*सनातन
धर्म बहुत ही वृहद होते हुए असंख्य मान्यताओं को स्वयं को समेटे हुए है | सनातन
धर्म में समय - समय पर अनेक देवी - देवताओं के साथ ग्रामदेवता , स्थानदेवता , ईष्टदेवता एवं कुलदेवता की पूजा आदिकाल से की जाती रही है | प्रत्येक कुल के एक विशेष आराध्य होते हैं जिन्हें कुलदेवी या कुलदेवता के नाम से जाना जाता है | ये कुलदेवता वंश के ऋषि या उसी वंश में उत्पन्न कोई महापुरुष होते हैं जिनकी पूजा कुलाचार के अनुसार की जाती है | जन्म , विवाह , या विशेष पर्व पर कुलदेवी या कुलदेवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है | प्राय: घरों में ही इनकी स्थापना होती है परन्तु प्रत्येक कुल के कुलदेवता का एक मन्दिर भी होता है जहाँ वर्ष में एक बार उस कुल से सम्बन्धित सभी लोग इकट्ठा होकर विधिवत अपनी - अपनी श्रद्धानुसार उनकी पूजा करते हैं | कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी - देवता होते हैं | ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं | इनकी गणना हमारे घर के बयोवृद्ध सदस्यों जैसी होती है | अत: प्रत्येक कार्य में इन्हें याद करके पूजन करना आवश्यक होता है | इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमानजी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता | कुलदेवता के संतुष्ट रहने पर घर पर किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है और यदि कुलदेवता रुष्ट रहते हैं तो उनका सुरक्षाचक्र घर पर से हट जाता है और परिवार में घटनायें प्रारम्भ हो जाती हैं | उन्नति अवनति में बदलने लगती है , गृहकलह , उपद्रव व अशांति एवं वंशवृद्धि में अवरोध उत्पन्न होने लगता है | प्रत्येक मनुष्य को अपने कुवदेवता का पूजन करते हुए उनको संतुष्ट ही रखना चाहिए |* *आज के भौतिकवादी युग में जहाँ मनुष्य ने स्वयं को आधुनिक दिखाने के लिए अनेकों धार्मिक मान्यताओं का त्याग कर दिया वहीं अनेक लोग ऐसे हैं जिनको अपने कुलदेवता के विषय में पता ही नहीं है | यह स्थिति शहरों में अधिक देखने को मिलती है | पूर्वकाल में आक्रान्ताओं से बचने के लिए लोगों ने अपने गाँवों से पलायन करके अन्यत्र बसेरा बसाया अपने कुल परिवार से अलग होकर बुजुर्गों के न रहने पर ऐसे लोग अपने कुलदेवता के विषय में जान भी नहीं पाते हैं | वहीं गाँवों में अभी भी कुलदेवता की पूजा घर घर में होती देखी जा सकती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समाज में देखा करता हूँ कि अनेक लोग अनेक लोग पकेशान होकर घूमा करते हैं , परिवार में अशांति बनी रहती है , कहीं कहीं तो वंश ही समाप्त हो जाता है जिसके चक्कर में लोग ओझा , मौलवी एवं चिकित्सकों की चौखट पर दौड़ा करते हैं | इन सब उपद्रवों का एक कारण कुलदेवता भी होते हैं | परंतु यह भी सत्य है कि कुछ लोग जान नहीं पाते तो कुछ लोग जानकर भी मान नहीं पाते | इसका मुख्य कारण है मनुष्य के सनातन संस्कारों का क्षय होनै एवं विजातीयता का पनपना एवं पाश्चात्य मानसिकता के पनपने और नये विचारों के आधुनिक संतों की संगत के
ज्ञान भ्रम में उलझकर लोग अपने कुल के कुलदेवी/देवता को भूलकर अपने वंश का इतिहास भी भूलते जा रहे हैं | जो लोग अपने कुलदेवता के विषय में अनभिज्ञ हैं उन्हें अपने कुल के बुजुर्गों को ढूंढ़कर , अपने रिश्तेदारों या अपने पुरोहित (पंडित) से उनके विषय में जानकारी लेकर उनकी स्थापना करके पूजन प्रारम्भ कर देना चाहिए | इससे जीवन से अशांति मिट जायेगी एवं परिवार सुखमय जीवन व्यतीत करेगा |* *आप अपने कुलदेवता को भले न दानते बों परंतु वे आपके पिरत्येक कृत्य को देख रहे हैं और आपके कृत्यों के अनुसार ही आपको फल भी प्राप्त ह रहा है |*