*सनातन वैदिक
धर्म में त्रिदेवों (ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश) की सर्वोच्चता प्रत्येक
देश , काल , परिस्थिति में व्याप्त है | ब्रह्मा जी सृजन करते हैं , श्री हरि विष्णु जी पालनकर्ता हैं तो भगवान रुद्र को संहारक कहा गया है | क्या भगवान शिव संहारक मात्र हैं ?? जी नहीं ! भगवान शिव का चरित्र रहस्स्यों से भरा है | अनादि , अनंत महादेव शिव स्नयं परब्रह्म हैं | अनेकानेक नामों से जाने जाने वाले भगवान शिव ही साकार , निराकार , ॐकार एवं लिंगाकार स्वरूप में देव , दानव एवं मानव के द्वारा पूजित होते रहे हैं | इनके
रहस्य को बड़े - बड़े ऋषि - महर्षि , साधक की क्या बात करें स्वयं भगवान श्री हरि एवं ब्रह्मा जी भी नहीं जान पाये हैं | पारब्रह्म होते हुए भी सृष्टि की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित रखने के लिए वे ब्रह्मा एवं विष्णु के साथ रुद्र में त्रिगुणात्मकता का प्रतीक बने हैं | त्रिदेवों के भी सृजनहार भगवान शिव का चरित्र इतना वृहद है कि इनमें विरोधाभास भी देखने को मिलता है | स्वयं विचार कीजिए कि भगवान शिव संहारक कहे जाने के बाद भी लिंगाकार में सर्वाधिक पूज्यनीय हैं | जैसा कि तुलसीदास जी ने मानस में परमात्मा का वर्णन करते हुए लिखा है :-- बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना ! कर बिनु करम करइ विधि नाना !! उसी प्रकार भगवान शिव अकर्ता होते हुए भी सृष्टि के मूल हैं | कहीं उन्हें श्यामवर्णीय तो कहीं कर्पूरगौरम् कहा गया है | भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र एवं प्रचंड क्रोध के कारण भयानक स्वरूप वाले हैं जो कि अनुचित करने पर ब्रह्मा जी को भी दण्ड देने से नहीं चूकते वहीं वे औढरदानी एवं इतने भोले हैं कि जरा सी भक्ति करके उनसे कुछ भी मांगा जा सकता है | और तो और रुद्र को जहाँ मृत्यु का देवता कहा गया है वहीं उनको "महामृत्युंजय" के नाम से भी पुकारा जाता है |* *आज हम सबको भगवान शिव के परिवार से शिक्षा लेने की आवश्यकता है कि किस प्रकार एक दूसरे के बैरी भी एक साथ रह सकते हैं | जहाँ भगवान शिव का वाहन नंदी ( एक बैल ) है वहीं जगज्जननी भगवती पार्वती का वाहन बैल का प्रबल शत्रु सिंह है | कुमार कार्तिक के वाहन मोर के भोजन सर्प को भोलेनाथ ने गले में धारण कर रखा है तो सर्प का भोजन चूहा भगवान गणेश का वाहन भी वहीं है | यह स्पष्ट करता है कि जिस परिवार का मुखिया समदर्शी है वहाँ शत्रु भी मित्र की तरह एक साथ रह सकते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जिस तरह भगवान शिव रहस्यमय हैं उसी उनका आधुनिक निवास (शिवालय) भी रहस्यों से भरा है | आप शिवालय में जाईये तो आपको सर्वप्रथम नंदी महाराज के दर्शन होंगे | भगवान शिव के वाहन नंदी की तरह ही हमारा शरीर भी नंदी है | यहाँ शिव को आत्मा एवं नंदी को शरीर को कहा जा सकता है | नंदी जी का दर्शन करके दृष्टि पहुँच जाती है कूर्म (कच्छप) पर , जो हमारे मन का द्योतक होकर निरंतर स्वयं को शिवमय बनाये रखने का संकेत करता है | फिर भगवान गणेश हैं जो कि संयम , पवित्रता , उच्च विचारधारा एवं मधुरता प्रदर्शित करते हैं और इन गुणों के अभाव में भगवान शिव को पाना दुर्लभ है | आगे हनुमान जी हैं जो सेवा एवं समर्पण की प्रतिमूर्ति हैं ! भला सेवा एवं समपर्ण के बिना कुछ प्राप्त किया जा सकता है | भगवान शिव के ऊपर निरंतर टपकने वाली जलधारा द्योतक है निरंतरता की ! कुमार षडानन का दर्शन करके हमें षडरिपुओं (काम क्रोध मद लोभ मोह अहंकार) से बचे रहने का संकेत मिलता है | क्योंकि जिसमें भी इनमें से एक भी अवगुण है वह भगवान शिव की कृपा नहीं पा सकता | भगवान शिव के गले का नाग सदैव मृत्यु का स्मरण कराने वाला है | भगवती पार्वती तो शिवरूपी आत्मा की शक्ति हैं |* *भगवान शिव के रहस्यों को आज तक कोई नहीं जान पाया है परंतु जितना जानने में आया है उतना ही पालन करके जीवन को धन्य किया जा सकता है |*