*सनातन धर्म में सबसे बड़ा धन शरीर को माना गया है | जिस प्रकार बिना आकार के निराकार कहा जाता है उसी प्रकार जब मनुष्य का शरीर रूपी धन नष्ट हो जाता है तो उसके लिए निधन शब्द का प्रयोग किया जाता है | धर्म की अनेक कठिन साधनाओं को साधने के लिए शरीर का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है इसीलिए लिखा गया है :- "शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्" क्योंकि जब शरीर ही स्वस्थ नहीं रहेगा तो धर्म की साधना कैसे हो पाएगी ? इसीलिए हमारे महापुरुषों ने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विवेकपूर्ण दृष्टि से खानपान के नियम बनाए थे | हमें किस मौसम में क्या खाना चाहिए क्या पीना चाहिए इसका वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है | मक्के की रोटी , चने का साग , मकई की रोटी , एवं गर्मी के महीने में शरीर एवं मस्तिष्क को शीतल रखने के लिए आम का पना , दही की लस्सी , दूध की लस्सी , मट्ठा - छाछ , नींबू - पानी , नींबू का शरबत , संतरे का रस , मुसम्मी का रस , खीरे का रस , तरबूज का रस आदि प्रयोग करने का वर्णन हमको प्राप्त होता है | इन सभी के पदार्थों में ढेर सारे पोषक तत्व एवं गर्मी से बचाने के गुण भी हैं | हमारे पूर्वज अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सदैव खान-पान का ध्यान रखते थे इसीलिए वह आज की अपेक्षा अधिक हष्ट पुष्ट एवं बलवान होते थे | आज हम अपने पूर्वजों के खान-पान को बहुत ही हेयदृष्टि से देखते हैं | जिसके परिणाम स्वरूप आज हम निर्बल एवं रोगी होते चले जा रहे हैं |*
*आज स्वयं को आधुनिक कहने वाला समाज खानपान के विषय में विचार करना ही नहीं चाहता है | बाजारों में खुले रखे खाद्य पदार्थ जो कि अनेक प्रकार के रोगों का घर होते हैं उनका सेवन करके मनुष्य अनेक प्रकार के रोग अपने शरीर एवं परिवार में फैला रहा है | घर का बना भोजन आज किसी को अच्छा ही नहीं लगना चाहता यही कारण है कि आज अनेकों प्रकार के संक्रमण से संक्रमित होकर मनुष्य असमय काल के गाल में समाता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज शीतल पेय के नाम पर अनेक प्रकार के नकारात्मक तत्वों से निर्मित कोल्ड ड्रिंक्स बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं , जिनको पीना आज का फैशन बन गया है | इन शीतल के को पीने वाले लोग शायद यह नहीं जानते हैं कि इन सभी प्रकार के पेय पदार्थों में कार्बन डाइऑक्साइड , कैफ़ीन , मिथाइल बेंजीन , पोटेशियम , सल्फेट , फास्फोरिक एसिड , लेड एसीटेट , सोडियम बेंजोएट आदि घातक रसायन मिलाए जाते हैं जिनका हमारे स्वास्थ्य पर अत्यंत घातक दुष्प्रभाव पड़ता है , और सबसे बड़ी बात यह है की इन शीतल पैरों में विटामिन , खनिज - लवण या पोषक तत्व बिल्कुल भी नहीं होते हैं | परंतु आज हम अपनी आधुनिकता दर्शाने के लिए यह बिष महंगे दामों पर खरीद कर स्वयं पी रहे हैं | कोरोनावायरस की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की बात कर रहा है वही मनुष्य को यह भी जानना आवश्यक है कि इन शीतल पेयों में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बनाने के सारे गुण उपस्थित है | फास्टफूड के नाम पर अनेक सड़ी गली वस्तुएं खाद्य पदार्थ के रूप में पिरयोग करने वाला मनुष्य दिन प्रतिदिन अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वयं नष्ट कर रहा है | यदि जीवन जीने की इच्छा है तो हमें अपने पूर्वजों के बनाए गए खानपान के नियमों की ओर लौटना ही होगा |*
*आज आम का पना , मट्ठा - छाछ या नींबू का शरबत पीने में या पिलाने में मनुष्य को अपना अपमान मालूम पड़ता है परंतु सत्य यही है कि इनके स्थान पर आधुनिक शीतल पेय पिलाकर आप अपने आगंतुक के जीवन को नष्ट कर रहे हैं इस बात का सदैव ध्यान रखें | स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रहने की सलाह दें |*