*इस धराधाम पर अनेकों प्रकार के जीव भ्रमण कर रहे हैं | इन्हीं जीवों में एक जीव मनुष्य भी है | मनुष्य अपने सदाचरण , कर्म एवं स्वभाव के कारण ही पूज्यनीय व निंदित बनता आया है | जिसके जैसे कर्म होते हैं इस
समाज में उसको वैसा स्थान स्वत: प्राप्त हो जाता है , इसके लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है | हमारे सनातन
धर्म में जहाँ मनुष्य को सत्कार्य करके सम्मानित बने रहने का उपदेश दिया गया है वहीं दुष्कृत्य (चोरी , हिंसा आदि) से बचते हुए जीवन जीने का निर्देश भी दिया गया है | चोरी एक ऐसा पाप है जिसका प्रायश्चित करना बड़ा कठिन है | सनातन साहित्यों में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जहाँ चोरी करते हुए चरित्रों की दुर्गति का वर्णन पढकर मनुष्य एक बार सिहर उठता है | मनुष्यों द्वारा अनैतिक कार्य न किये जायं इसी को लक्ष्य में रखकर हमारे महर्षियों ने अनेकानेक वर्जनाओं का उल्लेख करते हुए मानव जीवन में क्या करें और क्या न करें के विषय में ग्रंथ लिखे जिनको पढकर मनुष्य ने अपने मार्ग निर्धारित किये | कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने इन दिशा - निर्देशों को अनदेखा करके अपने मन में उत्पन्न हुए विचारों के अनुसार कृत्य / कुकृत्य / दुष्कृत्य का विचार त्यागकर कार्य किये तो उनका परिणाम भी जनमानस ने देखा | महाबली रावण ने चोरी से भगवती सीता हरण किया तो उसकी इस चोरी का परिणाम भी विश्वविदित है | कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे देवता रहे हों , दानव रहे हों या मनुष्य , जिसने भी चोरी जैसा अपकर्म किया है उसका समाज में पतन ही हुआ है | चोरी जैसे अपकर्म से सदैव बचने का प्रयास किया जाना चाहिए |* *आज युग बदल गये , संसाधन बदल गये और साथ ही मनुष्य की मानसिकता में भी बदलाव आ गया है | पहले की अपेक्षा मनुष्य ने प्रगति की है , बौद्धिक प्रगति करके मनुष्य उन्नतिशील हुआ है | कहते हैं जहाँ सकारात्मकता विकसित होती है वहीं पर नकारात्मकता का भी विकास होता रहता है | आज मनुष्य ने वैज्ञानिक तरीके से चोरी प्रारम्भ कर दिया है | आज बाजारों में ऐसे अनेक उत्पाद प्राप्त होते रहते हैं जो कि नकली होते हैं परंतु उनकी प्रदर्शन पट्टिका किसी विश्वसनीय कम्पनी की होती है जिसके भ्रम में फंसकर भोले - भाले मनुष्य नकली उत्पाद को ही असली समझकर उपभोग करते रहते हैं | यह बुद्धिमत्तापूर्ण चोरी है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि चोरी कैसी भी उसका फल भुगतना ही पड़ता है | प्राय: समाचारपत्रों में नकली कम्पनियों के गोदामों पर छापेमारी के
समाचार पढने को मिलते रहते हैं | सबसे चिंतनीय यह है कि लोग जिसे विद्वान समझकर सम्मान देते हैं उन विद्वानों में भी कुछ ऐसे ही कर्मों में लिप्त पाये जा रहे हैं | किसी महापुरुष के
लेख या किसी सन्दर्भ का व्याख्यान करने के बाद नीचे अपने नाम का हस्ताक्षर करके उसे अपना लेख बताने का प्रचलन इस समय जोरों पर है जो कि ऐसे विद्वानों की विद्वता को कुंठित करने वाला कृत्य ही कहा जा सकता है | जिस प्रकार नकली उत्पादों पर अपना लेबल लगाने वालों पर छापेमारी करके ऐसा करने वालों विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जाती है उसी प्रकार इन तथाकथित विद्वानों के विरुद्ध एक ही कार्यवाही होती है कि समाज उनको नजरों से गिरा देता है | यदि समाज में सम्मानित बने रहना है तो ऐसे कृ्त्यों से बचे रहना पड़ेगा |* *जब दूसरों का मार्गदर्शन करने वाले स्वयं अपना पथ भूल जायेंगे तो
देश का कल्याण कैसे होगा ? अत: मनुष्य को ऐसे कृत्य न करके एक आदर्श प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए |*