भारत में धर्म व आस्था के प्रति हिन्दुओं की संवेदनशीलता:- हमारे भारत देश के लोगों की भावनाएं भक्ति व धर्म के प्रति काफी संवेदनशील होती हैं। विशेष करके जब कभी धर्म की बात आती है तो भगवान के प्रति आस्था को लेकर काफी संवेदनशीलता देखने को मिलती है। अक्सर आप भक्ति, धर्म और भगवान से संबंधित किसी प्रकार के
हरिद्वार में कांवड़ियों का बड़ा सैलाब:-हर साल की तरह इस बार भी श्रावण महिने में भगवान शिव शंकर, महादेव के नाम पर हर-हर महादेव, बोल बम, बम-बम और जय शिव शंकर के जयकारों से पूरे देश में शिव जी की भक्ति का मस्त माहौल बना हुआ है। इस महिने श्
भगवान श्री शिवशंकर की अराधना में महामृत्युंजय जाप एककाफी पवित्र मंत्र माना जाता है जिसे हमारे बुजुर्गों द्वारा प्राण रक्षक मंत्रकहा जाता है। इस मंत्र की उत्पत्ति सबसे पहले महाऋषि मार्कंडय जी ने की। Mahmrityunjay Mantra का जाप करनेसे शिव जी को प्रसन्न करने की शक्ति मिलती है। Mahamrityunjay Mantra in
*सनातन धर्म में समय-समय पर विभिन्न व्रत उपवास एवं त्योहारों का पर्व मनाने की परंपरा रही है | प्रत्येक व्रत / पर्व के पीछे एक वैज्ञानिक मान्यता सनातन धर्म में देखने को मिलती है | आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता है | इसका बहुत ही
*सनातन धर्म में चौरासी लाख योनियों का वर्णन मिलता है | देव , दानव , मानव , प्रेत , पितर , गन्धर्व , यक्ष , किन्नर , नाग आदि के अतिरिक्त भी जलचर , थलचर , नभचर आदि का वर्णन मिलता है | हमारे इतिहास - पुराणों में स्थान - स्थान पर इनका विस्तृत वर्णन भी है | आदिकाल से ही सनातन के अनुयायिओं के साथ ही सनातन
हिन्दुओं की आस्था का एक केन्द्र भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ पुरी है। 10वीं शताब्दी में निर्मित यह प्राचीन मन्दिर सप्त पुरियों में से एक है। आज इस लेख में हम आपको जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े रोचक और अद्भुत तथ्यों के बारे में बता रहे है।1. पुरी की सबसे खास बात तो स्वयं भगवान जग
संसार में कर्म ही प्रधान कर्मानुसार ही मनुष्य को सुख - दुख , मृत्यु - मोक्ष आदि प्राप्त होते हैं | कर्म की प्रधानता यहाँ तक है कि जीव को अगला जन्म किस योनि में लेना है यह भी उसके कर्म ही निर्धारित करते हैं | यद्यपि सभी जीवों को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है परंतु इन सबसे ऊपर एक परमसत्ता है द
*सनातन धर्म बहुत ही वृहद होते हुए असंख्य मान्यताओं को स्वयं को समेटे हुए है | सनातन धर्म में समय - समय पर अनेक देवी - देवताओं के साथ ग्रामदेवता , स्थानदेवता , ईष्टदेवता एवं कुलदेवता की पूजा आदिकाल से की जाती रही है | प्रत्येक कुल के एक विशेष आराध्य होते हैं जिन्हें कुलदेवी या कुलदेवता के नाम से जाना
सबसे पहले हम ये जाने की कीर्तन का सही अर्थ क्या है.Kirtan का सही अर्थ मैंने अभी कुछ दिन पहले सुप्रसिद्ध भागवत वाचक Goswami Shri Pundrik Ji Maharaj से जाना उनोहने जो बताया में आज आप लोगो से शेयर करती हूँ.Goswami Shri Pundrik Ji Maharaj के अनुसार हम जब किसी एक विशेष भगव
*आदिकाल से ऋषि महर्षियों ने अपने शरीर को तपा करके एक तेज प्राप्त किया था | उस तेज के बल पर उन्होंने अनेकानेक कार्य किये जो कि मानव कल्याण के लिए उपयोगी सिद्ध हुए | सदैव से ब्राम्हण तेजस्वी माना जाता रहा है | ब्राम्हण वही तेजस्वी होता था जो शास्त्रों में बताए गए नियमानुसार नित्य त्रिकाल संध्या का अनु
