*मानव जीवन अनेक विचित्रताओं से भरा हुआ है | मनुष्य की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह इस संसार में उपलब्ध समस्त
ज्ञान , सम्पदायें
एवं पद प्राप्त कर लेना चाहता है | अपने दृढ़ इच्छाशक्ति एवं किसी भी विषय में श्रद्धा एवं विश्वास के बल पर मनुष्य ने सब कुछ प्राप्त भी किया है | मानव जीवन में श्रद्धा एवं विश्वास का कितना महत्त्व है यह देखना हो तो हमें हमारे पूर्वज महापुरुषों की जीवनी देखनी चाहिए | अनेक तपस्वियों ने ईश्वर के श्रद्धा रखकर तपश्चर्या प्रारम्भ की उन्हें यह विश्वास था कि ईश्वर हमारी श्रद्धा को ठुकरायेंगे नहीं | इसी श्रद्धा एवं विश्वास के बल पर अनेकों वरदान एवं सिद्धियां प्राप्त करके इन महापुरुषों ने लोककल्याणक कार्य किये हैं | गुरु द्रोण के द्वारा दुत्कार दिये जाने के बाद भी निषादपुत्र एकलव्य की श्रद्धा गुरुदेव के प्रति तनिक भी कम नहीं हुई और उसने उनकी मिट्टी की मूर्ति तैयार करके पूर्ण विश्वास के साथ धनुर्विद्या का अभ्यास प्रारम्भ किया | गुरुदेव के प्रति श्रद्धा एवं स्वयं के विश्वास के बल पर ही वह अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया | श्रद्धा एवं विश्वास को भगवद्भवानी शंकर देवता की उपाधि देते हुए मानस की प्रथम वन्दना में गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट बता दिया है कि मनुष्य श्रद्धा विश्वास के अभाव में कोई भी जप , तप , पूजा , पाठ एवं सिद्धियां नहीं प्राप्त कर सकता | जब तक किसी के प्रति पूर्ण श्रद्धा नहीं होगी तब तक विश्वास नहीं जमेगा और जब तक श्रद्धा एवं विश्वास एक साथ मानव जीवन में नहीं आयेंगे तब तक मनुष्य सबकुछ प्राप्त कर लेने के बाद भी अधूरा ही रह जाता है |* *आज मनुष्य अपने
धर्म , धर्मग्रंथ , संस्कृति एवं संस्कार के प्रति शंकालु का सा दिखाई पड़ रहा है | मनुष्य
धर्म कर्म तो करता है परंतु उसे अभीष्ट नहीं प्राप्त हो पा रहा है क्योंकि करने को तो वह सबकुछ कर रहा है परंतु उसके भीतर श्रद्धा एवं विश्वास की कमी स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | हमारे पुराणों में अनेक सिद्धियां बताई गयी हैं आज का मनुष्य उन सिद्धियों को पुस्तक पढ़कर प्राप्त करने के उद्देश्य से साधना करने तो बैठता है परंतु दो दिन बाद उसका विश्वास डगमगा जाता है कि पता नहीं मैं यह कर पाऊँ या नहीं और बीच में ही वह साधना छोड़ देता है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आज श्रद्धा का अभाव हो गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के
समाज में अनेक विद्वानों को देख रहा हूँ कि वे धर्मग्रंथों का अध्ययन तो खूब करते हैं परंतु विषय विशेष पर उनकी श्रद्धा लुप्त हो जाती है और अपने धर्मग्रंथों पर से ही उनका विश्वास डगमगाने लगता है और फिर वे उसी विषय को चर्चा का विषय बनाकर तर्क - कुतर्क करने लगते हैं | ऐसे सभी लोगों को एक सूक्ति याद रखना चाहिए जहाँ कहा गया है :-- "श्रद्धवान् लभते ज्ञानम्" अर्थात बिना श्रद्धा के आप ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते है | आज सनातन के पुरोधा कहे जाने वाले लोगों की यह दशा है कि दूसरों को तो उपदेश देते रहते हैं परंतु स्वयं में वह श्रद्धा एवं विश्वास नहीं जागृत कर पाता और जीवन भर इन्ही कुचक्रों में फंसकर स्वयं तो भ्रमित होता ही रहता है साथ ही और लोगों को भी भ्रमित करता रहता है | अपने इस कृत्य से वह समाज में हंसी का पात्र भी बन जाता है | गंगास्नान आज भी रोगमुक्त कर सकता है परंतु मनुष्य में गंगा जी के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास जागृत करना पड़ेगा | बिना श्रद्धा विश्वास के कुछ भी नहीं प्राप्त किया जा सकता है |* *मनुष्य के पास आज दिखावे की श्रद्धा एवं अपूर्ण विश्वास की प्रचुरता के कारण ही वह भटकाव की स्थिति में है |*