*सनातन धर्म में चौरासी लाख योनियों का वर्णन मिलता है | देव , दानव , मानव , प्रेत , पितर , गन्धर्व , यक्ष , किन्नर , नाग आदि के अतिरिक्त भी जलचर , थलचर , नभचर आदि का वर्णन मिलता है | हमारे इतिहास - पुराणों में स्थान - स्थान पर इनका विस्तृत वर्णन भी है | आदिकाल से ही सनातन के अनुयायिओं के साथ ही सनातन के विरोधी तत्व भी इसी समाज में रहे हैं जो सनातन की मान्यताओं को पाखण्ड की संज्ञा देकर इसे अंधविश्वास सिद्ध करने में प्रयासरत रहे हैं | ऐसे ही एक ज्वलंत विषय समाज में देखने को मिला भूत - प्रेतों का | कुछ लोगों ने इन शक्तियों को अंधविश्वास मानकर ऐसी किसी भी योनि को नकार दिया | हमारे पुराणों में प्रेतों के अस्तित्व पर विधिवत प्रकाश डाला गया गया है | श्रीमद्भागवत के माहात्म्य में पण्डित आत्मदेव के पुत्र धुंधुकारी का वर्णन मिलता है जो अपने कुकृत्यों के कारण अपमृत्यु को प्राप्त हुआ एवं भयंकर प्रेत हुआ |
गरुड़ पुराण के सातवें अध्याय में बभ्रुवाहन के प्रसंग में एक प्रेत का वर्णन स्वयं भगवान श्री हरि ने किया है | तुलसीदास जी को एक प्रेत ने परेशान कर दिया था | इन सब कथानकों को पढ़कर भूत - प्रेत आदि को नकारा नहीं जा सकता है | अब यह जान लिया जाय कि प्रेत होता कौन है ? कुकर्म करते हुए अकालमृत्यु को प्राप्त हुए लोग , मन में कोई इच्छा , कामना , वासना लिए लिए जिसकी मृत्यु हो जाती है वह सभी प्रेत योनि को प्राप्त होता है | इसके अतिरिक्त गरुड़ पुराण के प्रेत खण्ड में लिखा है :-- "चिता पिण्डप्रभृतितः प्रेतत्वमुपजायते ! तदादि तत्र तत्रापि प्रेतनाम्ना प्रदीयते !! अर्थात :- चिता पिण्ड के उपरांत सभी जीवों की प्रेत संज्ञा होती है | कहने का अर्थ यह है कि दाह संस्कार करने के बाद दसवाँ संस्कार अर्थात १० दिन तक मृतक की गणना प्रेतों में होती है | उसके नाम का उच्चारण प्रेत कहके ही किया जाता है | ग्यारहवें दिन जब विधिवत सपिण्डन किया जाता है तब मृतक पितरों में मिल जाता है | जिनका पिण्डदान या विघिवत सपिण्डन नहीं होता है वह प्रेतयोनि में ही रह जाता है और अपने वंशजों को क्षति पहुँचाता रहता है |
* *आज समाज में सनातन विरोधियों की बाढ़ सी आ गयी है | आज यदि सनातन की प्रत्येक मान्यता को अंधविश्वास का नाम देने को सनातन विरोधी तत्पर दिख रहे हैं तो इसमें जाने - अनजाने उनका समर्थन कुछ सनातन के अनुयायी भी करने में लगे हैं | स्वयं को सनातन का प्रकाण्ड विद्वान एवं समाज सुधारक मानने वाले तथाकथित लोग अपनी तर्क - कुतर्कपूर्ण बातों से सनातन की मान्यताओं को अंधविश्वास बताने में लगे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस बात का समर्थन करता हूँ कि कुछ लोगों ने भूत - प्रेतों की आड़ में अपनी दुकान सजा रखी है | कुछ तथाकथित तांत्रिक , ओझा , पंडित , फकीर , मौलवी आदि आम जनमानस में कुप्रचार करके भोली - भाली जनता को इन भूत - प्रेतों का भय दिखलाकर उनको जोंक की तरह चूस रहे हैं | परंतु कुछ लोगों के ऐसा करने से भूत - प्रेतों का अस्तित्व नहीं समाप्त हो जाता है |
यह अलग विषय है कि इन लुटेरों के कारण सनातन विरोधियों को अपनी बात कहने का अवसर एवं बल प्राप्त होता है | यदि इतिहास पुराणों को माना जाय , गहराई से उनका अध्ययन किया जाय तो यह विषय विस्तृत रूप से वर्णित है | जीव अपने जीवनकाल में जैसा सत्कर्म या दुष्कर्म करता है उसी के अनुसार उसको अगली योनि प्राप्त होती है | किसी भी अन्य योनि में जन्म लेने के पहले जीव को अपना भोग भोगना ही पड़ता है | इससे न कोई बच पाया है और न ही बच पायेगा | इसीलिए मनुष्य को सदैव सत्कर्म करते रहना चाहिए जिससे कि उसे प्रेत या पिशाच योनि में न जाना पड़े | आज इन तत्वों को अंधविश्वास का नाम देने वाले समाज सुधारक इस्लाम धर्म में देखें तो वहाँ भी जिन्नाद एवं खब्बीस के दर्शन पा जायेंगे | इस विषय पर लेख लिखने का अर्थ यह नहीं हुआ कि मैं भय उत्पन्न करने का प्रयास कर रहा हूँ | मेरा मन्तव्य स्पष्ट है कि सनातन कि मान्यतायें सदैव दिव्य एवं वैज्ञानिकता से ओत - प्रोत रही हैं इसमें अंधविश्वास के लिए लेशमात्र स्थान नहीं है |* *समातन विरोधियों से एक बात कहना चाहूँगा कि सनातन दहकता हुआ सूर्य है जिस पर आपकी फेंकी हुई धूल कभी नहीं पहुँच पायेगी | आप चाहे जितना प्रयास कर लें |*