*मानव जीवन अनेक विचित्रताओं से भरा हुआ है | मनुष्य की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह इस संसार में उपलब्ध समस्त ज्ञान , सम्पदायें एवं पद प्राप्त कर लेना चाहता है | अपने दृढ़ इच्छाशक्ति एवं किसी भी विषय में श्रद्धा एवं विश्वास के बल पर मनुष्य ने सब कुछ प्राप्त भी किया है | मानव जीवन में श्रद्धा एवं वि
*सनातन धर्म के आधारस्तम्भ एवं इसके प्रचारक हमारे ऋषि महर्षि मात्र तपस्वी एवं त्यागी ही न हो करके महान विचारक , मनस्वी एवं मवोवैज्ञानिक भी थे | सनातन धर्म में समय समय पर बताया गया समयानुकूल व्रत विधान यही सिद्ध करता है | विचार कीजिए कि जब ज्येष्ठ माह में सूर्य की तपन एवं उमस से आम जनमानस तप रहा होता
*इस धराधाम पर मनुष्य को जीवन जीने के लिए वैसे तो अनेक आवश्यक आवश्यकतायें होती हैं परंतु इन सभी आवश्यकताओं में सर्वोपरि है अन्न एवं जल | बिना अन्न के मनुष्य के जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है और अन्न का स्रोत है जल | बिना जल के अन्न के उत्पादन के विषय में कल्पना करना वैसा ही है जैसे अर्द्धरात्रि में सू
*विशाल देश भारत में सनातन धर्म का उद्भव हुआ | सनातन धर्म भिन्न-भिन्न रूपों में समस्त पृथ्वीमंडल पर फैला हुआ है , इसका मुख्य कारण यह है कि सनातन धर्म के पहले कोई धर्म था ही नहीं | आज इस पृथ्वी मंडल पर जितने भी धर्म विद्यमान हैं वह सभी कहीं न कहीं से सनातन धर्म की शाखाएं हैं | सनातन धर्म इतना व्यापक
*सनातन धर्म का प्रत्येक अंग किसी न किसी मान्यता व परम्परा से जुड़ा हुआ है | चाहे जड़ हो या चेतन , पर्व हो या त्यौहार , यहाँ तक कि समाज का वर्गीकरण भी पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताओं से ही सम्बन्धित है | आज ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की नवमी को "महेश नवमी" के नाम से जाना जाता है
इस मतलबी सी ,क्रूर दुनिया में,जहाँ लोग प्यासे हैं पानी नहीं,लहू के ।उसी दुनिया का एक खूबसूरत सा चेहरा भी है ,जहाँ किसी और की उम्र बढ़ाने को,व्रत कोई और रखता है ।जी हां उसी चेहरे को हिंदुस्तान कहते हैं ।। ज
*इस धरती पर जन्म लेने के बाद मनुष्य को कई कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है , इन्हीं कर्तव्यों में एक मुख्य कर्तव्य बताया गया है ज्ञान लेना एवं ज्ञान देना | सर्वप्रथम मनुष्य को किसी भी विषय में विधिवत ज्ञान प्राप्त करना चाहिए | उस विषय में पारंगत हो जाने के बाद कि मनुष्य को उस विषय की चर्चा करते हुए क
*आदिकाल से इस धरा धाम पर मनुष्य अपने कर्मों के माध्यम से सफलता एवं विफलता प्राप्त करता रहा है | किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य को छलहीन एवं निष्कपट होना परम आवश्यक है | मनुष्य कुछ देर के लिए सफल होकर अपनी सफलता पर प्रसन्न तो हो सकता है परंतु उसकी प्रसन्नता चिरस्थाई नह
*इस संसार में अनेकों प्रकार के पंथ , संप्रदाय एवं धर्म देखे जा सकते हैं , प्रत्येक धर्म एवं संप्रदाय का अपना अपना नियम अपने व्रत , पर्व , त्यौहार यहां तक कि "नववर्ष" भी अलग होते हैं | जिस प्रकार ईसा (अंग्रेजी), चीन या अरब का कैलेंडर है उसी तरह राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने इन सब
*मानव जीवन में यदि मनुष्य अपने कर्मों का शुभाशुभ फल प्राप्त करता है तो वहीं उसके जीवन पर कुण्डली में उपस्थित ग्रहों का भी सीधा प्रभाव देखने को मिलता है | ग्रहों के दुष्प्रभाव से मनुष्य का जीवन इतना अधिक प्रभावित हो जाता है कि मनुष्य राजा भी बन सकता है एवं कुछ ही पलों में राजा भी रंक हो जाता है | कभी