेगी
तुम्हें मान और सम्मान
बेटी है शक्ति, हिम्मत और अभिमान
#बेटी : बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ (नरेंद्र जानी)
माता की मित्र है बेटी
पिता का प्रेम है बेटी
दादा की लाड़ली है बेटी
दादी का सहारा है बेटी
संबंधों की सरिता है बेटी
प्रेम का प्रवाह है बेटी
खानदान की गरिमा है बेटी
वात्सल्य का झरना है बेटी
मर्यादा की मूरत है बेटी
संस्कारों की सूरत है बेटी
बलिदान की पराकाष्ठा है बेटी
पुण्य का प्रतिभाव है बेटी
कलयुग में सतयुग है बेटी
परिवार का परिचय है बेटी
पवित्रता की प्रतिमा है बेटी
अगली पीढ़ी की माँ है बेटी
संसार का महादान है बेटी
ईश्वर का वरदान है बेटी
धैर्य, साहस , सहनशीलता की मूरत है बेटी
लक्ष्मी,सरस्वती , पार्वती की मूरत है बेटी .
तो आओ हम मिलकर अपना दायित्व निभाये ,
बेटी बचाएं बेटी पढ़ाएं ..
" माँ " जैसे पवित्र शब्द का अस्तित्व बचाएं ,
बेटी बचाएं बेटी बचाएं ..
#बेटी : बेटी को क्यों मार रहा है (चन्दन जाट )
ये केसा दौर आ गया इंसान खुद ही खुद को मार रहा है ।
बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यों मार रहा है ।।
अपने मान समान के कारण ग़लत क़दम तु क्यों उठा रहा है ।
बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यो मार रहा है ।।
बेटीयॉं घर की लक्ष्मी है पगले बेटीयॉं घर की शान है ।
बेटियों की ही बदौलत से तो यह सारा संसार है ।।
जिस घर में बेटी का मान नही वह घर कोई घर है भला ।
बेटे की चाहत में बेटी का तु क्यों घोट रहा है गला ।।
जिस परिवार में बेटीयो का मान नही वह कोई परिवार है भला ।
नज़र दौड़ा कर देख ले कितनी दुर वह परिवार है चला ।।
जिस दिन घर तु बहु लायेगा वह भी किसी की बेटी है ।
अब तु केसे स्वीकार करेगा बहु ही तो तेरी बेटी ही है ।।
थोड़े से दहेज के कारण बेटीयो को जलाते हो ।
इतना ही धन प्यारा है तो खुद क्यों नही कमाते हो ।।
अरे बेटीयॉं घर की लक्ष्मी है थोड़ी सी तो चर्म करो ।
बेटीयो को बोझ समझने वालों चलु भर पानी में डुब मरो ।।
#बेटी : गरीब की बेटी (स्वर्ण पॉल)
रोज जीती है रोज मरती है ,
हज़ारो जाम दुःख के पीती है ,
खुद मे खुद सिमट सी जाती है ,
इक गरीब की बेटी !
घर भी रोता है ,दर भी रोता है ,
जमीन- ओ आसमा रोता है ,
जब भी मुस्करा के चलती है,
इक गरीब की बेटी !
जब से पैदा हुई है रोती है ,
भूख मिटती नहीं , गम खाती है ,
दुःख अपने नहीं बताती है ,
इक गरीब की बेटी !
देखती डोलिया उठती हुई झरोखो से ,
कब आओगे तुम कहती ये कहारों से ,
चुपके चुपके अश्क़ बहाती है ,
इक गरीब की बेटी !
फटे लिवास को सी कर तन ढकती है ,
न जीती है न मरती है ,
न जाने किस लिए सवरती है ,
इक गरीब की बेटी !
तरसती रहती है वो इक लाल जोड़े को ,
कोई तो आए उसे विहाने को ,
इसी उमीद मे टूटती बिखरती है ,
इक गरीब की बेटी !
लेती हाथो का तकिया कर के ,
सो गई चाँद से बतिया कर के ,
सुबह होती नहीं दुःख सहती है ,
इक गरीब की बेटी !
हज़ारो बार रौंदा है हवस ने ,
हज़ारो ठेसे पहुंची है वरस मे ,
कैसे कह दे की अब कुवारी है ,
इक गरीब की बेटी !
