*सनातन धर्म का प्रत्येक अंग किसी न किसी मान्यता व परम्परा से जुड़ा हुआ है | चाहे जड़ हो या चेतन , पर्व हो या त्यौहार , यहाँ तक कि समाज का वर्गीकरण भी पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताओं से ही सम्बन्धित है | आज ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की नवमी को "महेश नवमी" के नाम से जाना जाता है | इसका नाम महेश नवमी क्यों पड़ा ? इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है जो "माहेश्वरी"(वैश्य वर्ण) समाज के उद्गम का स्रोत माना जाता है | धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे | इस वंश के लोग शिकार खेलते - खेलते ऋषियों के आश्रम में पहुँच गये जिससे उनकी तपस्या भमग होने लगी | तब ऋषियों ने श्राप देकर उनके वंश को समाप्त कर दिया तथा उन शिकारियों को जड़वत् बना दिया | बहुत काल बीतने पर आज ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की नवमी को भगवान शिव ने उन्हें शाप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की व उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग बताया तथा अपनी कृपा से इस समाज को अपना नाम भी दिया इसलिए यह समुदाय 'माहेश्वरी' नाम से प्रसिद्ध हुआ |
भगवान शिव की आज्ञा से ही माहेश्वरी (महेश = शिव , वारि = समुदाय) समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य/व्यापारिक कार्य को अपनाया, तब से ही माहेश्वरी समाज व्यापारिक समुदाय के रूप में पहचाना जाता है | पूरे देश में महेश नवमी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है तथा शिव-पार्वती से खुशहाल जीवन का आशीर्वाद मांगा जाता है |* *आज का दिन माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस होने के कारण उस समाज का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है | महेश नवमी को माहेश्वरी समाज के लोग आदिदेव महादेव की पूजा करके यह पर्व मनाते हैं | यह दिन माहेश्वरी समुदाय के लिए बहुत धार्मिक महत्व लिए होता है | यह त्योहार ३ दिन पहले प्रारम्भ हो जाता है जिसमें चल समारोह, धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है | यह दिन माहेश्वरी समाज के द्वारा भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना के लिए समर्पित है | महेश स्वरूप में आराध्य भगवान 'शिव' पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं | शिवलिंग पर भस्म से लगा त्रिपुंड त्याग व वैराग्य का सूचक माना जाता है |
इस दिन भगवान महेश का लिंग रूप में विशेष पूजन व्यापार में उन्नति तथा त्रिशूल का विशिष्ट पूजन किया जाता है | आज के दिन भगवान शिव (महेश) को पृथ्वी के रूप में रोट चढ़ाया जाता है | शिव पूजन में डमरू बजाए जाते हैं, जो जनमानस की जागृति का प्रतीक है | यह त्यौहार मनाकर "माहेश्वरी समाज" अपने स्रष्टा भगवान महेश के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है |* *यदि सूक्ष्मता से देखा जाय तो सृष्टि के प्रत्येक अवयव किसी न किसी रूप से सनातन की मान्यताओं एवं कथाओं से सम्बद्ध हैं | आवश्यकता है सनातन धर्म को जानने एवं समझने की |*