ये जीना भी कैसा जीना है ,
पल पल जिस मे मरना है ,
ऐ मौत आजा तुझे बुलाती है ,
इक गरीब की बेटी !
बहाने ढूढ़ती है जीने के ,
सहारे ढूढ़ती है मरने के ,
देखो देखो ऎसे जीती है ,
इक गरीब की बेटी !
फँसी खाए या जहर खाए ,
कोई देख ले तो मर जाये ,
अपने जख्मो को जब दिखती है ,
इक गरीब की बेटी !
जिस को मिलते है गहरे-गम ,
जखम ऐसे मिले हारे हरदम ,
दुःखों से चूर हो कर मरती है ,
इक गरीब की बेटी !
# बेटी: बेटा-बेटी सभी पढ़ेंगे (आनंद विश्वास )
नानी वाली कथा- कहानी , अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग में बेटा-बेटी,
सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।
फौलादी ले नेक इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,
बेटी शिक्षित पूरी शिक्षा।
हमने सोचा, मनन करो तुम,
सोचो समझो करो समीक्षा।
सारा जग शिक्षामय करना,हमने सोचा मन में ठानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
अब कोई ना अनपढ़ होगा,
सबके हाथों पुस्तक होगी।
ज्ञान -गंग की पावन धारा,
सबके आँगन तक पहुँचेगी।
पुस्तक और पैन की शक्ति,जगजाहिर जानी पहचानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग सम्मान-पर्व है,
ज्ञान-पर्व है, दान-पर्व है।
सब सबका सम्मान करे तो,
जीवन का उत्थान-पर्व है।
सोने की चिड़िया बोली है, बेटी-युग की हवा सुहानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
#बेटी : बेटी है नभ में जब तक (शिवदत्त श्रोतिय )
बेटी तुम्हारे आँचल में जहां की खुशियां भर देती है
तुम्हारी चार दीवारों को मुकम्मल घर कर देती है ॥
बेटी धरा पर खुदा की कुदरत का नायाब नमूना है
बेटी न हो जिस घर में, उस घर का आँगन सूना है ॥
बेटी माँ से ही, धीरे-धीरे माँ होना सीखती जाती है
बेटी माँ को उसके बचपन का आभास कराती है ॥
बेटी ने जुजुत्सा, सहनशीलता, साहस पिता से पाया
दया, स्नेह, विनम्रता, त्याग उसमे माँ से समाया ॥
बेटी, बाप की इज्जत,और माँ की परछाई होती है
फूल बिछड़ने पर गुलशन से सारी बगिया रोती है ॥
बेटी को जब माँ बाप ने, घर से विदा किया होगा
महसूस करो कि सीने से कलेजा अलग किया होगा ॥
किसी मुर्ख ने आज फिर बेटी को कोख में मार दिया
अपने हाथो, अपनी नाजुक वंश बेल को काट दिया ॥
बीज नहीं होगा जब बोलो, तुम कैसे पेड़ लगाओगे
बेटी मार के जिन्दा हो, किस मुह से बहू घर लाओगे ॥
अन्नपूर्णा कहा मुझे पर, भूंख मिटा न पायी अब तक
तुम भी तुम बन कर जिन्दा हो, बेटी है नभ में जब तक ॥
#बेटी : मैं वर्तमान की बेटी हूँ (रवींद्र सिंह यादव)
बीसवीं सदी में,
प्रेमचंद की निर्मला थी बेटी ,
इक्कीसवीं सदी में,
नयना / गुड़िया या निर्भया,
बन चुकी है बेटी।
कुछ नाम याद होंगे आपको,
वैदिक साहित्य की बेटियों के-
सीता,सावित्री,अनुसुइया ,उर्मिला ;
अहिल्या, शबरी, शकुंतला ,
गार्गी ,मैत्रेयी ,द्रोपदी या राधा।
इतिहास में
यशोधरा, मीरा, रज़िया या लक्ष्मीबाई
साहित्य में
सुभद्रा, महादेवी, शिवानी, इस्मत , अमृता,
अरुंधति या महाश्वेता
के नाम भी याद होंगे।
आज चहुंओर चर्चित हैं-
सायना ,सिंधु ,साक्षी ,सानिया ;
जहां क़दम रखती हैं ,
छोड़ देती हैं निशानियां।
घूंघट से निकलकर,
लड़ाकू – पायलट बन गयी है बेटी,
सायकिल क्या रेल-चालिका भी बन गयी है बेटी,
अंतरिक्ष हो या अंटार्टिका,
सागर हो या हिमालय,
अपना परचम लहरा चुकी है बेटी,
क़लम से लेकर तलवार तक उठा चुकी है बेटी,
फिर भी सामाजिक वर्जनाओं की बेड़ियों में जकड़ी है बेटी।
सृष्टि की सौन्दर्यवान कृति को ,
परिवेश दे रहा आघात के अमिट चिह्न ,
कुतूहल मिश्रित वेदना की अनुभूति से,
सजल हैं बेटी के सुकोमल नयन ,
हतप्रभ है-
देख-सुन समाज की सोच का चयन।
उलझा हुआ है ज़माना,
अव्यक्त पूर्वाग्रहों में,
बेटी के माँ -बाप को डराते हैं –
पुरुष के पाशविक , वहशी अत्याचार ,
कुदृष्टि में निहित अंधकार,
दहेज से लिपटे समाज के कदाचार ,
क़ानून के रखवाले होते लाचार ,
चरित्र-निर्माण के सूत्र होते बंटाढार ,
भौतिकता का क्रूरतर अंबार।
बेटी ख़ुद को कोसती है,
विद्रोह का सोचती है ,
पुरुष-सत्ता से संचालित संवेदनाविहीन समाज की ,
विसंगतियों के मकड़जाल से हारकर ,
अब न लिखेगी बेटी –
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ,
मोहे किसी कुपात्र को न दीजो "।
लज्जा, मर्यादा ,संस्कार की बेड़ियाँ ,
बंधन -भाव की नाज़ुक कड़ियाँ,
अब तोड़ दूँगी मैं ,
बहती धारा मोड़ दूँगी मैं ,
मूल्यों की नई इबारत रच डालूँगी मैं,
माँ के चरणों में आकाश झुका दूँगी ,
पिता का सर फ़ख़्र से ऊँचा उठा दूँगी,
मुझे जीने दो संसार में,
अपनों के प्यार -दुलार में ,
मैं बेटी हूँ वर्तमान की !
मैं बेटी हूँ हिंदुस्तान की !!
#बेटी : बहुएं भी किसी की बेटी है (राघवेंद्र कुमार )
दहेज के नाम पर,
जो बहुओं को जलाते हैं ।
किसी की लाड़ली को ब्याहकर,
क़हर पर क़हर ढाते हैं ।
किसने दिया है हक़ इन्हें,
किसी को भी जलाने का ।
ख़ुदा की क़ायनात के,
हँसते हुए फूल कुचल जाने का ।
कितने बड़े वहशी हैं,
ये आदमख़ोर हैं ।
ख़ुदा की इस रियाया में,
ये नर पिशाच हैं ।
दोज़क बना डाला जहाँ,
अब ये भी कर डालिए ।
बहुएं जलाने से पहले,
अपनी बेटियाँ भी जलाइए ।
बहुएं भी किसी की बेटी हैं,
किसी का अरमान हैं ।
ये समझना छोड़ दो,
नारियाँ विलासिता का सामान हैं ।
शर्म करो डूब मरो,
माँ के दूध को लजाते हो ।
अनुपम निर्मल संस्कृति में,
ज़हर तुम मिलाते हो ।
किसी की लाड़ली तुम जलाओगे,
कोई तुम्हारी लाड़ली जलाएगा ।
वो दिन दूर नहीं है,
जब सिर्फ औरत नाम रह जाएगा ।
धन की मृगतृष्णा में,
क्या सब लुटा डालोगे ?
जिस कोख से जन्मे हो,
क्या वही मिटा डालोगे ?
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#बेटी : बेटी है तो कल है (उत्तम)
बोये जाते हैं बेटे
पर उग जाती हैं बेटियाँ,
खाद पानी बेटों को
पर लहराती हैं बेटियां,
स्कूल जाते हैं बेटे
पर पढ़ जाती हैं बेटियां,
मेहनत करते हैं बेटे
पर अव्वल आती हैं बेटियां,
रुलाते हैं जब खूब बेटे
तब हंसाती हैं बेटियां,
नाम करें न करें बेटे
पर नाम कमाती हैं बेटियां,..
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